150 वर्ष पुरानी गहरेबाजी को मिली सिर्फ एक घंटे की परमीशन

सावन के प्रत्येक सोमवार को होता है आयोजन, गहरेबाज तैयार

ALLAHABAD: प्रयाग में तीर्थ पुरोहितों द्वारा डेढ़ सौ वर्ष पहले शुरू की गई गहरेबाजी की परंपरा का आकर्षण शहरियों के सिर पर चढ़कर बोलता है.भगवान भोलेनाथ के पूजन-अर्चन के सबसे पवित्र महीने सावन में होने वाली गहरेबाजी का आकर्षण इस बार भी दिखाई देगा लेकिन जिस मार्ग पर उसका आयोजन होने जा रहा है वहां कुंभ के लिए कराए जा रहे सड़क चौड़ीकरण व सौंदर्यीकरण के कार्यो की वजह से आयोजन की टाइमिंग को कम कर दिया गया है। यही वजह है कि गत वर्ष गहरेबाजी का आयोजन डेढ़ से दो घंटे तक हुआ था तो इस बार डीएम सुहास एलवाई ने गहरेबाजी के लिए एक घंटे की ही परमीशन दी है।

एमजी मार्ग पर दिखेगा रोमांच

प्रयाग गहरे बाजी संघ की ओर से सावन माह के प्रत्येक सोमवार को गहरे बाजी का आयोजन मेडिकल कालेज चौराहा से सीएमपी डिग्री कालेज तक किया जाएगा। इसके लिए जिला प्रशासन ने शाम पांच से छह बजे तक की परमीशन दी है। इतने कम समय के बावजूद संघ से जुड़े गहरेबाजों ने अपने-अपने घोड़ों को कदम ताल कराने के लिए कमर कस ली है।

घोड़ों के नाम भी कमाल के

गहरे बाजी संघ में एक दर्जन से ज्यादा सदस्य हैं। इसमें गंगा जमुनी तहजीब की मिसाल देखने को मिलती है। संघ के सदस्यों में हिन्दू और मुस्लिमों की बराबर भागीदारी है तो सदस्यों के घोड़ों का नाम भी अजीबोगरीब है। जैसे लालजी यादव के घोड़े का नाम 'भूकंप', विष्णु महाराज के घोड़े का नाम 'बादल', पप्पू बेली का 'तूफान', अतीक का 'राकेट', सादिक का 'पच कल्याण' व अशोक के घोड़े का नाम 'सुरंग' है। इसके अलावा अटाला के जमाल के घोड़े का नाम 'अब लक' व ममफोर्डगंज के दिलीप का घोड़ा 'सफेदा' नाम से जाना जाता है।

इस बार जिला प्रशासन ने एक घंटे ही गहरेबाजी का आयोजन करने की अनुमति दी है। ताकि विकास कार्यो के साथ घंटों जाम की समस्या का सामना ना करना पड़े।

बदरे आलम,

अध्यक्ष, प्रयाग गहरेबाजी संघ

Posted By: Inextlive