'कुंभ' शब्द का अर्थ है घट या घड़ा और 'कुंभ' का अर्थ ब्रह्माण्ड भी है। जहां पर विश्व भर के धर्म जाति भाषा तथा संस्कृति आदि का एकत्र समावेश हो वही कुंभ मेला है। कुंभ मेले का प्रारंभ कब से हुआ इसका ठीक—ठाक निर्णय करना कठिन है।

कुंभ महापर्व एक महत्वपूर्ण और सार्वभौम महापर्व माना जाता है, जिसमें विराट मेले का आयोजन होता है। कुंभ मेला भारतवर्ष ही नहीं, बल्कि दुनिया का सबसे बड़ा मेला है। विश्व भर में कहीं भी इतने विशाल पैमाने पर मेले का आयोजन नहीं होता है, यह इसकी मुख्य विशेषता है।

'कुंभ' शब्द का अर्थ

'कुंभ' शब्द का अर्थ है घट या घड़ा, और 'कुंभ' का अर्थ ब्रह्माण्ड भी है। जहां पर विश्व भर के धर्म, जाति, भाषा तथा संस्कृति आदि का एकत्र समावेश हो, वही कुंभ मेला है। कुंभ मेले का प्रारंभ कब से हुआ, इसका ठीक—ठाक निर्णय करना कठिन है। परंतु कुंभ महापर्व के विषय में पुराणों में एक प्रसंग आया हुआ है, जिसके आधार पर कहा जा सकता है कि यह मेला प्राचीन काल से लगता रहा है। आज केवल उसकी आवृत्ति मात्र होती है।

समुद्र मंथन की घटना

जनश्रुति के अनुसार, एक समय भगवान विष्णु के निर्देशानुसार देवों तथा असुरों ने मिलकर संयुक्तरूप से समुद्र मंथन किया। जब देवों तथा दैत्यों ने मिलकर मंदराचल पर्वत को मंथनदंड और वासुकि को नेती-मंथन-रज्जु बनाकर समुद्र मंथन किया, तब समुद्र से चौदह रत्न निकले थे। जो इस प्रकार हैं- ऐरावत, कल्पवृक्ष, कौस्तुभमणि, अश्व, चन्द्रमा, धनुष, कामधेनु, रम्भा, लक्ष्मी, वारुणी, विष, शंख, धन्वंतरि और अमृत।

जानें क्या है पूर्ण कुंभ और अर्द्धकुंभ


धन्वंतरि अमृत कुंभ लेकर निकले ही थे कि देवों के संकेत से देवराज के पुत्र जयंत अमृत कुंभ को लेकर वहां से भाग निकले। दैत्यगुरु शुक्राचार्य के आदेशानुसार, दैत्यों ने अमृत कुंभ छीनने के लिए जयंत का पीछा किया। जयंत और अमृत कुंभ की रक्षा के लिए देवगण भी दौड़ पड़े। आकाश मार्ग में ही दैत्यों ने जयंत को जाकर घेर लिया। तब तक देवगण भी जयंत की रक्षा के लिए वहां पहुंच गए। फिर क्या था, देवों और दैत्यों में घमासान युद्ध छिड़ गया और 12 दिन तक युद्ध चलता रहा। दोनों दलों के संघर्ष-काल में अमृत कुंभ से पृथ्वी पर चार स्थानों पर अमृत की बूंदें छलककर गिर गईं। अमृत प्राप्ति के लिए 12 दिनों तक देवों तथा दानवों में युद्ध हुआ था। देवों के 12 दिन मनुष्यों के 12 वर्ष के बराबर होते हैं। इस कारण कुंभ मेला भी 12 वर्ष के बाद एक स्थान पर होता आया है, इसे ही पूर्ण कुंभ कहते हैं।

इन 4 जगहों पर गिरी थीं अमृत की बूंदें


जिन चार स्थानों में अमृत की बूंदें गिर गई थीं, वे चार स्थान हैं- हरिद्वार, प्रयागराज, नासिक और उज्जैन। इसलिए इन चार स्थानों में 12 वर्षों के बाद कुंभ मेला लगता है, जो लगभग ढाई महीने तक चलता है। इसे पूर्ण कुंभ के नाम से जाना जाता है। हरिद्वार तथा प्रयाग में छः साल के बाद अर्द्धकुंभ मेला लगता है। जो इस वर्ष 14 जनवरी से प्रयागराज में प्रारंभ हो रहा है, जिसे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अर्द्धकुंभ की जगह कुंभ के नाम से मनाने की घोषणा की है।

— ज्योतिषाचार्य पं गणेश प्रसाद मिश्र, शोध छात्र, ज्योतिष विभाग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय

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Posted By: Kartikeya Tiwari