- पैराशूट फैक्ट्री कर्मी चला रहा था सूदखोरी का धंधा

-फैक्ट्री में ही जहर खा कर 55 वर्षीय कर्मचारी ने दी जान

- बेटे का आरोप, असल से ज्यादा ब्याज चुकाने के बाद भी कर रहा था परेशान

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KANPUR: पैराशूट फैक्ट्री में काम करने वाले सूदखोर से परेशान होकर फैक्ट्री के एक कर्मचारी ने जहर खाकर जान दे दी। कर्मचारी के बेटे का आरोप है कि सूदखोर को असल रकम से ज्यादा दो साल में ब्याज दिया गया है फिर भी वह पिता को परेशान कर रहा था। जिसकी वजह से वह काफी परेशान रहते थे। शनिवार को वह पैराशूट फैक्ट्री पहुंचे और वहीं पर जहरीला पदार्थ खा लिया। हालत बिगड़ने पर उन्हें हैलट लाया गया जहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया।

बैंक लोन चुकाने में प्लॉट गया, सूदखोर का ब्याज चुकाने में जान

बर्रा विश्वबैंक कालोनी में रहने वाले नवल किशोर मिश्रा(55) पैराशूट फैक्ट्री में टेलरिंग डिपार्टमेंट में कार्यरत थे। उनके तीन बेटे सौरभ, गौरव और शशंाक है जोकि अलग-अलग जगहों पर अपने परिवार के साथ रहते हैं। शशांक की दो महीने पहले ही शादी हुई है। वह पत्‍‌नी संग नवलकिशोर के साथ ही रहता था। शशांक ने बताया कि सभी किराए के मकान में रहते हैं। पहले उनके पास हनुमंत विहार में अपना प्लॉट था जिसके लिए बैंक से क्ब् लाख का लोन लिया था। लेकिन उस लोन को चुकाने के लिए प्लॉट को बेचना पड़ा। ढाई साल पहले पिता ने पैराशूट फैक्ट्री में ही काम करने वाले किदवईनगर निवासी पुरुषोत्तम दास से फैक्ट्री कर्मी अरविंद की मार्फत ख्.क्भ् लाख रुपए लिए थे। बेटे का आरोप है कि क्0 फीसदी ब्याज दर होने पर भी उनके पिता ने असल रकम से ज्यादा ब्याज दे दिया फिर भी वह और रुपए देने के लिए उनके पिता को प्रताडि़त कर रहा था।

पारिवारिक जिम्मदारियों का भी था दबाव

नवल किशोर के तीन बेटे है। तीनों की शादी हो गई है। दो बेटे अलग रहते हैं जबकि शशांक और उसकी बीवी साथ में। तीनों ही बेटे प्राइवेट नौकरी करते हैं। लेकिन घर खर्च काफी ज्यादा होने की वजह से नवल किशोर पर भी काफी दबाव था।

अधिकारी की शह पर

नवलकिशोर के बेटे गौरव का आरोप है कि पैराशूट फैक्ट्री के ही कुछ कर्मचारी दूसरे कर्मचारियों को ब्याज पर रुपया बांटते हैं और फिर उन्हें ब्याज के नाम पर प्रताडि़त करते हैं। इस काम में फैक्ट्री का एक अधिकारी भी शामिल है जिसकी शह पर फैक्ट्री में सूदखोरी का धंधा चल रहा है। वहीं रेलबाजार एसओ ने बताया कि अभी पीडि़त परिवार की तरफ से कोई तहरीर नहीं मिली है। तहरीर मिलने पर रिपोर्ट लिख कर कार्रवाई की जाएगी।

हर दफ्तर में फैला है सूदखोरों का जाल

सूदखोरों को इलाके के गुंडों, थाना पुलिस और राजनीति में सक्रिय लोगों का संरक्षण प्राप्त होता है। वे दूसरों के माध्यम से ब्याज पर रकम उठाते हैं। बाद में वे सामने आकर वसूली करते हैं। लेकिन सरकारी आफिसों में भी यह खेल चल रहा है नगर निगम हो या स्वास्थ्य विभाग, सभी जगह यह सक्रिय होते हैं। इसमें यूनियन से जुड़े कई नेता भी सक्रिय भूमिका निभाते हैं। वहीं कॉरपोरेशन से लेकर डिफेंस कारखानों में इनकी जड़ें फैली हैं।

तीन गुना मुनाफ कमा रहे

सूदखोर जो रकम उधार पर देते हैं उस पर दिन, हफ्ते या फिर महीने के हिसाब से ब्याज लेते हैं। क्000 रुपए देने पर प्रतिदिन ख्0 रुपए की दर से म्0 दिन तक चलाना होता है। इसके तगादे के लिए सूदखोर गुर्गे भेजते हैं। उनकी वसूली से आने वाली रकम को दोबारा किसी दूसरे जरूरतमंद को ब्याज पर उठा दिया जाता है। जिससे सूदखोर को रकम पर क्7 प्रतिशत का मुनाफा होता है और एक साल में रकम तीन गुना बढ़ जाती है।

फाइल चार्ज भी वसूलते हैं।

सूदखोर जरूरतमंद को रूपए देने से पहले रकम पर फाइल चार्ज भी काटते हैं वो भी मनमाने ढंग से। रुपए लेने वाले से पहले फाइल चार्ज के नाम पर क्000 रुपए में क्00 रुपए काट लेते हैं। उसके बाद 900 रुपए देकर क्000 की लिखापढ़ी करते हैं। साथ ही दो रुपए की डायरी बनाकर उसमें लेट होने पर प्रतिदिन के हिसाब से क्0 रुपए चार्ज वसूलते हैं। जिससे रुपए लेने वाला धीरे-धीरे बड़े अमाउंट का कर्जदार हो जाता है.

क्या कहता है कानून

सूदखोरी के लिए क्97म् में यूपी सहकारिता अधिनियम बना था। जिसमें सन् ख्00म् और ख्008 में संशोधन किया गया। यह एक्ट एडीएम फाइनेंस के तहत आता है। जिसके तहत सूदखोर क्ब् प्रतिशत या क्7 प्रतिशत वार्षिक ब्याज पर ही रुपए दे सकता है। इसके लिए साहूकारों को मनीलेंडिंग का लाइसेंस लेना पड़ता है और हर छह महीने में खाते चेक कराने होते हैं। बिना लाइसेंस के ब्याज पर रुपए देना जुर्म है। इसके लिए तीन साल की सजा और जुर्माने का प्रावधान है।

Posted By: Inextlive