jamshedpur: लिव-इन रिलेशनशिप के सोशल एक्सेप्टेंस और लीगल वैलिडिटी को लेकर लंबे समय से बहस होती रही है.

लिव-इन रिलेशनशिप के सोशल एक्सेप्टेंस और लीगल वैलिडिटी
 लिव-इन रिलेशनशिप के सोशल एक्सेप्टेंस और लीगल वैलिडिटी को लेकर लंबे समय से बहस होती रही है। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में लिव-इन रिलेशनशिप में रह रही महिलाओं और उनसे पैदा हुए बच्चों के प्रोटेक्शन के संबंध में कई गाइडलाइन्स दिए हैं। लिव-इन-रिलेशनशिप पर हो रही इस कानूनी बहस पर सिटी के लोगों की भी अलग-अलग राय है।

सोच समझकर लेना चाहिए decision
लिव-इन रिलेशनशिप को रेग्युलेट करने के लिए प्रोविजन होने चाहिए या नहीं, ऐसे रिलेशन में रह रहे लोगों के राइट्स के प्रोटेक्शन को लेकर कानून बनने चाहिए या नहीं, ये सवाल हमेशा से उठते रहे हैं। 2010 में दिल्ली हाई कोर्ट ने एक फैसले में लिव-इव रिलेशनशिप को वॉक इन एंड वॉक आउट रिलेशनशिप बताते हुए कहा था कि ऐसे रिलेशनशिप में पार्टनर्स के बीच कोई लीगल बांड नहीं बनता। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने लिव-इन रिलेशनशिप में रह रहे लोगों को राहत दी है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में लिव-इन रिलेशनशिप को डोमेस्टिक वायलेंस एक्ट में बताए गए रिलेशनशिप की परिभाषा में लाने के लिए कई गाइडलाइन दिए हैं, जिससे कि ऐसे रिलेशनशिप में रही महिलाओं और उनके बच्चों को प्रोटेक्शन मिल सके। कोर्ट के इस डिसीजन का सिटी में भी लोग वेलकम कर रहे हैं।

बेहद जरूरी है कानून
कई बार लिव-इन रिलेशनशिप के नाम पर लोग सिर्फ अपने पार्टनर का इमोशनल और सेक्सुअल एक्सप्लाएटेशन करते हैं। रिलेशनशिप में किसी तरह का इमोशनल अटैचमेंट नहीं होता, किसी तरह की लीगल वैलिडिटी ना होने की वजह से ऐसा करने में लोग किसी तरह का संकोच भी नहीं करते। ऐसे में अगर कानून बनता है तो इसका वेलकम करना चाहिए, ये कहना है हर्ष का। हर्ष जैसे ही सिटी के ज्यादातर यूथ कुछ इसी तरह की राय रखते हैं। हालांकि कई लोग कानून बनाते वक्त इस मुद्दे से जुड़े सभी पहलुओं पर विचार करने की जरूरत बता रहे हैं। हाल ही में एमबीए कम्प्लीट करने वाले निकोलस पायस ने बताया कि अगर दोनों पार्टनर अपनी मर्जी से रिलेशनशिप को खत्म करना चाहते हैं, तो इस कंडीशन में कोई लीगल बांड नहीं होना चाहिए।

लडक़ों के लिए भी हो rights
कुछ लोग महिलाओं के साथ-साथ लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाले पुरूषों के लिए भी कानूनी अधिकार होने की जरूरत बता रहे हैं। साइकोलॉजिस्ट निधि श्रीवास्तव ने कहा की कई बार लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाली महिलाएं रिलेशन को छोडक़र चली जाती हैं। ऐसे में कई बार लडक़े इमोशनल तौर पर काफी टूट जाते हैं। इस सिचुएशन में जरूरी है कि उनके लिए भी कुछ कानूनी अधिकार हो।
कोई भी कानून काफी सोच समझकर बनाया जाना चाहिए। अगर दोनों पार्टनर अपने मर्जी से रिलेशनशिप को छोडऩा चाहे तो कोई लीगल ऑŽलीगेशन नहीं  होना चाहिए।
निकोलस पायस, कदमा
लिव-इन रिलेशनशिप सालों से चलते आ रहा है। कई लोग इसका गलत फायदा उठाते हैं। ऐसे में जरूरी है कि ऐसे रिलेशनशिप को रेग्युलेट किया जाए।
वैभव, साकची
कानून सिर्फ गल्र्स के लिए नहीं बल्कि लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाले Žवॉयज के लिए भी होना चाहिए। ये जरूरी है कि दोनों की राइट्स की रक्षा हो।
निधि श्रीवास्तव, साइकोलॉजिस्ट
लिव-इन रिलेशनशिप के केसेज दिन-ब-दिन बढ़ रहे हैं। ऐसे में जरूरी है कि रिलेशनशिप में रहने वाले लोगों के राइट्स के प्रोटेक्शन के लिए लॉ बने।
हर्ष, कदमा

Report by : jamshedpur@inext.co.in

 

Posted By: Inextlive