तीर्थराज प्रयाग में गंगा यमुना व अदृश्य सरस्वती के पावन त्रिवेणी तट पर आज दूसरे प्रमुख शाही स्नान पर्व पौष पूर्णिमा से कल्पवास शुरू हो गया।

Dhruva.shankar@inext.co.in

PRAYAGRAJ (20 Jan)

तीर्थराज प्रयाग में गंगा, यमुना व अदृश्य सरस्वती के पावन त्रिवेणी तट पर आज दूसरे प्रमुख शाही स्नान पर्व पौष पूर्णिमा से कल्पवास शुरू हो गया। संगम स्नान करने के साथ ही त्याग-तपस्या का प्रतीक कल्पवास के जरिए देशभर के गृहस्थ संगम तीरे टेंट में रहकर एक महीने तक जपतप व अनुष्ठान में तल्लीन हो जाएंगे। मोक्ष की आस में संतों के सानिध्य में समय व्यतीत करेंगे। सुख-सुविधाओं को त्याग करके दिन में एक बार भोजन व तीन बार गंगा स्नान कर तपस्वी का जीवन व्यतीत करते रहेंगे। हालांकि रविवार को पूर्णिमा का व्रत-पूजन शुरु हो गया था। लेकिन उदया तिथि की वजह से पूर्णिमा का स्नान-दान सोमवार को किया जा रहा है।

आता रहा रेला, बस गया मेला

पौष पूर्णिमा से माघ मास का प्रारंभ हो गया, जो 19 फरवरी तक रहेगा। यही वजह रही कि पूर्णिमा स्नान पर्व से एक दिन पहले रविवार को दूरदराज के क्षेत्रों से कल्पवास करने के लिए श्रद्धालुओं का जत्था संगम की रेती पर पहुंचता रहा। सुबह से ही प्रयागराज जंक्शन, प्रयाग स्टेशन, रामबाग व प्रयागघाट स्टेशन से श्रद्धालुओं की भीड़ पैदल ही मेला एरिया की ओर पहुंचनी शुरू हो गई। गंगोत्री-शिवाला पांटून पुल, काली पांटून पुल व दशाश्वमेध पांटून सहित आधा दर्जन पुलों से दिनभर चार पहिया, टाटा मैजिक व ट्रैक्टर आदि साधनों से श्रद्धालु मेला में अपने-अपने शिविरों में पहुंचे। इतना ही नहीं देर शाम तक उप्र राज्य सड़क परिवहन निगम के प्रयागराज परिक्षेत्र के अलग-अलग पार्किंग स्थलों से शटल बस सेवा की सुविधा लेकर भी श्रद्धालुओं का जत्था मेला एरिया तक पहुंचता रहा।

कल्पवास में खास


1. मान्यता है कि कुंभ के समय देवतागण स्वयं संगम तट पर विचरण करते हैं। इस समय श्रद्धा भाव से उनका ध्यान करने से साधक का कल्याण होता है।

2. व्रत व उपवास कल्पवास का अति महत्वपूर्ण अंग है। इसमें नित्य व काम्य व्रत रखा जाता है। नित्य व्रत से तात्पर्य बिना किसी अभिलाषा के ईश्वर प्रेम में किए गए व्रतों से है। जबकि काम्य व्रत किसी अभीष्ट फल की प्राप्ति के लिए किए गए व्रत होते हैं।

3. कल्पवास के दौरान बह्मचर्य का पालन किया जाना चाहिए। विलासिता पूर्ण व्यसनों का त्याग, गरिष्ठ भोज्य पदार्थों का त्याग व काम—वासना का त्याग ब्रह्मचर्य पालन में प्रमुख रूप से शामिल है।

कल्पवास से होता है कायाकल्प, ये हैं नियम 


शास्त्रों में वर्णित है कि कल्पवास करने से साधक का कायाकल्प हो जाता है। मनसा, वाचा, कर्मणा व पवित्रता के बिना कल्पवास निष्फल हो जाता है। ज्योतिषिचार्या पंडित विद्याकांत पांडेय बताते है कि कल्पवास के लिए कठोर नियम बताए गए हैं। इन नियमों में...

1. झूठ न बोलना 2. इन्द्रियों का शमन 3. साधु-संन्यासियों की सेवा 4. हिंसा व क्रोध न करना 5. दया-दान करना 6. नशा न करना 7. सूर्योदय से पूर्व उठना 8. नित्य प्रात: संगम स्नान 9. तीन समय संध्या पूजन 10. हरिकथा श्रवण व एक समय भोजन 11. भूमि पर शयन करना

ज्योतिषाचार्य पंडित विद्याकांत पांडेय के अनुसार, कुंभ मेला के दौरान संगम तट पर कल्पवास का विशेष महत्व है। पद्म पुराण व ब्रह्म पुराण के अनुसार, कल्पवास की अवधि पौष मास की शुक्लपक्ष की एकादशी से प्रारंभ होकर माघ मास की एकादशी तक है। नियमों का पालन किया जाना साधक की उन्नति और परिजनों की सुख-समृद्धि में निरंतर वृद्धि का कारक बनता है।

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Posted By: Kartikeya Tiwari