10 साल पहले के कांग्रेस के प्रदर्शन को दोहरा पाना प्रियंका गांधी के लिए पहली चुनौती है। दो सीटों को छोड़कर पूरे प्रदेश में कांग्रेस को शिकस्त मिलती रही है।


फैक्ट मीटर- 2009 में कांग्रेस को यूपी में 21 सीटें मिली थी।- 2014 कांग्रेस की सीट घटकर केवल 2 रह गईं।- 2004 में प्रियंका ने मां और भाई के लिए प्रचार की शुरुआत कीlucknow@inext.co.inLUCKNOW : प्रियंका गांधी को कांग्रेस का राष्ट्रीय महासचिव और पूर्वी यूपी का प्रभारी बनाने के बाद दस साल पहले लोकसभा चुनाव में किए गये अपने प्रदर्शन को दोहराना पहली चुनौती के रूप में सामने है। ध्यान रहे कि वर्ष 2009 में कांग्रेस को यूपी में 21 सीटें मिली थी जिसकी बदौलत केंद्र में यूपीए की सरकार बनने की राह आसान हो गयी थी। पांच साल बाद कांग्रेस की सीट घटकर केवल दो रह गयी। तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और राष्ट्रीय महासचिव राहुल गांधी रायबरेली और अमेठी सीट को ही बचा सके थे। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि कांग्रेस इस 'टेन ईयर चैलेंज' को कैसे पूरा करती है।


15 साल का प्रचार का अनुभव

प्रियंका गांधी ने मां और भाई के लिए प्रचार की शुरुआत वर्ष 2004 में की थी। इस दरम्यान वे कई बार रायबरेली और अमेठी के दौरे पर रहीं पर खुद कभी चुनाव लड़ने या सक्रिय राजनीति में आने से बचती रहीं। कांग्रेस का गढ़ माने जाने वाले रायबरेली और अमेठी में प्रियंका की खासी लोकप्रियता है। यही वजह है कि पिछले लोकसभा चुनाव में उन्होंने अमेठी में भाजपा की कद्दावर नेता स्मृति ईरानी को जीतने नहीं दिया। प्रियंका को ट्रंप कार्ड मान रहे कांग्रेसी नेताओं का मानना है कि उनकी आमद से यूपी में कांग्रेस का पुनर्जन्म होगा। खासतौर पर भाजपा का गढ़ माने जाने वाले पूर्वी उप्र में कांग्रेस सीधी टक्कर में रहेगी।सपा-बसपा गठबंधन को भी चुनौतीप्रियंका की यूपी की सक्रिय राजनीति में इंट्री ने सपा-बसपा गठबंधन को पशोपेश में डाल दिया है। बदले हालात में उन्हें अपनी रणनीति में बदलाव करना होगा। वही सपा-बसपा गठबंधन के मुकाबले कांग्रेस में जाने वाले नेताओं की तादाद ज्यादा होने की संभावना भी जताई जा रही है। प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष शिवपाल सिंह यादव की कांग्रेस से चुनावी गठबंधन को लेकर चल रही बातचीत भी सपा-बसपा की मुसीबतों में इजाफा कर सकती है।गांधी परिवार को भाता है सेंट्रल यूपी

गांधी परिवार का यूपी राजनीति से दशकों पुराना नाता है और देश को तमाम प्रधानमंत्री भी इसी परिवार से मिले है। दरअसल इसकी शुरुआत जवाहर लाल नेहरू से हुई थी जिन्होंने इलाहाबाद को अपना कर्मक्षेत्र बनाया था। इसके बाद उनकी पुत्री इंदिरा गांधी और दामाद फिरोज गांधी सक्रिय राजनीति में आए और रायबरेली और प्रतापगढ़ में कांग्रेस का परचम लहराते रहे। उनके पुत्र संजय गांधी ने अपना पहला चुनाव अमेठी से लड़ा पर वे केवल पांच महीने तक ही सांसद रह सके और एक विमान दुर्घटना में उनकी मृत्यु हो गयी।रायबरेली से सोनिया लगातार चुनी जा रही हैं सांसदइंदिरा गांधी की हत्या के बाद राजीव गांधी ने भी यूपी को ही चुना। राजीव की लिट्टे आतंकियों द्वारा हत्या किए जाने के बाद रायबरेली सीट से सोनिया गांधी लगातार सांसद चुनी जाती रही है। वहीं राहुल गांधी के सक्रिय राजनीति में आने के बाद अमेठी सीट उनके खाते में रही। गांधी परिवार से अलग होकर केवल मेनका गांधी ने तराई के पीलीभीत में अपना राजनैतिक वजूद स्थापित किया और कई बार सांसद रहीं। उनके पुत्र वरुण गांधी भी पीलीभीत से सांसद रह चुके है। पिछले लोकसभा चुनाव में उन्होंने सुल्तानपुर से जीत हासिल की थी।

Posted By: Satyendra Kumar Singh