-बायो डायवर्सिटी, ग्राउंड वाटर रिचार्जिग है मुख्य चुनौती

PATNA: दो फरवरी को व‌र्ल्ड वेटलैंड डे मनाया गया। दुनिया भर में यह दिन वेटलैंड यानि नमी वाली भूमि के संरक्षण और इसके महत्व को रेखांकित करने के लिए मनाई जाती है। पटना के लिए इस ग्लोबल मार्किंग डे का खास महत्व है, क्योंकि पटना वर्षो पहले कभी वेटलैंड का आदर्श और विस्तृत क्षेत्र हुआ करता था। लेकिन विडंबना यह है कि वर्तमान में पटना का करीब 70 परसेंट वेटलैंड गायब हो चुका है। दूसरे श?दों में कहें, तो यह लुप्त हो चुका है। इसका कारण इसका बेतहाशा शहरीकरण होना है। यह नकारात्मक ट्रेंड लगातार गति पकड़ रहा है। लेकिन न तो सरकार और न ही सिविल सोसाइटी ही इसे बचाने के लिए आगे आ रही है।

मोड़ से सिटी तक था वेटलैंड

वेटलैंड या नम भूमि का क्षेत्र पटना में सगुना मोड़ से लेकर पटना सिटी तक फैला हुआ था जो कि अब करीब 70 परसेंट तक नष्ट हो गया है। जूलाजिकल सर्वे ऑफ इंडिया, पटना के प्रभारी अधिकारी और वैज्ञानिक डॉ गोपाल शर्मा ने बताया कि पटना में वेटलैंड का एक बड़ा क्षेत्र समाप्त हो चुका है। इसे बचाने के लिए सिविल सोसाइटी और सरकार को सामने आना चाहिए। कभी मुसल्लहपुर और बाजार समिति का एरिया पूरा

वेटलैंड होता था।

राजधानी में इस तरह हो रहा गलत असर

जहां प्राकृतिक रूप से वेटलैंड होता है वहां प्राकृतिक रूप से वाटर रिचार्जिग होते रहता है। बारिश के बाद इस निम्न भूमि क्षेत्र में पानी जमा रहता है। गर्मी के दिनों में इसके रिचार्जिग का लाभ लोगों को मिलता था। इसे लेकर डॉ गोपाल शर्मा ने दो खतरों के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि एक ओर पटना में गंगा शहर से दूर होती जा रही है और दूसरी ओर वेटलैंड के समाप्त होने और उसे भरकर मानव बसावट के कारण वेटलैंड से होने वाला वाटर रिचार्जिग समाप्त हो गया है। पहले जहां पानी जमीन से 150 फीट तक नीचे निकलने लगता था अब यह 200 फीट गहरा करने के बाद भी नहीं निकल रहा है। समय रहते इस पर ध्यान नहीं दिया गया तो फ्यूचर में और भयावह होगा। पानी के लिए भी पटना के लोगों को भटकना पड़ेगा।

पर्यावरण के लिए भी है खतरनाक

वेटलैंड के समाप्त होने के कारण पर्यावरण को भी खतरा उत्पन्न हो गया है। वेटलैंड में ही स्थायी तौर पर रहने वाले सैड़कों जीवों का सफाया हो गया है। इसमें कई प्रकार की पक्षियों की प्रजातियां भी शामिल हैं। इसके कारण प्राकृतिक रूप से चली आ रही खाद्य श्रृंखला भी खतरे में आ गया है। दूसरी ओर, इसके क्षेत्र में अपेक्षाकृत ज्यादा नमी होने और हवा के फिलटरेशन का भी काम होता था। जो कि अब नहीं है। इससे पर्यावरण को भी बड़े पैमाने पर नुकसान हुआ है।

पटना में अब तक 115 वेटलैंड नष्ट हो चुके हैं। इसके कारण पर्यावरण और मानव दोनों को खतरा उत्पन्न हो रहा है।

-डॉ गोपाल शर्मा,

प्रभारी अधिकारी, जेडएसआई

Posted By: Inextlive