RANCHI: रातूगढ़ के ऐतिहासिक रातू पैलेस में होने वाली दुर्गापूजा 112 सालों का सफर पूरा कर चुकी है. बंगाली पद्धति से होने वाली इस दुर्गापूजा में राजपरिवार की मौजूदगी में सारे विधि-विधान कराए जाते हैं. इस बार भी इसी परंपरा के अनुसार रातू पैलेस में दुर्गापूजा का आयोजन चल रहा है. इतने सालों बाद भी यहां पूजा में कोई चेंजेस नहीं आए हैं. लेकिन चार साल पहले नागवंशीय युवराज गोपाल शरणनाथ शाहदेव के निधन से लोग आज भी उबर नहीं पाए हैं और यही कारण है कि यहां की दुर्गापूजा का रंग फीका पड़ गया है.


वृहद नंदकेश्वर मत से पूजा यहां की पूजा की बंगाली पुरोहित ही करते थे। राजपुरोहित कामदेव नाथ मिश्रा का कहना है कि यहां पर दुर्गापूजा वृहद नंदकेश्वर पद्धति से होती है। यह प्रचीन बंगाली पूजा पद्धति है। इसके अनुसार दुर्गापूजा के पहले महाराज हर साल एक ब्राह्मण को विशेष तौर पर पूजा कराने के लिए नियुक्त करते हैं। बंगाल की दुर्गापूजा की यह सबसे प्राचीन और प्रमुख पद्धति है। इसका धार्मिक महत्व बहुत ज्यादा है।112 स्वर्णिम वर्ष
रातू पैलेस में दुर्गापूजा की शुरुआत नागवंश के 61वें महाराज प्रताप उदय नाथ शाहदेव ने की थी। उन्होंने ही रातू पैलेस का निर्माण 1899 में शुरू कराया था, जो 1901 में तैयार हुआ। यहां पिछले 26 सालों से दुर्गापूजा कराने वाले राजपुरोहित कामदेव नाथ मिश्रा का कहना है कि रातू पैलेस की दुर्गापूजा न सिर्फ छोटानागपुर बल्कि पूरे झारखंड-बिहार में अपना विशिष्ट स्थान रखती है। इन सालों में बाकी जगहों पर दुर्गापूजा का स्वरूप चाहे जितना भी बदल गया हो लेकिन यहां की दुर्गापूजा आज भी अपने पारंपरिक स्वरूप को बनाए हुए है।

Posted By: Inextlive