Bareilly : केदारघाटी में यूं तो हजारों लोगों को मौत का सैलाब अपने साथ बहा ले गया. लेकिन 16 जून की उस भयावह रात को किस्मत ने कुछ लोगों का साथ दिया तो वे मौत को मात देने में कामयाब रहे. बरेली के कुछ ऐसे ही खुशनसीब लोग पांच दिन बाद अपनों तक पहुंचे हैं. हालांकि उस त्रासदी की खौफनाक तस्वीरों का ख्याल भी उनमें सिहरन पैदा कर रहा है. लेकिन पल-पल पास आती मौत और उससे जूझने का जज्बा उन्हें ताउम्र नहीं भूल पाएगा. क्या बच्चे और क्या बड़े... केदारनाथ की यात्रा से लौटकर आने वाले बच्चों की आंखों में भी मौत का खौफ साफ देखा जा सकता है. गौरीकुंड से घर पहुंचे कुछ ऐसे ही लोगों ने आई नेक्स्ट के साथ अपने दर्दनाक अनुभव साझा किए.


सैलाब में बह गया हमारा होटल


मैं अपने चार दोस्तों के साथ 15 जून को केदारनाथ और बद्रीनाथ के दर्शन के लिए निकला था। रात को गौरीकुंड से सात किमी पहले फाटा गांव तक पहुंच गया। पूरी यात्रा के दौरान हमें बारिश ही होती मिली तो हमने फाटा में ही रुकने का प्लान किया। हालांकि हमें गौरीकुंड में रुकना था। अगले दिन सुबह 6:30 बजे हम केदारनाथ के निकलने लगे तो हमें बताया गया कि केदारनाथ के ऊपर जो पानी का स्रोत है, वह फट चुका है। उसके तुरंत बाद ही वहां बादल फट गया। इसके बाद लैंड स्लाइड शुरू हो गई। इसके बाद ऊपर जाने का तो सवाल ही नहीं उठता था, क्योंकि सारे रास्ते बंद हो चुके थे। पर जब हम नीचे उतरने के  लिए कुंड ब्रिज तक पहुंचे तो वह भी बह चुका था। ऐसे में, नीचे भी जाना मौत के पास जाने के बराबर था। हमें जान बचाने के लिए 5 कि मी वापस गुप्तकाशी जाना पड़ा। लेकिन, यहां भी खतरा कम नहीं था। यहां कुछ स्थानीय लोगों ने हमें कच्चे रास्ते से निकलने की सलाह दी। क्योंकि हम जिस होटल में रुके थे, वह भी पानी में बह गया था। इस बीच हमने दो रातें रोड पर रुक कर ही काटीं। इसके बाद, रास्तों से पत्थर हटाते हुए बमुश्किल आगे बढ़ते जा रहे थे। हमनें कु छ दूरी पैदल भी तय की। जब हम कच्चे रास्ते पर बढ़ रहे थे तो यहां कार के फिसलने का भी काफी डर था। पर हमारी कार के पीछे तकरीबन 2000 कार और चल रही थीं, ऐसे में अगर एक भी कार फिसल जाती तो यह हादसा और भी बड़ा हो जाता है। मैं शुक्रगुजार हूं ईश्वर का कि मैं मेरे फ्रेंड्स गोपाल, गौतम और सचिन के साथ वापस आ सका। जब हम फंसे हुए थे तो मोबाइल नेटवर्क ना होने की वजह से सबसे ज्यादा प्राब्लम सामने आई।- विनोद यजुर्वेदी, ओल्ड सिटी देखते ही देखते कई गाडिय़ां समा गईं

गौरीकुंड से वापस घर आई तो लगा कि अब हम सकुशल है। मैं अपने हसबैंड, बेटी और भतीजे के साथ केदारनाथ और बद्रीनाथ जाने के लिए निकली थी। पर गौरीकुंड से कुछ पहले ही एक गांव में लैंड स्लाइड से रुकना पड़ा। दो दिन के लिए रु ककर आगे बढऩे को थे, पर जब हमें भयानक तबाही की सूचना मिली तो हमने वापसी का प्लान बना लिया। पर लैंड स्लाइड की वजह से सारे रास्ते बंद थे, वापस आने का कोई जरिया ही नहीं था। ऐसे में, हमें कच्चे रास्ते से निकलती हुईं कुछ कार दिखाई दी। बस उसके बाद हमने उनसे ही अपनी कार भी उनके काफिले में शामिल करने की रिक्वेस्ट की। यह सभी कारें एक जेसीबी मशीन के पीछे चल रही थीं। पर इस दौरान एक जंगल में जेसीबी वाले ने भी गुमराह करते हुए हमें वहीं छोड़ दिया, हालात यह थे, कि वहां किसी भी समय तेंदुए आ सकते थे। ऐसे में, डर के आगोश में ही हमने पूरी रात गुजारी। दो दिन बाद तो खाने के लिए प्रॉब्लम होनी शुरू हो गई। बच्चे तो चिप्स और कोल्ड ड्रिंक्स के सहारे ही रहे। जहां पर रास्ता संकरा होता था, वहां हम सभी गाड़ी से बाहर निकल जाते थे, पर मेरी बेटी कार में ही रहती थी। वह पथरीले रास्तों पर चल ही नहीं पा रही थी और उसे लेकर चलना हमारे लिए भी मुश्किल ही था। पर इस सबके बीच हमारी सबसे ज्यादा हेल्प विलेजर्स ने की। उन्होंने उनके घर का राशन पकाकर हमको खाना खिलाया। रास्तों पर सबसे ज्यादा डर लैंड स्लाइड का था। कुछ गाडिय़ों पर तो लैंडस्लाइड के दौरान पत्थर भी गिर गए। हमारी आंखों के सामने से कई गाडिय़ां पानी में समा गईं। - विभा पाठक, सिविल लाइंस

बच्ची को खिलौना दिला रहा था कि मौत दिखी सामने
हम 12 जून को केदारनाथ और बद्रीनाथ जाने के लिए निकले थे। 15 जून को केदारनाथ में मैंने, मेरी पत्नी और बच्चों के साथ दर्शन किए और हम वहां से निकल गए। तेज बारिश की वजह से वहां मैं, अपने बच्चों से अलग हो गया और गौरीकुंड तक पहुंच गया। तकरीबन 5 घंटे की तलाश के बाद मुझे मेरी पत्नी की खबर मिली कि वह खच्चर स्टैंड के पास है। उस समय उसे बुखार आ रहा था, फिर भी पता नहीं क्या हुआ कि मैं बीमार पत्नी के  साथ ही गौरीकुंड के बजाए सोन प्रयाग के पास शिमली में रुका। पर जब सुबह हमें बादल फटने की सूचना मिली तो जैसे मौत के मुंह से निकलने का एहसास हुआ। इसके बाद हम बद्रीनाथ के लिए निकले और ऊखीमठ तक पहुंच गए। वहां जाकर पुलिस वालों ने हमें रोक दिया और वापस जाने को कहा। इसके बाद मेरे एक दोस्त जो श्रीनगर तक ही पहुंचे थे उनसे बात हुई। तो बताया कि ऊपर से जो भी पानी आ रहा है उसमें डेडबॉडीज ही बहकर आ रही हैं। उन्होंने जल्द ही लौट आने को कहा। पर तब तक सारे रास्ते बंद हो चुके थे। हमें स्थानीय लोगों ने कच्चे रास्ते के बारे में बताया, पर वहां भी एक झरना पास करना था। उस झरने से डरकर तो कई लोग वापस लौट गए। मरने का डर तो था ही ऐसे में हमने रिस्क लिया और झरना पार किया। जब हम वापस आ रहे थे, तो फंस गया, बच्ची खिलौना खरीदने की जिद की तो खिलौना दिलाने लगा, इतने में सैलाब ने करीब 500 बाइक्स और कार समेट ली। इस बीच हमने सन्नाटे में जो रातें काटीं, उन्हें सोचकर तो आज भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं।- संजय गंगवार, राजेंद्र नगर

Posted By: Inextlive