पूर्वोत्तर राज्य मिज़ोरम में कांग्रेस की चुनावी नैया को पार लगाने की जिम्मेदारी मुख्यमंत्री ललथनहावला के कंधों पर है.


एक छोटे से सरकारी मुलाज़िम से मुख्यमंत्री पद तक का सफ़र तय करने वाले 71 साल के ललथनहावला की आज 10 जनपथ तक सीधी पहुँच है और वे गांधी परिवार के क़रीबी माने जाते हैं.ललथनहावला ने अपना करियर मिज़ो ज़िला परिषद के स्कूल निरीक्षक के दफ्तर में एक रिकॉर्डर की हैसियत से शुरू किया था.इसके बाद उन्होंने 1963-64 के दौरान असम कोऑपरेटिव एपेक्स बैंक में डीलिंग असिस्टेंट के पद पर काम किया.इसी दौरान उन्होंने आइज़ॉल कॉलेज से अपनी ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी की. मिज़ोरम तब असम में एक जिला परिषद हुआ करता था और लालडेंगा की अगुवाई में मिज़ो नेशनल फ्रंट अलग देश के लिए लड़ रहा था.
एमएनएफ़ पढ़े लिखे नौजवानों की तलाश में था और ललथनहावला से इसमें शामिल होने की लगातार पेशकश कर रहा था. हालांकि एक अलगाववादी आंदोलन से जुड़ने की आशंका के बावजूद ललथनहावला एमएनएफ में शामिल हो गए और जल्द ही उन्हें इसका 'विदेश सचिव' बना दिया गया.साल 1967 में सरकार ने ललथनहावला को देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार कर लिया और उन्हें असम के सिलचर और नवगाँव की जेल में भेज दिया गया.ललथनहावला यहाँ 1969 में अपनी रिहाई तक रहे. एमएनएफ सेना या पुलिस के गिरफ्तार किए गए अपने कैडर को संगठन में वापस नहीं लेता था.


इसलिए जेल से रिहा होने के बाद ललथनहावला राजनीति के अखाड़े में कूद पड़े. हालांकि इस बार उनके हाथों में झंडा दूसरा था. ये झंडा था कांग्रेस का.अलगाववादी से मुख्यमंत्री तक"एक छोटे से सरकारी मुलाज़िम से मुख्यमंत्री पद तक का सफ़र तय करने वाले 71 साल के ललथनहावला की आज 10 जनपथ तक सीधी पहुँच है और वे गांधी परिवार के क़रीबी माने जाते हैं. ललथनहावला ने अपना करियर मिज़ो जिला परिषद के स्कूल निरीक्षक के दफ्तर में एक रिकॉर्डर की हैसियत से शुरू किया था."चुनावी राजनीति में उनकी पारी साल 1972 में शुरू हुई जब मिज़ोरम को कड़ी मशक्कत के बाद असम से अलग कर संघ शासित प्रदेश बनाया गया. वे आइज़ॉल उत्तर सीट से मिज़ो यूनियन के आर थंगलियाना के हाथों अपना पहला विधानसभा चुनाव हार गए.साल 1978 के अगले चुनाव में उन्होंने चंफई सीट पर ब्रिगेडियर टी साइलो की अगुवाई वाली पीपुल्स कॉन्फ्रेंस पार्टी के सखावलियाना को शिकस्त दी.ब्रिगेडियर साइलो को मिज़ोरम के कद्दावर नेताओं में गिना जाता था. साल 1984 में कांग्रेस ने मिज़ोरम का मैदान मार लिया और ललथनहावला पहली बार मुख्यमंत्री बने.30 जून 1986 को भारत ने एमएनएफ़ के साथ ऐतिहासिक मिज़ो शांति समझौते पर दस्तखत किए.

समझौते की शर्तों के तहत ललथनहावला ने मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र दे दिया और लालडेंगा की अगुवाई वाली एमएनएफ़ की अंतरिम सरकार के गठन का रास्ता साफ कर दिया.ललथनहावला का ये कदम सियासी तौर पर फायदे का सौदा रहा और इससे उनकी छवि एक परिपक्व राजनेता की भी बनी.यहाँ तक कि लोग आज भी ललथनहावला के पीछे हटने के उस फैसले को याद करते हैं और उनके फैसले को मिज़ोरम में अमन बहाली के लिए रास्ता बनाने के कदम के तौर पर देखा जाता है.साल 1989 में जब राज्य में विधानसभा चुनाव हुए तो कांग्रेस को अच्छे नतीजे मिले और ललथनहावला दूसरी बार मुख्यमंत्री बने.ललथनहावला गांधी परिवार के करीबी माने जाते हैं1993 में तीसरी बार उन्होंने मिज़ोरम जनता दल के साथ गठजोड़ करके कांग्रेस की सरकार बनवाई. सत्ता में 10 साल तक बने रहने के बाद 1998 में ललथनहावला ने हार का स्वाद चखा.चुनावी समरवे सरछिप विधानसभा सीट पर लोक निर्माण विभाग के एक रिटायर्ड इंजीनियर से चुनाव हार गए. इन चुनावों में कांग्रेस के सत्ता से बाहर होने की वजह सत्ता विरोधी लहर और दो विपक्षी पार्टियों एमएनएफ और मिज़ो पिपुल्स कॉन्फ्रेंस का गठजोड़ था.
ये ललथनहावला ही थे जिन्होंने पार्टी के बचाव के लिए अपनी पूरा राजनीतिक कौशल झोंक दिया. साल 2008 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले वे बागियों को पार्टी में दोबारा वापस ले आए और चौथी बार मिज़ोरम के मुख्यमंत्री बने. मिज़ोरम के लोग अपने मुख्यमंत्री को एक कद्दावर नेता के तौर पर देखते हैं.खुद उन्होंने अपनी विनम्रता से दिल्ली में गांधी परिवार का भरोसा जीता है और पिछले चार दशकों में ये रिश्ता और मजबूत हुआ है. बहरहाल, आने वाले दिसंबर में राज्य विधान सभा चुनाव उनके लिटमस टेस्ट की तरह होंगे.1993 में ललथनहावला की शुरू की गई 'न्यू लैंड यूज पॉलिसी' (एनएलयूपी) से मिले सियासी फायदे ने साल 2008 में कांग्रेस को सत्ता दिलाई थी. इस नीति के तहत किसानों को खेती के इतर ज़मीन की स्थायी बंदोबस्ती के जरिए वैकल्पिक रोज़गार देना था.पाँच साल"ये ललथनहावला ही थे जिन्होंने पार्टी के बचाव के लिए अपनी पूरा राजनीतिक कौशल झोंक दिया. 2008 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले वे बागियों को पार्टी में दोबारा वापस ले आए और चौथी बार मिज़ोरम के मुख्यमंत्री बने. मिज़ोरम के लोग अपने मुख्यमंत्री को एक कद्दावर नेता के तौर पर देखते हैं."
साल 2008 में उन्होंने एनएलयूपी को दोबारा शुरू किया और हरेक किसान परिवार को एक लाख रुपए देने का वादा किया. आने वाले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को एनएलयूपी के सहारे एक बार फिर से चुनावी वैतरणी पार करने की उम्मीद है. लेकिन ये उम्मीद थोड़ी ज्यादा लगती है.कांग्रेस की राजनीतिक विरोधी एमएनएफ जनता के बीच ललथनहावला के पिछले पाँच साल के कार्यकाल के दौरान हुए वित्तीय कुप्रबंधन, भ्रष्टाचार, प्रशासनिक विफलता, महँगाई और खराब सड़कों का मुद्दा उठा रही है. इसके अलावा हाल में हुए एक कार्यक्रम में मुख्यमंत्री के तिलक लगाने पर चर्च ने अपनी नाखुशी जताई है.जानकारों का कहना है कि इससे रूढ़िवादी ईसाई शायद ललथनहावला के लिए वोट न करें. इस विवाद पर ललथनहावला ने कहा कि किसी को तिलक लगाना उसके स्वागत करने का भारतीय तरीका है और "मिज़ोरम के मुख्यमंत्री की हैसियत से मैं जहाँ भी गया हूँ, वहाँ मेरा गर्मजोशी से स्वागत किया गया है."ललथनहावला के बारे में मुख्यमंत्री के मीडिया सलाहकार एलआर साइलो कहते हैं, "वे एक अच्छे, ताकतवर और लोकप्रिय व्यक्ति हैं. पिछले पाँच साल के दौरान उनका कामकाज और न्यू लैंड यूज़ पॉलिसी इन चुनावों में प्रमुख मुद्दे होंगे."मिज़ोरम विधानसभा की सभी 40 सीटों पर जीत सुनिश्चित करने के लिए पार्टी ने अपने कार्यकर्ताओं से चुनावों में कड़ी मेहनत करने की अपील भी की है.

Posted By: Satyendra Kumar Singh