क्त्रन्हृष्ट॥ढ्ढ: रांची.. कभी हिल स्टेशन हुआ करता था. कोलकाता समेत आसपास राज्यों के बड़े घराने शहर के व‌र्द्धवान कंपाउंड, मोरहाबादी, कांके रोड जैसे रिहायशी इलाकों में एक मकान जरूर बनाते थे ताकि गरमी के दिनों में ठंडी हवा और बारिश की फुहार का मजा ले सकें. जाड़े की सुहावनी सुबह और गुलाबी शाम के आगोश में समा सकें. लेकिन अब अपनी रांची को नजर लग गई है. प्रदूषण, जनसंख्या, बेतरतीब विकास ने शहर को कंक्रीट का जंगल बनाकर रख दिया है. रांची में प्रदूषण अलार्मिंग लेवल तक पहुंच चुका है. झारखंड प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड के एक सर्वे के अनुसार, राजधानी में हवा प्रदूषण पिछले 15 सालों में 20 गुणा बढ़ चुका है. बोर्ड ने नगर निगम और परिवहन विभाग को इस बाबत कड़े कदम उठाने के कई बार निर्देश दिए हैं, लेकिन शहर में हमेशा सुबह हो या शाम प्रदूषण का लेवल लगातार बढ़ता ही जा रहा है. बोर्ड नाकाम हो चुका है और शहर में रहने वाले पर्यावरणविद् परेशान और हैरान हैं कि अंधी विकास की रफ्तार में शहर खतरे में पड़ता जा रहा है.

वाहनों से ज्यादा परेशानी

शहर की सड़कों पर बेतहाशा वाहन दौड़ते नजर आ रहे हैं. आईआईएम के सर्वे के अनुसार, 2340 ऑटो ही शहर के लिए पर्याप्त हैं. झारखंड हाईकोर्ट और मानवाधिकार आयोग ने भी इस बाबत निर्देश दिए थे, इस कारण परिवहन विभाग ने 2340 ऑटो के बाद ऑटो को परमिट देना बंद कर दिया. लेकिन शहर में बिना परमिट के 15000 से अधिक ऑटो चल रहे हैं. इनको कब शहर से बाहर किया जाएगा, यह सवाल हर व्यक्ति की जुबान पर है. पर्यावरणविदों का कहना है कि इन वाहनों से कार्बन डाइऑक्साइड बड़ी मात्रा में निकलता है जो स्वास्थ्य पर बुरा असर डालता हैं. आंखों का जलना, त्वचा रोग आम बात हैं. राजधानी में हर दिन लगभग 125 प्रति घन मीटर पीएम 10 रहता है, जबकि सामान्य आबोहवा के लिए 100 घन मीटर पीएम पर्याप्त है.

जंगल काटकर हो रहा निर्माण

सिटी के आसपास इलाकों से जंगल लगातार कम होते जा रहे हैं. हर साल करीब एक लाख नये लोगों के रहने के लिए मकानों का भी निर्माण हो रहा है. इसलिए हरियाली भी घटती जा रही है. सिटी के पर्यावरण पर नजर रखने वाले पुराने लोग बताते हैं कि अस्सी के दशक में मौसम इतना अच्छा हुआ करता था कि मेसरा जैसे इलाकों में ठंड के मौसम में छतों पर रखा पानी बर्फ में तब्दील हो जाता था. आज चारों ओर कंक्रीट के जंगल नजर आते हैं. हर दिन हो रहे निर्माण के कारण प्रदूषण का लेवल बढ़ रहा है.

जल, थल, हवा सब प्रदूषित

झारखंड में खनिज, खनन, परिवहन व कारखानों के अपशिष्ट प्रवाह और अन्य कई कारणों से प्रदूषण की भयावह स्थिति है. यहां फ्लोराइड और आर्सेनिक की समस्या भी है. प्रदूषण की समस्या से यहां के लोग अस्थमा, टीबी, कैंसर जैसे रोगों से पीडि़त हो रहे हैं. रांची के आसपास शहर के बीच से जो नदियां बह रही हैं, उसमें कचरा भरा रहता है, इस कारण पानी भी प्रदूषित हो रहा है.

सबसे ज्यादा ध्वनि प्रदूषण की मार

शहर में सबसे ज्यादा ध्वनि प्रदूषण के कारण बहरेपन की समस्या बढ़ रही है. शहर में हर दिन बढ़ रही गाडि़यां और हर चौक चौराहे पर जाम लगने की स्थिति में तेज साउंड के कारण लोग बहरे हो रहे हैं.

....

वर्जन

जिस तरह से लगातार प्रदूषण का लेवल बढ़ रहा है उसको रोकने का कोई उपाय नहीं किया गया तो आने वाले समय में मुश्किल बढ़ जाएगी. पहाड़ से लेकर पानी तक प्रदूषित हो चुका है ऐसे में इसपर रोक लगाना निहायत जरुरी है.

नितिश प्रियदर्शी, पर्यावरणविद्

Posted By: Prabhat Gopal Jha