हम शुरूआत से यह कह रहे थे कि एक कारगर लोकपाल लाया जाये. सरकार और हमारे बीच इन्ही बातों पर मतभेद रहे हैं. अगर सरकार की बात मान ली जायेगी तो लोकपाल विधेयक भी कई दूसरे विधेयकों की तरह ही कूड़े के ढेर में पड़ा रहेगा.


अन्ना हजारे की जनलोकपाल की मांग को लेकर मचे घमासान के बीच हमने बात की टीम के सबसे महत्वपूर्ण लोगों में से एक प्रशान्त भूषण से. भूषण इस दौरान काफी चिन्तित दिखाई दिये-  सरकारी लोकपाल में आपकी भागीदारी के बावजूद भी जन लोकपाल मांग पर इतनी गहमागहमी क्यूं?हमने जब लोकपाल की मांग रखी थी तब किसी सरकारी या प्राइवेट लोकपाल की बात नही थी मगर जब सरकार एक कमजोर बिल पर ही अड़ी है तो हमें भी इसका विरोध करना पड़ रहा है. आखिर ऐसा क्या हुआ कि बातचीत की टेबल से मामला रामलीला मैदान पहुंच गया?हम शुरूआत से यह कह रहे थे कि एक कारगर लोकपाल लाया जाये. सरकार और हमारे बीच इन्ही बातों पर मतभेद रहे हैं. अगर सरकार की बात मान ली जायेगी तो लोकपाल विधेयक भी कई दूसरे विधेयकों की तरह ही कूड़े के ढेर में पड़ा रहेगा.


अगर सरकार आपकी मांगे जल्दी नहीं मानती और अन्ना की हेल्थ ज्यादा खराब हो जाती है तो आपका अगला स्टेप क्या होगा?
देखिये इस बारे में कोई भी फैसला अन्ना जी खुद लेंगे. हम इस मामले में सिर्फ सरकार से पाजिटिल रिस्पान्स की उम्मीद ही रख सकते हैं.

अनशन और ज्यादा लंबा चला तो इस भीड को मैनेज करना कठिन हो सकता है. आप इस चिन्ता से कितना वाकिफ है?हम सभी इस बात को लेकर चिन्ता में है कि अगर कुछ अप्रिय होता है तो हालात बेकाबू हो सकते हैं. संडे को जिस तरह 1 लाख से भी ज्यादा लोग इंडिया गेट से रामलीला मैदान पहुंचे वह वाकई चिन्ताजनक है. इतनी भीड़ में कुछ भी हो सकता है. क्या आप कोई बीच का रास्ता निकालने को तैयार हैं?बीच का कोई रास्ता नहीं है और हमारी सारी मांगे संवैधानिक हैं. अगर सरकार चाहती है कि प्रधानमंत्री को लोकपाल से बाहर रखें तो हम इसे कतई नहीं मानेंगे. आखिर इतनी लड़ाई के बाद भी एक कमजोर सा लोकपाल लाने में आखिर किसका भला होगा.आप लोगों से क्या अपील करना चाहेंगे?मै सभी दोस्तों से यही कहूंगा कि गांधी के बताए इस रास्ते को भूले नहीं. हमें शान्तिपूर्ण तरीके से अपनी बात रखनी है. हमारी एक गलती पूरे आन्दोलन को कमजोर कर सकती है.  Interviewed by: Alok Dixit

Posted By: Divyanshu Bhard