कहां दर्ज हुई एफआईआर, ढूंढते रह जाओगे
- थानों पर पुलिस के खेल से हो रही प्रॉब्लम
- व्यू एफआईआर में जघन्य जघन्य कॉलम से छिपा रहे तथ्यGorakhpur@inext.co.inGORAKHPUR: यूपी की पुलिस सीसीटीएनएस के जरिए ऑनलाइन हो चुकी है। यूपी पुलिस की वेबसाइट पर पब्लिक के लिए मौजूद सुविधाओं का लाभ कहीं से उठाया जा सकता है। लेकिन एफआईआर का डाटा फीड करने के दौरान जिले के थानों में भी चल रहे खेल से आमजन के लिए एफआईआर देख पाना मुश्किल होता जा रहा है। कोई व्यक्ति एफआईआर न देख सके, इससे बचने के लिए थानों की पुलिस खुद अपराध कर रही है। वहीं,अधिकारियों का कहना है कि उनको अभी ऐसी कोई जानकारी नहीं है।
ऑनलाइन होने से मुंशी, दीवान को घाटा
प्रदेश पुलिस को हाईटेक करते हुए सीसीटीएनएस योजना से जोड़ दिया गया है। सभी थानों, जिला पुलिस मुख्यालयों सहित अन्य दफ्तरों को एक सर्वर से कनेक्ट करके ऐसी व्यवस्था की गई है कि जहां पर जरूरत पड़े, वहीं पर पुलिस की वेबसाइट पर लॉगइन करके लोग एफआईआर देख सकें। अपनी समस्याओं को बताकर पुलिस से मदद मांग सकें। ऑनलाइन एफआईआर दिखाई पड़ने से थानों में तैनात मुंशियों और दीवान की अहमियत कम होने लगी थी। करीब दो साल बाद एफआईआर को फीड करने में ऐसा खेल शुरू हुआ है कि कोई भी उसे आसानी से नहीं देख सकता है।
एफआईआर दर्ज करने और फिर एफआईआर की कॉपी पीडि़त को देने का नियम है। लेकिन शहर से लेकर देहात तक एफआईआर दर्ज करने के पहले जहां पीडि़त को कई बार दौड़ना पड़ता है। वहीं एफआईआर लिखे जाने के बाद कॉपी लेने में भी थानों के चक्कर लगाने पड़ते हैं। मुंशी और दीवान की कड़ी पैरवी के बिना एफआईआर की कॉपी नहीं निकल पाती। बताया जाता है कि कोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए फीडिंग के दौरान ऐसा खेल खेला जा रहा है कि जिससे हर कोई एफआईआर आसानी से पढ़ न सके। बता दें, कोर्ट का आदेश है कि रेप जैसे मामलों में एफआईआर शो नहीं होनी चाहिए। इससे पीडि़त की पहचान उजागर होने का खतरा रहता है। लेकिन पुलिस इसका बेजा फायदा उठाते हुए फीडिंग के समय जघन्य अपराध का कॉलम भर देती है। थानों की पुलिस जब किसी भी मामले में इस कॉलम को भर दे रही है तो वह एफआईआर छिप जाती है।