सेवा मन की नहीं, जन की करो

GORAKHPUR: मैंने आपसे वादा किया था कि अगले क्भ् दिन तक आपको डेली अपने पुरखों की कहानियां सुनाऊंगा। कल मैंने आप सभी को हनुमान प्रसाद पोद्दार की कहानी सुनाई थी। आज बात उनकी, जिन्होंने न सिर्फ आजादी की लड़ाई में अंग्रेजों का डटकर सामना किया, बल्कि अपने जुझारू व्यक्तित्व के सहारे लाखों लोगों की निस्वार्थ सेवा की। मेरा और बाबा का रिश्ता बहुत पुराना है क्योंकि बाबा ने अपनी कर्मभूमि मुझे ही बनाया। मुझे अपनी मेहनत से सींचा और इस काबिल बनाया कि आज मुझे दुनिया उनके नाम से पहचानती है। बाबा राघव दास मेरे वो पूर्वज हैं जिनके नाम पर पूर्वाचल की कई शिक्षण संस्थाएं चलती हैं, जहां शिक्षा पाकर लाखों बच्चे पूरी दुनिया में गोरखपुर का नाम रोशन करते हैं।

सब कुछ छिन गया, फिर भी नहीं टूटे बाबा राघव दास

प्यार से राघवेंद्र कहलाने वाले बाबा राघव दास ने हर क्षेत्र में अपनी अमिट छाप छोड़ी। राजनीति, समाजसेवा, आर्थिक और सांस्कृतिक क्षेत्रों में हमेशा उनकी रुचि रही। पूना, महाराष्ट्र में क्ख् दिसंबर, क्89म् को एक गरीब ब्राह्मण परिवार में जन्मे राघवेंद्र अपने पिता शेशप्पा और मां गीता के बहुत करीब थे। चार भाईयों और तीन बहनों के साथ हंसी-खुशी रहते राघवेंद्र के परिवार को प्लेग की बीमारी ने घेर लिया। प्लेग ने राघवेंद्र का पूरा परिवार छीन लिया, मगर वो टूटे नहीं। वो कहते हैं न कि महान लोग जिस रास्ते पर चलें, वही सही रास्ता है। लेकिन राघवेंद्र ने अपना रास्ता खुद बनाने की ठानी और मंजिल तक पहुंचकर ही दम लिया।

बरहज में बिताया ज्यादातर समय

राघवेंद्र ने क्9क्फ् में बाम्बे से फाइन आर्ट कंप्लीट किया। राघवेंद्र के मन में कहीं कुछ ऐसा था, जो उन्हें सोने नहीं देता था। अपनी जिज्ञासा शांत करने के लिए वे महाराष्ट्र से 'सिद्ध गुरु' की खोज में निकले राघवेंद्र हरिद्वार, मथुरा, प्रयाग होते हुए काशी पहुंचे। जहां से गाजीपुर पहुंच कर वे 'मौनी बाबा' से मिले। जिन्होंने राघवेंद्र को हिंदी सिखाई। राष्ट्रभाषा सीखने के बाद वो देवरिया जिले के बरहज पहुचे। जहां उन्होंने भारतीय संस्कृति और योग का ज्ञान प्राप्त किया। उसके बाद वह 'योगी राज अनंत महाप्रभु' से मिले। इस मुलाकात का असर राघवेंद्र पर कुछ यूं हुआ कि उन्होंने 'योगी राज अनंत महाप्रभु' को अपना गुरु बना लिया। इसके बाद शुरू हुआ संघर्षो का सिलसिला। ये उसी संघर्ष का परिणाम है कि आज दुनिया में मेरा भी एक मुकाम है।

बहादुरी से लड़ी आजादी की लड़ाई

क्9ख्क् में महात्मा गांधी गोरखपुर आए थे। युवाओं में बड़ा जोश था गांधीजी से मिलने का। राघवेंद्र उनसे मिले और फिर उनके साथ ही देश को आजादी दिलाने के लिए अंग्रेजों से लोहा लेना शुरू कर दिया। आजादी के हर परवाने की तरह राघवेंद्र को भी क्9ख्क् में अंग्रेजी हुकूमत ने जेल में डाल दिया। सन क्9फ्क् में जब गांधीजी 'नमक सत्याग्रह' के लिए दांडी मार्च कर रहे थे, तो राघवेंद्र ने भी उनके समर्थन में देवरिया, पडरौना, बसंतपुर धूसी में मार्च किया। क्9ब्ब् में उन्हें फिर जेल में डाल दिया गया और अंग्रेजों के द्वारा जुल्म किए गए। पूरे आंदोलन के दौरान उन्हें क्0 बार जेल भेजा गया, लेकिन राघवेंद्र ने हिम्मत नहीं हारी। पूरी बहादुरी के साथ डट कर अंग्रेजों का सामना किया। आजादी मिली तो सरकार में भागीदारी करने की बजाय जनता की सेवा करने का फैसला किया।

बनाना था नया भारत, तो गांव पर दिया जोर

ये वो दौर था जब आजादी के बाद नौजवानों के मन में सुनहरे भविष्य के कई सपने थे, लेकिन राघवेंद्र जानते थे कि सुनहरा भविष्य पाने के लिए गांवों को मजबूत बनाना होगा। उन्हें वो ताकत देनी होगी कि वे अपने दम पर अपना विकास कर सकें। इसलिए उन्होंने संगठित रुप से गांवों के आर्थिक निर्माण पर ध्यान देना शुरू किया। देश की संस्कृति के उत्थान और दीन-दलितों की सेवा उनका मुख्य लक्ष्य था। पूर्वाचल में शिक्षा की अलख जगाने और राष्ट्रभाषा के प्रचार-प्रसार के लिए उन्होंने खूब मेहनत की। समूचा जीवन यहीं रहे और अपना सबकुछ न्योछावर कर भी मुझे वो मुकाम दिलाया, जिसका हकदार मैं था। राघवेंद्र के सेवाभाव से जनता इतनी अभिभूत थी कि उसने राघवेंद को बाबा राघव दास बना दिया।

बने विधायक फिर भी जनसेवा में रम गया मन

सरदार पटेल, किदवई, पंत जी के अनुरोध पर बाबा राघव दास ने क्9ब्8 में आचार्य नरेंद्र देव के खिलाफ चुनाव लड़ा और विधायक भी चुने गए, लेकिन मन तो लग चुका था जनता की सेवा में इसलिए लोगों की सेवा करना नहीं छोड़ा। देश को आजादी मिल चुकी थी, लेकिन मुझे अभी भी किसी ऐसे शख्स की जरूरत थी जो मेरे लड़खड़ाते कदमों को थामे और मेरी उंगली पकड़ कर मुझे सशक्त और काबिल बनाए। ऐसे में बाबा राघव दास ने पिता की तरह मुझे रास्ता दिखाया और खुद भी हमेशा साथ रहकर ये सुनिश्चित किया कि मैं अपनी राह से भटकूं नहीं।

'पूर्वाचल के गांधी' के तौर पर बनी पहचान

जनता की सेवा और गांवों को मजबूत बनाने का इरादा मन में लेकर बाबा राघव दास ने क्9ब्7 से क्9भ्7 के बीच खुद को पूरी तरह समर्पित कर दिया। मैं कई मुसीबतों से घिरा था, लेकिन बाबा ने हर तरह से मुझे सहारा दिया। ग्रामोद्योग और खादी के प्रसार पर खूब मेहनत की। दलित उत्थान, बुद्घ तीर्थो के उन्नयन, गाय की सेवा, कुष्ठ रोग की रोकथाम के लिए बाबा राघव दास ने हरसंभव कदम उठाए। उन्होंने विनोबा भावे के भूदान आंदोलन में भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। क्9भ्क् में यहां कुष्ठ सेवाश्रम बनाया जिसमें कुष्ठ रोगियों का उपचार आदि किया जाता था। बाबा का लोगों की सेवा करने का ऐसा जुनून था कि उन्हें पूर्वाचल के गांधी के तौर पर नई पहचान मिली। क्भ् जनवरी क्9भ्8 को रात क्क्.ख्0 बजे वे मुझे अकेला छोड़कर चले गए, लेकिन इस वादे के साथ कि वे हमेशा मेरे साथ रहेंगे।

आज भी जिंदा है बाबा

स्थूल देह का परित्याग करने के बाद भी बाबा मेरे साथ हैं। गीता में भी लिखा है कि आत्मा सदैव सजीव रहती है। बाबा ब्रह्मलीन होने के बाद भी मुझ पर हमेशा अपना आशीष बनाए रहते हैं। उनकी छाया के तले मैं फला-फूला और मैंने नित नई ऊंचाइयां छुई। उनका नाम आज भी लाखों रोगियों के लिए उम्मीद की किरण है। बाबा राघव दास के नाम पर बने मेडिकल कॉलेज में रोज सैकड़ों मरीज आते हैं और स्वस्थ होकर जाते हैं। उनकी दुआ में आज भी बाबा जिंदा हैं। मुझसे जितना लगाव उन्होंने रखा, वो आज भी उसी तरह बरकरार है। मुझे गर्व है कि वो मेरे पितृ हैं और मैं इस योग्य हूं कि उनके तर्पण का सौभाग्य मुझे मिला।

Posted By: Inextlive