- पेरेंट्स ने किया बच्चों को मोबाइल से दूर रखने का फैसला

- सावधान हुए पेरेंट्स ने बच्चों की फोन की डिमांड ठुकराई

- खुद स्कूल-ट्यूशन लाने और ले जाने में भी जुटे पेरेंट्स

Meerut : देवालिका के मर्डर ने बच्चों के पेरेंट्स की सोच को एक बार फिर से बदलने पर मजबूर कर दिया है। ऐसा नहीं है कि वो अपने बच्चों पर शक करने लगे हैं, लेकिन पहले के मुकाबले ज्यादा सतर्क हो गए हैं। जो पेरेंट्स पहले बच्चों को स्कूटी देकर भेजते थे, अब वो समय निकालकर बच्चों को खुद लाने ले जाने का काम कर रहे हैं। जिन बच्चों के पास फोन था या तो उनसे ले लिया है या फिर फोन की डिमांड को ठुकरा दिया है।

मोबाइल ले लिए वापस

इस तरह के बदलाव यूं ही नहीं आए हैं। देवालिका का मर्डर और सावन से दोस्ती से बाकी घरों के पेरेंट्स इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि स्कूल गोइंग बच्चों को मोबाइल फोन की कोई खास जरूरत नहीं है। इसका ताजा उदाहरण ये देखने मिल रहा है कि देवालिका की स्कूल की दोस्तों के पेरेंट्स ने उनसे मोबाइल फोन वापस ले लिए हैं। अगर कोई फोन डिमांड कर भी रहा है उनकी मांगों को ठुकराया जा रहा है।

स्कूल में लाने-ले जाने लगे

कुछ दिन पहले तक जो अपने बच्चों को स्कूटी या बाइक देकर स्कूल रवाना कर रहे थे। अब उसमें बदलाव देखने को मिल रहा है। स्कूल प्रबंधकों और खुद पेरेंट्स इस बात को एग्री करने लगे हैं कि अगर कोई बच्चा स्कूल बस में नहीं आ रहा है तो पेरेंट्स ही उनकी जिम्मेदारी लें। फिर उनका बच्चा इलेवंथ या ट्वेल्थ में ही क्यों न पढ़ रहा हो। ऐसा पेरेंट्स ने करना भी शुरू कर दिया है। राजेंद्र नगर निवासी नरेंद्र शर्मा कहते हैं कि कुछ दिनों तक उनका बेटा अपने आप ही जाता था। लेकिन अब मैं थोड़ा टाइम निकालकर स्कूल लेकर भी जाता हूं और लेकर भी आता हूं।

अब तो खेलने से भी मना

इस घटना के बाद पेरेंट्स में इतना ही बदलाव नहीं हुआ है। कुछ पेरेंट्स ने अपने बच्चों खासकर लड़कियों को स्कूलों में शाम को होने वाले गेम्स सेशन में भी भेजना छोड़ दिया है। पल्लवपुरम की रूबी जैन कहती हैं कि मेरे बच्चे सेंट मेरीज में पढ़ते हैं। शाम को स्कूल में खेलने के लिए आते थे। देवालिका के मर्डर के बाद उन्होंने उसे शाम को गेम्स मे भेजना बंद कर दिया है। वहीं कुछ पेरेंट्स ऐसे भी हैं जो अपने बच्चों को शाम को एक टाइम के बाद बाहर भेजने से मना कर दिया है।

हर कॉल और मैसेज पर नजर

अब पेरेंट्स ने अपने बच्चों से साफ कर दिया है कि अपने दोस्तों को घर के लैंड लाइन नंबर दो या फिर उनके मोबाइल नंबर। ताकि कोई कॉल या मैसेज आए तो उनकी नजर में हो कि कौन या है और किस तरह की बातें हो रही हैं। डिफेंस कॉलोनी में रहने वाले दीपेंद्र कुमार ने कहा कि ये बच्चों की कोई जासूसी नहीं है। बल्कि बच्चों के प्रति पेरेंट्स की थोड़ी सतर्कता है। इतना होना भी जरूरी है। ताकि बच्चों में भटकाव आने से पहले उन्हें रोका जा सके।

सेक्स एजुकेशन जरूरी

इन सब चीजों के बीच पेरेंट्स के बीच से एक नई बात और निकलकर आई है और वो है सेक्स एजुकेशन की। ताकि बच्चों एक एज के बाद बच्चों में इस बारे में भी थोड़ी समझ बढ़ सके और किसी भी तरह का कदम उठाने से पहले दस बार सोचे। न्यू मोहनपुरी निवासी अमित कुमार के बच्चे सेंट मेरीज में पढ़ते हैं। वो कहते हैं कि स्कूलों में किताबी ज्ञान के अलावा और कुछ नहीं है। एक एज के बाद बच्चों की पर्सनैलिटी डेवलपमेंट के अलावा सेक्स एजुकेशन के बारे में जानकारी देनी चाहिए। ताकि इस बारे में बच्चों की समझ और बढ़ सके। आज भी कई लड़के-लड़कियां अपने पेरेंट्स से काफी कुछ छिपाते हैं। घबराते हैं। न जाने उनके पेरेंट्स का क्या रिएक्शन होगा? लेकिन ये बदलाव होना काफी जरूरी है।

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मेरी बेटी सोफिया स्कूल में क्लास नौ में पढ़ती है। जबसे देवालिका हत्याकांड का केस सुना है, हमने तो उससे मोबाइल देना ही बंद कर दिया है। उसका पूरा ध्यान रखते हैं। स्कूटी चलाने को भी नही दे रहे हैं।

-रश्मी, कंकरखेड़ा निवासी

हम तो अपनी बेटी को लेकर पहले से ही सर्तक हैं, लेकिन मेरे हिसाब से स्कूलों में बच्चों को नैतिक गुणों के साथ ही एक उम्र के साथ सेक्स एजुकेशन देना भी बेहद जरुरी है। ताकि वह अपने सही गलत के बारे में सोच सकें।

-डॉ। राजेश त्यागी, बुढ़ाना गेट

मेरी बेटी इंटर क्लास में है और बेटा अभी छोटा है। सेंट मेरीज में है। जबसे इस केस के बारे में सुना है, मैंने अपनी बेटी को घर से बाहर मोबाइल देना बंद कर दिया है। इसके साथ ही मैं उसके मोबाइल से लेकर उसकी हर गतिविधि पर नजर भी रखती हूं।

-मीना यादव, पल्लवपुरम

बेटा सेंट मेरीज में आठवीं क्लास में है। धीरे-धीरे वो बड़ा हो रहा है तो उसमें काफी बदलाव आए हैं। बढ़ती उम्र के साथ ही स्कूल्स में इसके लिए नैतिक मूल्यों की जानकारी के साथ ही सेक्स एजुकेशन देना भी बेहद आवश्यक है, जिससे बच्चे को क्या गलत है इस बारे में पता लग सके।

-अमित कुमार, न्यू मोहनपुरी

सेंट मेरीज क्लास छह में बेटी पढ़ती है। मैने तो जबसे इस केस के बारे में सुना है हमने तो उसे अकेले भेजना बंद कर दिया है। पहले तो वो शाम के समय में स्कूल स्पो‌र्ट्स के लिए आया करती थी, लेकिन अब हमने खेलने के लिए भी भेजना बंद कर दिया है।

-रुबी जैन, ईस्टर्न कचहरी रोड

बेटी नौ में है और बेटा अभी छोटा है। दोनों को ही हमने समझा दिया है किसी भी अंजान व्यक्ति पर विश्वास मत करना और बात भी मत करना। इसके अलावा उन्हें इस मेटर के बारे में जानकारी देकर ये भी समझाया है कि आखिरकार घरवालों के अलावा किसी बाहर के व्यक्ति पर विश्वास रखना ठीक नहीं है।

-दीपेंद्र कुमार, डिफेंस कॉलोनी

मेरे बच्चों को तो मैनें शुरू से ही सिखा रखा है। घर आकर अपनी हर बात बतानी है। अगर कोई आपको कहीं बुलाए तो उसके साथ नहीं जाना है। केवल अपने मम्मी या पापा के अलावा किसी के साथ कहीं नही जाना है।

-मंजू शर्मा, लाला बाजार

मेरी बेटी आठवीं क्लास में एमपीएस में पढ़ती है। मैं हर रोज उससे अपनी दिनभर की बातों को डिस्कस करता हूं। ताकि वो भी मुझसे एक दोस्त की तरह हर बात बताए। क्योंकि बच्चों के मां-बाप उनके अच्छे दोस्त हों तो उन्हें किसी अन्य की दोस्ती की आवश्यकता नहीं पढ़ती।

-एमएफ चौधरी, श्यामनगर

Posted By: Inextlive