-परीक्षितगढ में ऋषि विभांडक के प्राचीन आश्रम में मौजूद है आज भी पीपल का वृक्ष

-दीपावली, अक्षया तृतीया की सुबह व होली की शाम को पेड़ से होता है सुगंध का अहसास

Parakshitgarh : ऐतिहासिक नगरी परीक्षितगढ़ में पश्चिम दिशा को जाने वाले मार्ग पर रजवाहे के पास ऋषि विभांडक का आश्रम था। आश्रम के बाद बचे पीपल के पेड़ से आज भी ओम की ध्वनि सुनाई देती है। इसके अलावा दीपावली, अक्षया तृतीया की सुबह व होली की शाम को पेड़ से विशेष प्रकार की सुगंध फैलती है जिसका अहसास लोगों को सहज ही हो जाता है। इसका वर्णन तुलसी दास रचित रामायण के बाल कांड में है।

बालकांड में वर्णित यह स्थान

मान्यता है कि तुलसी द्वारा रचित रामायण में वर्णित बालकांड में इस स्थान की महत्ता का इस बात से पता चलता है कि राजा दशरथ जब पुत्र प्राप्ति के लिए चिंतित थे, तब वे गुरू वशिष्ठ के पास पहुंचे। गुरु ने राजा दशरथ को बताया कि विभांडक ऋषि के पुत्र जिन्हें श्रृंगी ऋषि के नाम से जाना जाता है वे ही ऐसे महान संत है जो पुत्रयेष्ठी करना जानते है। आप उनके पास जाकर प्रार्थना करेंगे तो वे आपकी मनोकामना पूरी करेंगे।

याचक बनकर गए थे दशरथ

राजा दशरथ अपनी सेना को साथ चलने की आज्ञा देते है। इस पर गुरू वशिष्ठ उन्हें रोककर समझाते है कि राजन आप उनके पास कुछ मांगने जा रहे है शान दिखाने नहीं। इसलिए आपको उनके पास एक याचक की तरह जाना होगा। तभी राजा दशरथ बिना सेना लिए पैदल ही विभांडक ऋषि के पास पहुंच कर ऋषि से याचना करते हैं कि वे अपने पुत्र श्रृंगी ऋषि को पुत्रयेष्ठी यज्ञ करने की आज्ञा दे।

पिता की आज्ञा पाकर श्रृंगी ऋषि बड़े प्रसन्न हुए और राजा दशरथ को यज्ञ के नियम बताए। यज्ञ के उपरांत ऋषि ने उन्हें चार पुत्रों का वरदान दिया था। हालांकि विभांडक ऋषि का आश्रम तो नहीं रहा, मगर उसका वर्णन रामायण और रावण संहिता में भी है। श्रृंगी ऋषि को अपने पिता से ही त्रिकाल दृष्टि प्राप्त हुई थी। तथा पुत्रयेष्ठी यज्ञ का ज्ञान मिला था।

एक रात में हो गई सिचाई

नगर के जितेश कुमार एक वाकया बताते हैं कि वर्षो पहले उनके बाबा दुर्जन सिंह रात में खेत पर सिचाई करने जा रहे थे उस समय उन्हें एक लंबे व गठीले शरीर वाले व्यक्ति मिले जो उस स्थान पर घूम रहे थे। उसने दुर्जन सिंह से पूछा की कहां जा रहे हो तो उन्होंने कहा कि खेत की सिचाई करने जा रहा हूं। उस व्यक्ति ने कहा कि वापस चले जाओ। खेत की सिचाई हो जाएगी। सुबह जाकर देखा तो खेत की सिचाई हो चुकी थी। उन्हें देखकर हैरानी हुई कि जो सिचाई का कार्य तीन दिन में पूरा होता था वह एक ही रात में पूरा कैसे हो गया।

वृक्ष से निकलती है ध्वनि

माना जाता है कि आज भी विभांडक ऋषि की आत्मा इस स्थान पर रहती है। वही इस स्थान पर मौजूद प्राचीन पीपल का वृक्ष है। लोगों का कहना है। कि इस वृक्ष से आज भी ओम की ध्वनि सुनाई देती है। जैसे कोई व्यक्ति तपस्या कर रहा हो। यहां पर खड़े खजूर व केले आदि के वृक्षों से भरा स्थल मनोरम प्रतीत होता है।

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फोटो परिचय

मावा क् : श्रृंगी ऋषि के आश्रम में लगा पीपल का पेड़

Posted By: Inextlive