बसपा शासनकाल में हुए सरकारी चीनी मिल बिक्री का घोटाला भले ही 1100 करोड़ रुपये माना जा रहा है पर हकीकत यह है कि घोटाले का दायरा इससे कहीं ज्यादा का है। इसका खुलासा चीनी मिलों की बिक्री पर आई सीएजी रिपोर्ट में भी हो चुका है।

पांच चीनी मिलें खरीद ली थीं
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लखनऊ।
सीएजी रिपोर्ट में साफतौर पर कहा गया था कि चीनी मिल खरीदने वाली कंपनियों में से एक वेव गु्रप ने बिजनौर, बुलंदशहर, सहारनपुर, बहराइच और अमरोहा की पांच चीनी मिलों को महज 206 करोड़ रुपये में खरीदा जबकि इनकी कीमत करीब 2000 करोड़ रुपये थी। दरअसल चीनी मिलों की कीमत को कम करने के लिए बिडिंग में कई बार बदलाव अंजाम दिए गये ताकि कंपनियों को फायदा पहुंचाया जा सके। बसपा राज में शराब कारोबारी पोंटी चड्ढा की कंपनी वेव इंडस्ट्रीज लिमिटेड का दबदबा माना जाता था। यही वजह थी कि चीनी मिलें खरीदने में उसे पहली प्राथमिकता दी गयी थी। दूसरे स्थान पर तत्कालीन बसपा एमएलसी मोहम्मद इकबाल का नाम आता है जिनके परिजनों ने भी बोगस कंपनियां बनाकर पांच चीनी मिलें खरीद ली थी।
पोंटी चड्ढा की मौत हो गई
ध्यान रहे कि मोहम्मद इकबाल को पश्चिमी उप्र के सबसे बड़े खनन माफिया के रूप में जाना जाता है। उसके खिलाफ देश भर की एक दर्जन से ज्यादा जांच एजेंसियां सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर जांच कर रही है। वहीं सीएजी की रिपोर्ट आने के बाद बसपा और सपा सरकार ने इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया। इस बीच पोंटी चड्ढा की मौत हो गई। जिससे चीनी मिलों की बिक्री से जुड़े तमाम अहम राज दफन हो गये। अब सीबीआई को इस मामले की पड़ताल करने के लिए नये सिरे से सुबूत जमा करने होंगे। हालांकि सीबीआई इस मामले का पिछले आठ महीने से अध्ययन कर रही है।
जानें कब-कब बेची गयी मिलें
- 02 जुलाई 2010 को बेची गयी चार चीनी मिल
- 17 सितंबर 2010 को बेची गयी छह चीनी मिल
- 04 जनवरी 2011 को बेची गयी 11 चीनी मिल

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Posted By: Shweta Mishra