जगन के बाद चंद्रबाबू भी अब अनशन पर हालात हो रहें हैं खराब.


उपवासों की राजनीति को किया नजरअंदाजतेलंगाना के विरोध में सीमांध्र की बेकाबू होती स्थिति और हिंसक प्रदर्शनों ने केंद्र को चिंता में डाल दिया है. स्थिति की गंभीरता को देखते हुए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे और वित्त मंत्री चिदंबरम के साथ ही सीमांध्र से आने वाले कांग्रेस सांसदों व मंत्रियों से मुलाकात कर हालात का जायजा लिया. वैसे कांग्रेस ने तेदेपा प्रमुख चंद्रबाबू नायडू और वाईएसआर कांग्रेस के मुखिया जगनमोहन रेड्डी के उपवासों की राजनीति को खारिज करते हुए तेलंगाना के फैसले पर आगे बढऩे का संकेत दिया, लेकिन राज्य के विभाजन की रूपरेखा तैयार करने के लिए बने जीओएम की प्रस्तावित बैठक नहीं हो सकी. आमरण अनशन पर जगन
गृह मंत्री ने प्रधानमंत्री को हालात सामान्य करने और कानून-व्यवस्था बहाल करने के लिए उठाए गए कदमों की जानकारी दी. प्रधानमंत्री से मुलाकात के बाद शिंदे ने सीमांध्र की जनता से शांति की अपील करते हुए कहा, 'केंद्र उनकी चिंताओं को दूर करने के लिए कृतसंकल्प है.' शिंदे की अपील का प्रभाव खुद उनके साथ प्रधानमंत्री से मिलने गए सीमांध्र के मंत्रियों व सांसदों पर ही नहीं दिखा. बैठक के दौरान चिरंजीवी और पल्लम राजू समेत सीमांध्र के मंत्रियों ने प्रधानमंत्री पर इस्तीफा स्वीकार करने का दबाव बनाया. जगन और नायडू की राजनीतिक बढ़त लेने की कोशिशों से सीमांध्र के कांग्रेसी नेता चिंतित हैं. जगन हैदराबाद में आमरण अनशन पर है. वहीं, नायडू दिल्ली स्थित आंध्र भवन में अनशन पर बैठ गए हैं. हालांकि, कांग्रेस प्रवक्ता ने साफ कर दिया कि सोच-विचार कर लिए गए फैसले से पलटना संभव नहीं है. जीओएम की पहली बैठक टली सीमांध्र में हिंसक प्रदर्शनों का असर केंद्र पर दिखने लगा है. राज्य के विभाजन के लिए बनाए गए जीओएम की पहली प्रस्तावित बैठक को अंतिम समय पर टालना पड़ा. 3 अक्टूबर को गठित जीओएम को डेढ़ महीने में रिपोर्ट देनी है. इसके बाद ही तेलंगाना बनाने का विधेयक संसद में पेश किया जा सकेगा. इस बीच, आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री किरण कुमार रेड्डी ने संवैधानिक प्रावधानों का हवाला देकर तेलंगाना की राह में रोड़ा अटकाने की कोशिश की. सीएम के अनुसार विधानसभा से प्रस्ताव पारित किए बिना लोकसभा इस पर विचार नहीं कर सकती है.

Posted By: Subhesh Sharma