शहर में आधा दर्जन समस्याएं कोढ़ में खाज

वर्षो से निजात पाने को तरस रहे काशी वासी

दोबारा सांसद निर्वाचित होने पर नमो से जगी आस

VARANASI:

काशी सहित पूर्वाचल को डेवलपमेंट का गेटवे बनाने वाले नरेंद्र मोदी से काशीवासियों की उम्मीदें अब और बढ़ गई हैं. प्रचंड जीत से दोबारा काशी का सांसद चुने गए नरेंद्र मोदी से अपेक्षा है कि कुछ टेक्निकल वजहों से काशी का जो विकास थमा था उसे अब अमलीजामा पहनाया जाए. मसलन स्वच्छ काशी सुंदर काशी को परिभाषित करते हुए पाल्यूशन, ट्रैफिक, सीवर, साफ-सफाई, हरियाली, पब्लिक ट्रांसपोर्ट की समस्याएं दूर हों. अब पांच साल में मोदी सरकार को इनका उद्धार करना चाहिए.

पाल्यूशन

शहर की आबोहवा हर दिन गंभीर होती जा रही है. इस दिशा में कुछ भी ठोस उपाय नहीं हो रहे हैं. हवाएं मानक से दोगुना जहरीली होती जा रही हैं. द क्लाइमेट चेंज एजेंडा की रिपोर्ट कहती है कि पीएम 2.5 (60 माइक्रोन) होना चाहिए. लेकिन कुछ साल से लगातार पीएम 2.5 (120 माइक्रोन) से ऊपर जा रहा है. पीएम 10 (100 माइक्रोन) का मानक नार्मल माना जाता है, लेकिन यह भी 200 के ऊपर खतरनाक स्तर पर भाग रहा है. एयर क्वालिटी को चेक करने के लिए जिला प्रशासन के पास अपनी खुद की मशीन भी नहीं है.

टू द प्वाइंट

- द क्लाइमेंट एजेंडा की रिपोर्ट में हर दिन बढ़ रहा है एयर पाल्यूशन

- मानक से दोगुना खतरनाक स्तर पर शहर की आबोहवा

- एयर पाल्यूशन को रोकने के लिए नहीं कुछ ठोस इंतजाम

- नगर निगम की कूड़े-करकट में आग लगाने की प्रवृत्ति अभी भी जारी

हरियाली

कंक्रीट का जंगल बनते शहर में पिछले दस सालों में पौधरोपण का लेवल बहुत घटा है. हर दिन पेड़ों की कटाई जोरों पर है. रिंग रोड और फोरलेन की सड़कों के कारण अब कहीं पेड़ों की छांव नहीं मिलती. कुछ स्थानों पर पौधे तो लगे, लेकिन देखभाल के अभाव में दम तोड़ दिए. वन विभाग एक ओर कहता है कि पांच लाख से अधिक पौधों को लगाने के लिए काशी में जमीन भी नहीं मिली. बीएचयू, डीएलडब्ल्यू और कैंटोनमेंट एरिया को छोड़ दिया जाए तो शहर में कहीं हरियाली देखने को नहीं मिलेगी. स्वच्छ हवा के अभाव में चेस्ट व सांस के मरीजों की संख्या में 50 परसेंट की वृद्धि हुई है. अकेले सिर्फ बीएचयू में रोज 300 से अधिक मरीज पहुंचते हैं.

टू द प्वाइंट

- पांच लाख पौधे भी पांच साल में नहीं लग पाए

- फोरलेन, रिंग रोड के सभी पेड़ों की हुई कटाई

- रोजाना बढ़ रहे हैं कंक्रीट के जंगल

- स्वच्छ हवा बिन सांस रोगियों की संख्या में 50 परसेंट की वृद्धि

साफ-सफाई

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश में स्वच्छता की शुरूआत बनारस के अस्सी घाट से ही की थी. सांसद निर्वाचित होने के बाद झाड़ू लेकर जगन्नाथ गली भी साफ की थी. इसके बाद कुछ हद तक स्वच्छता के प्रति लोगों में चेतना जगी, लेकिन सरकारी सिस्टम आज भी उदासीन है. वार्ड में कूड़ा कलेक्शन के लिए डोर-टू-डोर दो एजेंसियां भी लगी हैं. इसके बावजूद साफ-सफाई बेहतर नहीं है. कूड़ा निस्तारण के लिए करसड़ा में प्लांट भी बना है, लेकिन उपयोगिता 25 फीसदी ही साबित हो पा रही है.

टू द प्वाइंट

- कूड़ा पर दो एजेंसियां केयाना और आईएल एनएफएस कर रही हैं काम

- 40 वार्ड में डोर-टू-डोर होता है कूड़ा कलेक्शन

- 90 वार्ड हैं नगर निगम में

- साढ़े पांच सौ मिट्रीक टन डेली निकल रहा है कूड़ा

- गीला-सूखा कूड़ा का भी नहीं है अब निगम को ध्यान

सीवर

काशी में अंग्रेजों के जमाने के समय से बनी सीवर लाइन हर दिन ओवरफ्लो कर रही है. सीवर चोक होने में गोबर व पॉलीथिन सहायक हैं. ताज्जुब की बात ये है कि पुराने सीवर की सफाई कैसे हो, जब जलकल विभाग को नक्शा ही नहीं पता है. यही वजह है सफाई के लिए मजदूर सीवर में उतरते हैं तो जान से हाथ धो लेते हैं. नई सीवर लाइन बनाई गई लेकिन दुविधा यह हो गई कि एसटीपी बाद में बनी और पाइपलाइन पहले डाल दी गई. दुष्परिणाम ये रहा कि सीवर जाम हो गया. गोइठहा में 120 एमएलडी का एसटीपी बना है, जिसकी क्षमता कम से कम 60 होनी चाहिए लेकिन 25 फीसदी ही मलजल जा रहा है. कमोबेश यही हाल दीनापुर 140 एमएलडी का भी है.

टू द प्वाइंट

- अंग्रेजों के जमाने का सीवर लाइन

- शहर की जनसंख्या बढ़ी लेकिन सीवर लाइन का दायरा नहीं बढ़ा

- सीवर सफाई में होती है मजदूरों की मौत

- गोईठहां और दीनापुर में 140 एमएलडी का एसटीपी बना है लेकिन मलजल 25 परसेंट ही जा रहा

ट्रैफिक

शहर की ट्रैफिक व्यवस्था किसी से छिपी नहीं है. लोगों का हर दिन जाम से सामना हो रहा है. ट्रैफिक पर कमांड के लिए सिटी कमांड सेंटर बनाया गया, लेकिन ट्रैफिक जाम रोकने में सहायक साबित नहीं हो पा रहा है. अवैध आटो रिक्शा, ई-रिक्शा ट्रैफिक जाम को बढ़ावा दे रहे हैं तो इसके लिए कुछ हद तक अतिक्रमण भी जिम्मेदार है. लेकिन कार्रवाई के नाम पर कुछ नहीं हो रहा है. ट्रैफिक पुलिस की संख्या भी बढ़ी है लेकिन फिर भी पता नहीं क्यों जाम से पब्लिक को राहत नहीं मिल पा रही है.

टू द प्वाइंट

- रूल्स फॉलो के लिए ट्रैफिक विभाग ने चौराहों पर लगाए हैं कैमरे

- अधिकतर चौराहों पर नहीं काम रहे हैं सिग्नल

- अवैध वाहनों का शहर में फैला है जाल

- सिटी कमांड सेंटर से नहीं मिल पा रही जाम में मदद

पब्लिक ट्रांसपोर्ट

सबसे बड़ी जरूरत शहर में पब्लिक ट्रांसपोर्ट की है. आटो, ई-रिक्शा के आलावा कुछ नहीं है. रोडवेज व सिटी ट्रांसपोर्ट सर्विसेज की स्थिति बदहाल है. कहा तो गया था कि मोनो-मैट्रो आदि चलेंगे, लेकिन उनकी कार्ययोजना कहां गई किसी को नहीं मालूम. मेट्रो को लेकर तो डीपीआर भी बनाई गई थी. लेकिन अब वह किस स्थिति में है किसी को कुछ नहीं पता.

टू द प्वाइंट

- पांच साल से बन रही है मेट्रो की कार्ययोजना

- रोपवे से लेकर मोनो रेल तक चलाने की थी बात

- ट्रांसपोर्ट के नाम पर सिर्फ आटो, ई-रिक्शा

- 130 बस हैं सिटी ट्रांसपोर्ट की, जिसमें 60 कंडम हैं

सबसे पहले शहर में ट्रैफिक व्यवस्था पर काम हो. कुछ तोड़फोड़ करके यदि संभव हो तो वह भी किया जाए. उम्मीद है कि इन पांच वर्षो में काम होगा.

डॉ. कार्तिकेय सिंह, स्टेट कमेटी

आईएमए

पुरानी सीवर लाइन व्यवस्था बदलनी चाहिए, जनसंख्या के हिसाब से चीजों का विकास हो. मूलभूत सुविधाओं में यह प्राथमिकता में है.

जय प्रद्धवानी, सीए

मेट्रो को लेकर कार्य योजना तैयार की गई थी, लेकिन कुछ टेक्निकल कारणों से योजना को पंख नहीं लग सका. अब उम्मीद है कि यह पूरा होगा.

अनुज डिडवानिया, अध्यक्ष क्रेडाई

शहर की आबोहवा बिगड़ती जा रही है. हर दिन पार्टिकुलेट मैटर अपने मानक से दोगुना बढ़ता रहा है. इस पर रोक लगाने की आस पूरी हो, पेड़ों की संख्या भी शहर में बढ़े.

एकता शेखर, क्लाइमेट एजेंडा

Posted By: Vivek Srivastava