-खादी एवं ग्रामोद्योग प्रदर्शनी में कश्मीरी हस्तशिल्पियों ने लगाए हैं स्टॉल्स

-तीन लाख रुपए तक कीमत की पश्मीना शॉल बनीं आकर्षण का केन्द्र
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PRAYAGRAJ: कुंभ में कश्मीर चमक रहा है। जीहां, कश्मीर की फेमस पश्मीना शॉल का क्रेज प्रयागराज में सिर चढ़कर बोल रहा है। परेड ग्राउंड त्रिवेणी रोड स्थित उप्र खादी एवं ग्रामोद्योग बोर्ड और ग्रामोद्योग आयोग की प्रदर्शनी में कश्मीर के सैकड़ों हस्तशिल्पियों ने स्टॉल लगाए हैं। इन कश्मीरी स्टॉल्स पर 15 हजार से लेकर 3 लाख तक की पशमीना शॉल हैं। हस्तशिल्पियों का दावा है कि कई वैरायटीज और कलर में उपल्ब्ध यह शॉल कड़ाके की सर्दी में भी ठंड का एहसास नहीं होने देंगी। इसके अलावा वूलेन सूट, कुर्ती वगैरह भी यहां उपलब्ध हैं।

दूर-दूर से आ रहे खरीदार
कश्मीर, पहलगाम निवासी हस्तशिल्पी इरशाद अहमद बट कहते हैं कि वे पिछले 19 साल से प्रयागराज के कुंभ में आ रहे हैं। पश्मीना शॉल के शौकीन दूर-दूर से यहां खरीदारी के लिए आते हैं। प्रयागराज कुंभ केदौरान जाने-पहचाने हुए खरीदार इन शॉलों को खरीद रहे हैं। शॉल के बारे में जानकारी देते हुए बट ने बताया कि पशमीना शॉल की पहचान करना आमतौर पर थोड़ा मुश्किल होता है। ज्यादातर ग्राहक विश्वास पर ही खरीदारी करते हैं।

यह है खासियत

इस खास शॉल की खासियत के बारे में हस्तशिल्पी शजाद अहमद और वसीर अहमद ने बताया

-यह शॉल देश के सबसे महंगे पहनावे में से एक है।

-पश्मीना शॉल जिस ऊन से बनाई जाती है वो बकरी लद्दाख में माइनस 14 डिग्री टेम्प्रेचर पर रहती है।

-ऊन को निकालने का तरीका भी अलग होता है। बकरी के बालों को कंघी करने के बाद जो रेशा कंघी में रह जाता है उसी से पशमीना शॉल बनाई जाती है।

-इस रेशे को आम बोलचाल की भाषा में किंग ऑफ वूल भी कहते हैं।

-एक शॉल को बनाने में करीब तीन साल का समय लगता है।

-दावा है कि सबसे कीमती शॉल एक अंगूठी से भी निकल जाती है।

वापस ले लेते हैं पुरानी शॉल
हस्तशिल्पी वसीर अहमद के मुताबिक वे पुरानी शॉल को वाजिब दामों में खरीद लेते हैं। इस पुरानी शॉल की कढ़ाई निकालकर वे दूसरी शॉल बनाते हैं, जो एंटीक होती है। इसे इसे देश के बाहर बेचा जाता है। दावा है कि इन शॉल को ओढ़ने के लिए नहीं बल्कि म्यूजियम में रखने के लिए मोटी रकम देकर गल्फ कंट्रीज में लोग खरीद रहे हैं।

विलुप्त हो रही बकरी
आमतौर पर पश्मीना बकरी के नाम से फेमस एक खास किस्म की बकरी की ऊन से पश्मीना शॉल बनाई जाती है। इसे चांगरा भी कहते हैं। यह बकरी भारत में जम्मू-कश्मीर, तिब्बत, नेपाल, म्यांमार के कुछ हिस्सों और लद्दाख के पड़ोसी क्षेत्रों में पठारों पर पाई जाती है। इसका वैज्ञानिक नाम कैप्रा ऐगाग्रस हिरकस है। हस्तशिल्पियों ने पीड़ा बयां करते हुए कहा कि विदेशों में चर्चित देश की पश्मीना शॉल आने वाले दिनों में इतिहास बनकर रह जाएगी। क्योंकि इस प्रजाति की बकरी तेजी से विलुप्त हो रही है।

Posted By: Inextlive