- लगातार बढ़ती जनसंख्या आज के दौर की सबसे बड़ी चुनौती

- बढ़ती जनसंख्या से पर्यावरण को भी पहुंच रहा है नुकसान

LUCKNOW:लगातार बढ़ती जनसंख्या से जरूरी संसाधनों और सुविधाओं की कमी होती जा रही है। राजधानी की आबादी तेजी से बढ़ती हुई आज करीब 42 लाख के करीब पहुंच गई है। आलम यह है कि लोग आज साफ पानी, स्वच्छ हवा, घर, पौष्टिक खाना, क्वालिटी एजुकेशन, बेहतर हेल्थ सुविधा आदि की कमी से जूझ रहे हैं। अगर हम अब भी नहीं चेते तो आने वाले दिनों में समस्या और भी गंभीर हो जाएगी। पेश है व‌र्ल्ड पापुलेशन डे के अवसर पर विशेष रिपोर्ट

1- मुश्किल हुआ आशियाना

जनसंख्या की बढ़ती रफ्तार का सीधा असर आवासों की संख्या पर भी दिखाई देने लगा है। आलम यह है कि पीएम आवास के लिए 1 लाख से अधिक आवेदन आए हैं, जबकि पीएम आवास सिर्फ 30 से 40 हजार ही हैं। इससे साफ है कि लोगों को आने वाले दिनों में छत के लिए और भी संघर्ष करना होगा।

जमीन की कीमत आसमान पर

जैसे-जैसे जनसंख्या बढ़ रही है, वैसे-वैसे जमीनों की कीमतें आसमान छूती जा रही हैं। आज आम आदमी के लिए जमीन खरीदना मुश्किल हो गया है। पिछले सात-आठ साल में जमीनों के रेट 600 रुपये प्रति वर्ग फिट से 20 हजार रुपए प्रति वर्ग फिट तक पहुंच गए हैं। यह कीमतें शहर के क्रीम प्वाइंट्स की हैं, वहीं नार्मल प्वाइंट्स की कीमतों में तीन से चार गुना तक इजाफा हुआ है।

फैक्ट फाइल

-5 लाख 40 हजार निगम में दर्ज घर

-14 फीसद प्रतिवर्ष बढ़ रही आबादी

-4 लाख मकानों की डिमांड

-1 लाख (प्रदेश में) आवास विकास बनाएगा मकान

-2 लाख 37 हजार पीएम आवास योजना में आए आवेदन

-30 हजार करीब एलडीए पीएम आवास बनाएगा

2. 1 डॉक्टर देख रहा एक हजार पेशेंट

डब्ल्यूएचओ के अनुसार अनुसार प्रति हजार मरीज पर एक डाक्टर होना चाहिए। जबकि एक रिपोर्ट के अनुसार करीब 11 हजार मरीज पर 1 डॉक्टर उपलब्ध है। वहीं राजधानी में जहां 8-10 साले पहले केवल केजीएमसी, पीजीआई और बलरामपुर जैसे ही हॉस्पिटल थे। आज राजधानी के शहरी और ग्रामीण इलाकों में करीब 143 छोटे-बड़े अस्पताल हैं। जिसमें प्रमुख रूप से केजीएमयू, एसजीपीजीआई, लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान के साथ नौ जिला और संयुक्त अस्पताल हैं। इन अस्पतालों के वाडरें में करीब 8,172 बेड हैं। इसके बावजूद दूरदराज से हजारों की संख्या में रोजाना लोग दिखाने के लिए आते हैं। ऐसे में डाक्टरों के ऊपर अतिरिक्त बोझ बढ़ता जा रहा है और वह मरीज को ठीक से देख भी नहीं पा रहे हैं।

बड़े अस्पतालों की ओपीडी पर एक नजर

- केजीएमयू में 9 से 10 हजार मरीज

- पीजीआई में करीब 4 हजार मरीज

- लोहिया में करीब 2500 मरीज

- बलरामपुर में करीब 7-8 हजार मरीज

- सिविल अस्पताल में करीब 6-7 हजार मरीज

3. शिक्षा व्यवस्था पर भी दबाव

बढ़ती जनसंख्या ने शिक्षा व्यवस्था पर भी खासा दबाव डाला है। साल 2000 में राजधानी में गिनती की यूनिवर्सिटी और डिग्री कॉलेज थे। आज राजधानी की शिक्षा व्यवस्था में काफी सुधार हुआ है। कई नए संस्थान भी खुले हैं लेकिन अब यहां एडमिशन के लिए ज्यादा मारामारी करनी होती है।

साल 2000 के आकड़े

यूपी बोर्ड हाईस्कूल में - 55 हजार

यूपी बोर्ड इंटरमीडिएट में - 65 हजार

सीबीएसई हाईस्कूल में - 4000

सीबीएसई इंटरमीडिएट में - 4500

यूपी बोर्ड के कुल स्कूल - 350

सीबीएसई बोर्ड के कुल स्कूल - 40

यूनिवर्सिटी - 1

डिग्री कॉलेज - 100

डीम्ड यूनिवर्सिटी - 0

साल 2019 के अनुमानित आकड़े

यूपी बोर्ड हाईस्कूल में - 45 हजार

यूपी बोर्ड इंटरमीडिएट में - 55 हजार

सीबीएसई हाईस्कूल में - 10000

सीबीएसई इंटरमीडिएट में - 8000

यूपी बोर्ड के कुल स्कूल - 800

सीबीएसई बोर्ड के कुल स्कूल - 110

यूनिवर्सिटी - 6

डिग्री कॉलेज - 174

डीम्ड यूनिवर्सिटी - 6

4. दो गुना हो गए बेरोजगार

साल 2000 तक राजधानी में बेरोजगारों की औसत संख्या करीब 30 से 40 हजार थी। अब यह संख्या बढ़कर 60 से ऊपर पहुंच चुकी है। यह वह संख्या है जो सरकारी आकड़ों में दर्ज है। जबकि हकीकत में यह संख्या एक लाख के ऊपर है। 2017-18 में बेरोजगारों के रजिस्ट्रेशन की संख्या एक लाख के पार थी। राजधानी में बीते कुछ सालों में बेरोजगारी का प्रतिशत 5.9 फीसद है रहा हैं। 20 साल पहले यह दो से ढ़ाई प्रतिशत ही था।

आज बेरोजगारों की संख्या

राजधानी में रजिस्टर्ड - 60130

पुरुष बेरोजगार - 26102

महिला बेरोजगार - 23028

ट्रेंड बेरोजगार - 45120

अनट्रेंड बेरोजगार - 15010

मिशन में रजिस्ट्रेशन की स्थिति

-कौशल विकास के लिए रजिस्टेशन- 46 लाख

-सरकारी प्रशिक्षण केंद्र-186

-निजी प्रशिक्षण केंद्र-149

-प्रशिक्षण के सेक्टर-52

5. तीन गुना पुलिस फोर्स कम

पब्लिक की सेफ्टी के इंटरनेशनल मानक (इंटरपोल के अनुसार) के अनुसार एक लाख लोगों पर एक हजार पुलिस कर्मी है। वहीं इंडिया में यह मानक 216 लोगों पर एक पुलिसकर्मी का है। जबकि राजधानी में करीब साढ़े छ सौ लोगों की सुरक्षा की जिम्मेदार एक पुलिस कर्मी पर है। इंटरनेशनल मानक के अनुसार यहां तीन गुना पुलिस फोर्स की कमी है।

लाइन में मौजूद पुलिस फोर्स

पुलिस लाइन में वर्तमान में करीब 134 इंस्पेक्टर, सब इंस्पेक्टर और 641 कांस्टेबल हैं। सिविल और आ‌र्म्स पुलिस में अब कोई अंतर नहीं है, जरूरत पड़ने पर दोनों फोर्स को लॉ एंड आर्डर में यूज किया जा सकता है।

उपलब्धता एक नजर में

- 5506 पुलिसकर्मी उपलब्ध

- 7276 पुलिसकर्मियों का नियतन

- 1770 पद खाली

लाइन में सिविल पुलिस

इंस्पेक्टर - 60

सब इंस्पेक्टर - 74

हेड कांस्टेबल - 146

कांस्टेबल - 361

लाइन में रिजर्व आ‌र्म्स पुलिस

सब इंस्पेक्टर - 02

हेड कांस्टेबल - 12

कांस्टेबल - 60

वीआईपी ड्यूटी में

- 715 पुलिसकर्मी गनर ड्यूटी में

- 350 पुलिसकर्मी अन्य प्रमुख अधिकारियों की सुरक्षा में

Posted By: Inextlive