बड़ा कनफ्यूज हूं यार रोज ये नेता तो कभी उनके चमचे दरवाजे पर धमक पड़ते हैंं. कहते हैं भाई साहब बस अपना हाथ सिर पर रख दीजिए. अभी तो ये वोट मांगने आ रहे हैं उसके बाद पांच साल तक दिखाई भी नहीं देंगे.

MEERUT : मैं तो बड़ा कनफ्यूज हूं यार, रोज ये नेता तो कभी उनके चमचे दरवाजे पर धमक पड़ते हैंं। कहते हैं, भाई साहब बस अपना हाथ सिर पर रख दीजिए। अभी तो ये वोट मांगने आ रहे हैं, उसके बाद पांच साल तक दिखाई भी नहीं देंगे। जब हम इनके दरवाजे पर जाएंगे तो इनके दरवाजे हमारे लिए बंद हो जाएंगे। पप्पू ने अपने दोस्त रामू से कहा, अच्छा भाई तू बता, वोट किसे देगा?
रामू ने भी चेहरे पर परेशानी लाते हुए कहा, यार बस ये ही मत पूछ, किसे वोट दिया जाए। ये ही तो समझ नहीं आ रहा है। दादा जी बताते हैं कि उनके टाइम पर भी ये नेता लोग ऐसे ही वोट मांगने आते थे। कुछ चेहरे अभी भी वही हैं। तो कुछ चेहरे बदल गए। मेरे दादा परदादा बन गए, लेकिन मोहल्ले की सूरत आज तक नहीं बदली। गली के नुक्कड़ की लाइट आज भी खराब है। मोहल्ले की नाली में अभी भी मच्छर पनपते हैं। राशन की दुकान पर अभी भी ताला पड़ा मिलता है। राशन कार्ड बनवाने में कई महीने लग जाते हैं।

पप्पू ने बीच में रोकते हुए कहा, यार बारिश में अभी भी नाली बंद होती है। सडक़ें हर बारिश में धुल जाती हैं। इस बार एक काम करते हैं किसी को वोट नहीं देते।

रामू ने झल्लाते हुए कहा, इससे क्या फर्क पडऩे वाला है।

पप्पू भी इसी सोच में पड़ गया कि अब क्या किया जाए?

चाय की दुकान पर, दूसरी बैंच पर बैठे एक उम्रदराज वकील साहब युवाओं की बात सुनकर दुखी हुए और बातचीत के बीच में कूदते हुए बोले, बेटा यही हालात हर आदमी के हैं। किसी के समझ नहीं आ रहा है कि आखिर ऐसे लोगों को नेता क्यों बनाया जाए। जो हर तरह के अपराधों में लिप्त है। कोई व्यक्तिगत रूप से सही है तो उसकी पार्टी महाभ्रष्ट है।

पप्पू : सर, यही तो समझ नहीं आ रहा है कि वोट दें तो किसे दें?

वकील साहब : देखो बेटा, जो कानून इन चोरों को चुनाव लडऩे का अधिकार देता है। वही कानून हमें नॉट टू वोट का अधिकार भी देता है।

पप्पू : मतलब?

वकील साहब : आरपी एक्ट, द कंडक्ट ऑफ इलेक्शन रूल्स 1961 के हिसाब से वोटर चाहे तो अपना वोट दे सकता है, लेकिन किसी नेता को नहीं वह अपनी वोट को खाली छोड़ सकता है।

रामू : कैसे?

वकील साहब : कोई भी आदमी जो वोट डालने जा रहा है। लेकिन वो चुनाव में खड़े किसी उम्मीदवार को वोट नहीं देना चाहता है। तो फिर वोटर पोलिंग बूथ पर बैठे प्रजाइडिंग ऑफिसर (पीठासीन अधिकारी) से फार्म नंबर 17ए की डिमांड कर सकता है।

पप्पू : सर ये फॉर्म 17ए क्या होता है? रामू ने भी हां में हां मिलाया।

वकील साहब : इस फॉर्म को भर कर आप वोट तो डाल सकते हैं। आपका वोट काउंट भी किया जाएगा। लेकिन वोट किसी उम्मीवार के खाते में नहीं जाएगा। आपकी वोट से साबित होगा कि जो भी लोग चुनाव में खड़े हैं, उनमें से कोई भी नेता बनने योग्य नहीं है।

पप्पू : अगर पोलिंग बूथ पर फार्म 17ए देने से इनकार कर दिया जाए, फिर क्या करें?

वकील साहब : आरपी एक्ट 1961 के रूल 49ओ के तहत हर पोलिंग बूथ पर फॉर्म नंबर-17ए होना अनिवार्य है। फिर भी फॉर्म नंबर 17ए न मिले तो पोलिंग बूथ के बाहर लिखे डीएम और चुनाव पर्वेक्षक का नंबर पर शिकायत दर्ज कराई जा सकती है। चुनाव आयोग की तरफ से हेल्प लाइन भी शुरू की जाती है। उन पर भी शिकायत की जा सकती है।

रामू : लेकिन हमारे वोट न डालने से क्या फर्क पडऩे वाला है। बाकी लोग तो डालेंगे ही। उनके वोटों से भी तो कोई भ्रष्ट उम्मीदवार जीत सकता है।

वकील साहब : इसके लिए लड़ाई जारी है। ईवीएम में राइट टू रिजेक्ट या नो वन इज सुटेबल का आप्शन का मामला संसद में लंबित है।

पप्पू : ये नो वन इज सुटेबल का क्या मामला है।

वकील साहब : नो वन इज सुटेबल एक ऐसी व्यवस्था होगी, जिसमें आप किसी भी प्रत्याशी को वोट नहीं करते है। अगर नो वन इज सुटेबल के आप्शन पर विनिंग कैंडिडेट से भी ज्यादा वोट मिलते हैैं तो संबंधित सीट पर चुनाव खारिज करके दोबारा चुनाव कराया जाएगा। साथ ही जिन प्रत्याशियों को रिजेक्ट किया जाएगा, वो अगले बीस सालों तक भारत में कहीं पर भी चुनाव नहीं लड़ पाएंगे।

यह सुनकर पप्पू और रामू दोनों के चेहरों पर मुस्कान आ गई। दोनों एक साथ बोले, सर ऐसा हो जाए तो मजा आ जाएगा। फिर तो चोरों के चुनाव लडऩे पर बैन लग जाएगा। बाकी के डरने लगेंगे। यह बताकर वकील साहब कचहरी में अपने केबिन की तरफ चले गए। रामू और पप्पू आपस में बात करने लगे। दोनों ने इस बार फार्म 17ए भरने का फैसला किया.

Posted By: Inextlive