- पास के कई छोटे-बड़े हॉस्पिटलों को छोड़ डेढ़ घंटे बाद पीएमसीएच इलाज के लिए लायी गई

-गोल्डेन ऑवर के बारे में जानकारी ही नहीं

PATNA : पीएमसीएच में बबीता की मौत एक साथ कई सवाल छोड़ गई। उसे क्7 फीट गहरे बोरवेल से निकाला तो गया लेकिन जान नहीं बच पायी। डॉक्टरों के हाथों में ऑपरेट होने से पहले ही उसकी सांस टूट गई। पीएमसीएच के डिप्टी सुपरिटेंडेंट डॉ सुधांशु सिंह ने बताया कि बबीता को लाए जाने से पहले से ही सभी सतर्क थे। लेकिन वह इस हाल में आयी कि कोई प्रोसिज्योर करने की गुंजाइश ही नहीं बची। ख्:फ्भ् बजे लगभग दोपहर में आधिकारिक तौर पर उसे मृत घोषित कर दिया गया। पीएमसीएच में बबीता का पोस्टमार्टम कर उसे परिवार वालों को सौंप दिया गया। इसके साथ ही पीएमसीएच में मौजूद उसके माता-पिता की उसकी एकलौती बेटी को बचाने की आखिरी आस भी टूट गई। बबीता की मौत की खबर सुनते ही उसकी मां बदहवास हो गई। चीखने-चिल्लाने की आवाज ने हर किसी का कलेजा दहला दिया। किसी प्रकार उसके पति ने सहारा दिया। जिस किसी ने सुना कहा, ओह

जल्दबाजी में हुई गलती

इस पूरे मामले में विफलता का सबसे बड़ा कारण उसे दूर के हॉस्पिटल में ले जाना भी माना जा रहा है। उसे पीएमसीएच तक लाने में बहुत अधिक समय लग गया। हादसे के मौके पर सिविल सर्जन और अन्य डॉक्टरों की टीम, पारा मेडिकल स्टाफ और ऑक्सीजन, वेंटिलेटर की सुविधा एम्बुलेंस के साथ थी। लेकिन बोरवेल के अंदर जहां वह फंसी थी वहीं तक ऑक्सीजन पहुंचाया ही नहीं गया। उसे निकाले जाने के बाद प्रशासन ने निर्णय लिया कि पांच साल की बतीता को पीएमसीएच इमरजेंसी ले जाया जाए। सिविल सर्जन डॉ केके मिश्रा ने बताया कि उसे बचाने का हर संभव प्रयास किया गया, लेकिन जान बचा पाने में सफल नहीं रहे। आई नेक्स्ट से बातचीत में उन्होंने कहा कि उसे इलाज के लिए कहां ले जाना है, यह प्रशासनिक तौर पर एक कलेक्टिव डिसीजन था। इसमें किसी एक व्यक्ति के निर्णय पर काम नहीं किया गया।

अंतिम बार साथ खाना खायी

बबीता के पिता जितेंद्र ने बताया कि घटनास्थल पर बालू के टीले के पास ही मेरे दो बेटे अंकज और पंकज व बेटी बबीता मां मीरा देवी के साथ खाना खा रही थी। लेकिन अचानक मां ने देखा कि बेटी कहीं चली गई। बाद में शोर हुआ तो हादसे का पता चला। वह अंतिम मर्तबा साथ में खाना खायी। उधर, मां अपनी एकलौती बेटी की मौत से गहरे सदमे में चली गई। वह पीएमसीएच में दहाड़ मारकर रो रोती रही।

पास का कोई बड़ा हॉस्पिटल होता तो

बेटी की मौत से गमगीन पिता जीतेंद्र ने कहा कि उन्हें प्रशासन से कोई शिकायत नहीं है लेकिन अब तक यही लग रहा है कि आखिर ऐसा क्यों हुआ। उधर, उनके पास पीएमसीएच में मौजूद गांव के निवासी हरिनारायण ने कहा कि शायद देर हो गई उसे यहां लाने में। इलाज के लिए समय ही नहीं मिला। कहा कि पास का कोई बड़ा अस्पताल होता तो शायद बच जाती। उन्होंने कहा कि यह तो प्रशासन का निर्णय था कि पीएमसीएच में ट्रीटमेंट के लिए लाना है।

क्या है गोल्डन ऑवर रूल

ट्रामा केयर में घटना का सबसे पहला घंटा गोल्डन ऑवर रूल कहा जाता है। यानी ऐसी इमरजेंसी हालात में गोल्डन ऑवर में इलाज होने पर बचने की संभावना ज्यादा रहती है। लेकिन ज्यों-ज्यों यह समय निकलता जाता है पेशेंट के बचने की संभावना समाप्त होती जाती है। इस घटना में जो कुछ हुआ उसे देखकर तो यह स्पष्ट है कि गोल्डन ऑवर रूल को भुला दिया गया। अगर घटनास्थल पर ही डॉक्टर व मशीनरी का इंतजाम किया गया होता तो बबीता के बचने की संभावना कायम रहती।

सवाल जो कायम हैं

-उसे अर्ली मेडिकल अटेंशन के लिए पास के बड़े हॉस्पिटल में नहीं ले जाया गया।

- मौके पर मौजूद सैंकड़ों डॉक्टरों ने गोल्डन ऑवर रूल भुला दिया।

-बच्ची तक ऑक्सीजन क्यों नहीं पहुंचाया गया।

- डॉक्टरों के काम से ज्यादा प्रशासनिक अमले की धमक हुई हावी।

- ईएसआई हॉस्पीटल, आईजीआईएमएस जैसे हॉस्पीटल ज्यादा नजदीक पड़ते

- घटनास्थल से एम्स और पीएमसीएच की दूरी लगभग समान है।

Posted By: Inextlive