-डॉ। प्रीतम दास इलाहाबाद में डाली थी ओपन सर्जरी की नींव

-उसूलों और अनुशासन के पक्के थे डॉ। प्रीतम दास

डॉ। प्रीतम दास इलाहाबाद में डाली थी ओपन सर्जरी की नींव

-उसूलों और अनुशासन के पक्के थे डॉ। प्रीतम दास

vineet.tiwari@inext.co.in

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उत्तर प्रदेश में तीसरी वरीयता प्राप्त एमएलएन मेडिकल कॉलेज को सजाने और संवारने में स्व। डॉ। प्रीतम दास का अहम योगदान था। उनके पढ़ाए स्टूडेंट देशभर में नाम रौशन कर रहे हैं। बावजूद इसके इलाहाबाद मेडिकल कॉलेज में डॉ। दास का नाम केवल सेमिनार की शोभा बनकर रह गया है। डॉक्टर्स की नई फौज शायद ही उनके बारे में जानकारी रखती हो। पितृ पक्ष के अपने इस अभियान में आज हम मेडिकल फील्ड की इसी महान शख्सियत के योगदान की चर्चा करते हैं।

क्भ् साल की कड़ी मशक्कत

डॉ। दास वर्ष क्9म्क् में एमएलएन मेडिकल कॉलेज के फाउंडर प्रिंसिपल बनकर आए थे। वह सर्जरी डिपार्टमेंट के एचओडी भी थे। कॉलेज के पहले बैच के उनके स्टूडेंट रहे सर्जन डॉ। नरेंद्र कुमार केसवानी कहते हैं कि डॉ। दास इस पद पर न होते तो मेडिकल कॉलेज की दशा कुछ और होती। डॉ। दास क्97भ् तक कॉलेज के प्रिंसिपल रहे और इन पंद्रह सालों में उन्होंने कड़ी मशक्कत से इसे नई पहचान दी। आज जिस गवर्नर हाउस में मेडिकल कॉलेज की बिल्डिंग बनी है, वह उन्हीं की देन है। उन्होंने बिल्डिंग का रेनोवेशन कराकर कॉलेज को एसआरएन हॉस्पिटल की बिल्डिंग से शिफ्ट कराने में अहम भूमिका निभाई।

कुछ सालों में शुरू हुए थे पीजी कोर्सेज

डॉ। दास चुनौतियों का सामना करने से पीछे नहीं हटे। वर्ष क्9म्म् में उन्होंने मेडिकल कॉलेज को मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया से रजिस्टर्ड कराया और वर्ष क्9म्7 से पीजी कोर्सेज में एडमिशन लेना शुरू कर दिया। एमसीआई की टीम ने कम समय में उनके एफर्ट की तारीफ भी की थी। गायनी सहित कुल चार सब्जेक्ट्स में पीजी के बैच शुरू हो गए थे। डॉ। केसवानी कहते हैं कि वह बेहद पंक्चुअ थे और स्टूडेंट्स की फुल अटेंडेंस उनकी प्रॉयरिटी होती थी। उनके कार्यकाल में एग्जाम्स एक नवंबर और एक अप्रैल को टाइमली स्टार्ट हो जाते थे।

पहली बार हार्ट सर्जरी करके चौंकाया

म्0 के दशक में इलाहाबादी मरीजों को सर्जरी के लिए दिल्ली-मुंबई जाना पड़ता था। डॉ। दास ने नार्थ-इंडिया रीजन में पहली बार हार्ट सर्जरी करके सबको चौंका दिया था। इसके बाद उन्होंने कॉम्पि्लकेटेड फेफड़े, ट्यूमर और न्यूरो सर्जरी भी शुरू कर दी। सर्जरी डिपार्टमेंट के एक्सीलेंस के चर्चे चारों ओर होने लगे। मेट्रो सिटीज जाने वाले मरीजों को शहर में ही आराम मिलने लगा। उसूलों के पक्के डॉ। दास कभी भी मरीजों की दी हुई कोई भी भेंट स्वीकार नहीं करते थे।

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आगे हुआ सबसे पीछे रहने वाला छात्र

डॉ। प्रीतम दास का जन्म मुजफ्फरनगर के बखेड़ा गांव के किसान खिलाड़ी लाल अग्रवाल के यहां हुआ था। उन्होंने हाईस्कूल और इंटर की शिक्षा आगरा में अपनी बहन के घर में रहकर पूरी की। उनकी इच्छा केजीएमयू लखनऊ में पढ़ाई करने की थी। उनका सेलेक्शन हुआ लेकिन वह वेटिंग लिस्ट में आखिरी कैंडिडेट थे। वर्तमान में केजीएमयू के रूमेटोलॉजी डिपार्टमेंट में प्रोफेसर और डॉ दास के बेटे सिद्धार्थ दास बताते हैं कि पैसे की तंगी के चलते पिताजी को एमबीबीएस का एक साल ड्रॉप भी करना पड़ा। बावजूद इसके हिम्मत नहीं हारी और फाइनल एग्जाम में टॉप किया। उन्हें हैवेट मेडल से सम्मानित किया गया। केजीएमयू से ही डॉ। प्रीतम दास ने एमएस सर्जरी की डिग्री ली और फिर एफआरसीएस करने इंग्लैंड चले गए।

क्ख् घंटे करते थे काम

बकौल प्रो। सिद्धार्थ, पिताजी सुबह आठ से रात नौ बजे तक काम में बिजी रहते थे। लाइट चले जाने पर वह गर्मी में बनियान पहनकर फाइलों को निपटाते थे। कोई नेता या मंत्री उन पर गलत काम करने का दबाव डालता था तो वह फोन काट देते थे। गवर्नमेंट द्वारा कार एलॉट करने में छह महीने की देरी कर दी गई, इस बीच वह घर से ऑफिस साइकिल से जाते थे। क्97भ् में रिटायर होने के दूसरे दिन वह अपना बोरिया-बिस्तर लेकर मुजफ्फरनगर निकल गए। कार भी उन्होंने खुद ड्राइव की थी।

छात्रों का पढ़ाते रहे उत्साह

डॉ। दास को उनके स्टूडेंट आज भी सलाम करते थे। डॉ। केसवानी बताते हैं कि उनके पढ़ाए स्टूडेंट्स ने देश के हर कोने में उनका रौशन किया है। क्भ् अगस्त को वह झंडा फहराने के बाद कॉलेज के टॉपर स्टूडेंट से स्पीच दिलवाते थे। खुद नहीं बोलते थे। क्987 में डॉॅ प्रीतम दास की डेथ हो गई। उनके नजदीक रहे डॉक्टर्स बताते हैं कि डॉ। दास के बनाए स्टैंडर्ड पर ही मेडिकल कॉलेज आज भी रन कर रहा है।

Posted By: Inextlive