sunil.yadav@inext.co.in यूपी में एक बार फिर दलाल सस्ती दवाइयों के नाम पर मरीजों की सेहत और सरकारी राजस्व के साथ खिलवाड़ करने वाले थे. दवा कंपनियों के साथ मिलकर उन्होंने इसकी पूरी प्लानिंग भी कर ली थी. मगर समय रहते जीवन रक्षक दवाओं की सप्लाई का कॉन्ट्रैक्ट पाने के लिए अप्लाई करने वाली 56 कंपनियों में से 41 के दायर किए गए झूठे हलफनामों ने सारी पोल खोल दी. सीएमएसडी ने झूठे हलफनामे देने वाली कंपनियों पर नकेल कसने की ठान ली है. अब स्वास्थ्य विभाग इन पर कानूनी कदम उठाने के लिए विधिक राय-मशविरा कर रहा है.


41 कम्पनियों पर लटकी तलवार

दरअसल, स्वास्थ्य विभाग द्वारा प्रदेश भर के लिए लगभग साढ़े चार सौ करोड़ रुपये की दवाओं का रेट कांट्रैक्ट होना था। इसके लिए स्वास्थ्य विभाग ने जून, 2013 में टेंडर जारी किया था। इसमें लगभग 56 कम्पनियों ने आवेदन किया। इसके तहत इंजेक्टेबल दवाएं, सामान्य दवाओं और जीवन रक्षक दवाओं की सप्लाई के लिए टेंडर निकाले गए थे। मगर कंपनियों द्वारा डाले गए टेंडर की फाइलें जब खंगाली गईं तो कंपनियों की गड़बड़ी सीएमएसडी के अधिकारियों ने पकड़ ली। 56 में से 41 कम्पनियों ने रेट कांट्रैक्ट के लिए झूठे हलफनामे दिए थे। जीवन रक्षक दवाओं द्वारा की जा रही धांधली के बारे में जब अधिकारियों ने प्रमुख सचिव को जानकारी दी तो उन्होंने सबको नोटिस देने और दोषी साबित होने पर कार्रवाई के निर्देश दे दिए। अक्टूबर में इन सभी कम्पनियों को नोटिस दिए गए। कुछ कम्पनियों ने इसका जवाब दिया तो कुछ ने इसका जवाब देना तक उचित नहीं समझा.

हो जाएंगी ब्लैक लिस्टेड

अब यदि इन आरोपी कंपनियों पर कार्रवाई की गई तो इन्हें ब्लैकलिस्टेड कर दिया जाएगा। ऐसे में ये कंपनियां प्रदेश में कभी भी दवाइयों की सप्लाई नहीं कर सकेंगी। इनमें ओमेगा बायोटेक, यूनीक्योर इंडिया प्राइवेट लिमिटेड, मेडीपोल, सैमसंग, सहित 41 अन्य कंपनियां ऐसी हैं जो स्टेट में ही सस्ती कीमतों में दवाएं उपलब्ध करा रही हैं.

प्रदेश के साथ ऐसा क्यों?

दरअसल, यूपी के लिए इन कंपनियों ने जो हलफनामा लिखकर दिया है। उसमें उन्होंने लिखकर दिया है कि वे इस स्टेट या दूसरे स्टेट में इससे सस्ती दवाएं उपलब्ध नहीं करा रहे हैं। सूत्रों की मानें तो इनमें से कई कम्पनियां पहले से यूपी सरकार को महंगी दरों पर दवाएं सप्लाई कर रही हैं और प्रदेश को करोड़ों रुपये का चूना लगा रही हैं। सूत्रों के मुताबिक, इन कंपनियों ने यूपी को सप्लाई करने वाली दवाओं का जो कोटेशन दिया है वह अन्य प्रदेशों के मुकाबले काफी अधिक हैं। हालांकि, स्वास्थ्य विभाग ने जो टेंडर मांगे थे उनमें साफ कहा गया था कि दवा कंपनी द्वारा कोट की गई दर ईएसआई, डीपीसीओ, डीजीएस एंड डी, होल सेल और बाजार भाव से अधिक न हो। इसके अलावा कोटेड दर से कम दर पर आइटम प्रदेश में कहीं भी आपूर्ति न की गई हो। साथ ही कम्पनियों की अर्नेस्ट मनी डिपाजिट (ईएमडी) या सिक्योरिटी मनी को कहीं न तो जब्त किया गया हो, न उन पर कोई केस चल रहा हो और न ही वे ब्लैक लिस्टेड हों। लेकिन, इन कम्पनियों ने हमेशा की तरह टेंडर की शर्तों को अनदेखा कर दिया.

लीगल सेल से ली जा रही राय

सीएमएसडी के सूत्रों की मानें तो मामले के लिए लीगल सेल से सलाह मांगी गई है, ताकि अगर कंपनियों पर कार्रवाई हुई और वे इसके विरोध में कोर्ट गईं तो उसके लिए पहले से ही तैयारी की जा सके। लीगल सेल से सलाह लेने के बाद ही स्वास्थ्य विभाग इन सभी कंपनियों को ब्लैकलिस्ट करने के साथ ही इनकी सिक्योरिटी मनी को जब्त कर लेगा। सभी कंपनियों ने 5 हजार से लेकर 50 हजार रुपये तक की सिक्योरिटी मनी जमा की है.

दवा कंपनियों का जवाब

सीएमएसडी के सूत्रों की मानें तो नोटिस के जवाब में कई कंपनियों ने कहा है कि वर्ष 2010 में ईएसआई को दवा सप्लाई करने वाली कंपनियों का रेट कांट्रैक्ट एक्स्टेंड किया गया था। इस कारण वे उसी दर पर दवाएं उपलब्ध करा रही हैं, जबकि स्वास्थ्य विभाग के टेंडर में उन्होंने लेटेस्ट दरों को कोट किया था। इस कारण ही दरों में असमानता है। क्योंकि, पांच साल पहले डॉलर की कीमतें कम थीं और फ्यूल रेट्स भी कम थे। डॉलर की कीमतें बढऩे का भी दवाओं के रेट पर असर पड़ा है, क्योंकि ज्यादातर दवाओं का रॉ मैटेरियल बाहर से भी आता है.

दलाल डालते हैं टेंडर

सीएमएसडी के सूत्रों के मुताबिक, ज्यादातर कंपनियों का टेंडर दलाल डालते हैं। एक ही दलाल कई कम्पनियों के टेंडर डालते हैं। वे अधिकारियों से साठगांठ कर टेंडर भी कंपनियों को दिला देते थे। सालों से जमे दलालों ने इस बार भी वही किया जो पहले करते थे। लेकिन, इस बार वे फंस गए। हालांकि, कुछ नेशनल कंपनियों ने खुद कोटेशन डाला था। फिर भी उन्होंने ऐसी गलती की। सस्ती दवाएं महंगे दामों पर यूपी सरकार सप्लाई कर मरीजों और सरकार के राजस्व दोनों के साथ ही खिलवाड़ है.

कंपनियों को होगी दिक्कत

अगर कंपनियों की ईएमडी जब्त की गई तो उनके लिए दिक्कत हो सकती है। क्योंकि, दूसरे प्रदेशों में भी वे दवाएं सप्लाई नहीं कर सकेंगी। 5 से 50 हजार की राशि भले ही कम्पनियों के लिए मैटर न करती हो लेकिन उनके दामन में लगा दाग उनके लिए पूरे देश में रास्ते बंद कर देगा। सूत्रों की मानें तो विभाग ने सभी 41 कम्पनियों की ईएमडी जब्त करने की पूरी तैयारी कर ली है। खास बात यह है कि एक-एक कम्पनी ने 50 तो किसी ने 100 मॉलीक्यूल के लिए टेंडर डाला था.

क्‍या कहते है जानकार

मामले में जांच पूरी हो गई है। कंपनियों द्वारा दिए गए हलफनामे में कमियां पाई गई हैं। विधिक राय के बाद ही कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है.

डॉ। रमेश श्रीवास्तव डायरेक्टर, सीएमएसडी

Posted By: Inextlive