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सरकारी विभागों में अपना काम कराना मतलब मुश्किलों को दावत देना है। बैंक हो, पुलिस हो, शिक्षा हो या फिर कोई अन्य विभाग। आप बिना लेन-देन के आगे बढ़ ही नहीं सकते। यह पीड़ा ऐसे युवाओं की है जो सोमवार को दैनिक जागरण-आई नेक्स्ट के मिलेनियल्स स्पीक कार्यक्रम में अपनी राय जाहिर कर रहे थे। इस दौरान मौजूद सभी के मन में सरकारी विभागों में व्याप्त भ्रष्टाचार को लेकर दर्द दिखा। युवाओं ने दो-टूक कह दिया कि सरकारी विभागों में ब्यूरोक्रेट्स की लॉबी काम करती है। इसको समाप्त करना है तो सरकारी विभागों के परिसर में नहीं बल्कि प्रत्येक विभाग में अधिकारी की कुर्सी के आसपास कैमरा लगाना चाहिए। तब देने वाले से ज्यादा लेने वाले अधिकारियों में खौफ रहेगा।

सुधार के लिए एजी ऑफिस जैसा संदेश

युवाओं ने सरकारी विभागों में कैमरा लगाने की बात कही तो उसी तर्ज पर सिस्टम में सुधार के लिए एजी ऑफिस का भी उदाहरण दिया। युवाओं ने कहा कि प्रयागराज बाबुओं का शहर माना जाता है और है भी। एजी ऑफिस में एक अफसर ऐसे भी थे जिन्होंने सिस्टम में सुधार के लिए ऐसा कार्य किया कि उसकी गूंज दिल्ली दरबार तक पहुंची थी। जिस ऑफिस में अधिकारी और कर्मचारी अटेंडेंस लगाकर दिन भर बाहर घूमा करते थे और अन्यत्र कार्य करते थे। वहां पर एक आला अधिकारी की कर्तव्यनिष्ठा की वजह से अब शाम को छह बजे अधिकारी और कर्मचारी ऐसे निकलते हैं जैसे किसी स्कूल में छुट्टी के बाद बच्चों का हुजूम निकलता है। युवाओं ने कहा कि जिस तरह एजी ऑफिस में सुधार हुआ है उसी तरह सरकारी विभागों में कर्तव्यनिष्ठ लोगों को जिम्मेदारियां देनी होंगी। उसके बाद सिस्टम में सुधार और भ्रष्टाचार के रूप में लेनदेन की प्रथा भी समाप्त हो सकती है।

कड़क बात

युवाओं ने सर्जिकल स्ट्राइक और एयर स्ट्राइक के मुद्दे पर सीधे कहा कि राजनीति करने के लिए देश में एक छोर से लेकर दूसरे छोर तक अनगिनत मुद्दे हैं। राजनैतिक दलों को उन पर बात करनी चाहिए। देश की राजनीति इंडियन आर्मी का मनोबल गिराने का काम करती है। सर्जिकल में यही हुआ और अब एयर स्ट्राइक पर भी वही घटिया राजनीति की जा रही है। योगराज मिश्रा ने कहा कि इंडियन आर्मी के कार्यो में किसी भी राजनैतिक दल का हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए। इसका नुकसान हमारी आने वाली पीढि़यों को उठाना पड़ेगा। क्योंकि आर्मी के कार्यो में राजनीति होती रही तो अभिभावक अपने बच्चों को आर्मी में भेजने से कतराएंगे।

मेरी बात

जब तक देश में लार्ड मैकाले की शिक्षा पद्वति के अनुसार शिक्षण कार्य होगा तब तक क्वॉलिटी एजुकेशन की बात करना बेमानी साबित होगा। जयवर्धन त्रिपाठी ने बताया कि शिक्षा व्यवस्था संस्कारों पर आधारित होनी चाहिए। संस्कार ही नहीं होगा तो क्या शिक्षक क्या विद्यार्थी और क्या अभिभावक। हर कोई अपने-अपने हिसाब से शॉर्टकट तरीके से औपचारिकता ही पूरी करता रहेगा।

सतमोला बॉक्स

सतमोला खाओ, कुछ भी पचाओ

डिस्कशन के दौरान युवाओं ने काला धन के असर या बेअसर पर अपनी बातें अलग ढंग से रखी। उनका कहना था कि हम कितना कमा रहे हैं इस पर टैक्स नहीं लगना चाहिए। हम उसका कितना यूज कर रहे हैं उस पर सरकार को टैक्स लेना चाहिए। यह व्यवस्था लागू की जाए तो परिणाम पर बहुत असर पड़ सकता है।

कॉलिंग

इस देश में भ्रष्टाचार को समाप्त करने की जितनी बातें होती हैं, उतनी ही तेजी से भ्रष्टाचार बढ़ता जा रहा है। कानून बना हो या बनाया जाएगा इससे कुछ नहीं हासिल हो सकता है। सरकारों को तो प्रत्येक विभाग में कैमरा लगा देना चाहिए। तब अधिकारी डरेंगे और हमें भी लेन-देन करने से रोकेंगे। लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि इसको लेकर आज तक कोई कार्य नहीं किया गया है।

बद्री नारायण दीक्षित

काला धन रोकने के लिए नोटबंदी सिर्फ एक उपाय था। बैंकों का तानाशाही रवैया बंद किया जाना चाहिए। बैंकों में आम आदमी को परेशान किया जाता है और छोटा सा भी लोन लेना हो तो सिर्फ चक्कर लगाते रहिए। डिजिटल लेनदेन का सिस्टम बहुत अच्छा है। इससे काला धन पर अंकुश लगाया जा सकता है। बस सरकार डिजिटल लेनदेन में छूट का प्रावधान करने की घोषणा भी कर दे।

सत्यानंद त्रिपाठी

सर्जिकल स्ट्राइक से लेकर एयर स्ट्राइक तक पर देश में सिर्फ राजनीति ही हो रही है। कभी किसी ने सुना है कि इंडियन आर्मी में राजनीति होती है। तो फिर आर्मी का मनोबल गिराने के लिए इस देश में क्यों राजनैतिक दलों द्वारा राजनीति की जाती है। इसका असर देश की आने वाली पीढि़यों पर पड़ेगा लेकिन राजनैतिक दलों को बस सत्ता हासिल करने के लिए वोट का लालच ही दिखाई देता है।

पवन मिश्रा

सरकारी विभागों में अधिकारी और कर्मचारी बेलगाम हो गए हैं। ब्यूरोक्रेट्स का अपना सिस्टम होता है। वो समझते हैं कि यह हमारा हक है। वहां पर भी पारदर्शिता लाने के लिए सिर्फ बातें होती हैं। हकीकत में ऐसा हो जाए तो देश की तस्वीर बदल सकती है। तब सही मायने में लेन-देन की प्रथा समाप्त हो जाएगी।

विनय दीक्षित

बेरोजगारी, किसानों की दुर्दशा और उनकी आत्महत्या सहित देश में अनगिनत मुद्दे हैं। राजनैतिक दलों को उन पर बातें करनी चाहिए नाकि आर्मी के कार्यो और उनके सिस्टम पर सवाल खड़ा करना। ऐसा लगातार किया जा रहा है जो देश के लिए खतरनाक हो जाएगा। दुश्मन आधी जंग इसी चीजों से जीत जाएगा।

वैभव दीक्षित

अक्सर सेमिनार में क्वॉलिटी एजुकेशन पर लम्बा-चौड़ा प्रवचन दिया जाता है। इसे मैंने खुद कई बार सुना है। क्या हकीकत में प्रवचन देने वाले विद्वान ऐसा करते हैं? मुझे तो लगता है कि वो सिर्फ खानापूर्ति करने के लिए ही प्रवचन देते है। गंभीरता के साथ प्रयास किया गया तो आज हमारे देश का एजुकेशन सिस्टम सबसे बेस्ट होता।

राजू कांत

जब से समझने लायक हुआ हूं तब से देश में काला धन समाप्त करने की बात हो रही है। लेकिन काला धन और उसको एकत्र करने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है। हर दूसरे दिन अखबारों में पढ़ता हूं कि फलां जगह आयकर ने छापा मारा और इतने करोड़ कैश पकड़ा गया। सिस्टम को पूरी तरह से गंभीर होकर ऐसे मुद्दे को समाप्त करना होगा।

मयंक यादव

देश की राजनीति सिर्फ आर्मी का मनोबल गिराने का काम कर रही है। इसी का फायदा उठाकर दुश्मन हमें कहीं से भी तोड़ देता है। पुलवामा में हुआ आतंकी हमला इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। इसको जड़ से खत्म करने के लिए कहीं भी आवाज नहीं उठती है। न ही राजनैतिक दल इस पर एकजुट होकर साथ नजर आते हैं।

अरविंद पांडेय

इंडियन आर्मी की स्ट्राइक से दुश्मनों के हौसले पस्त हो गए हैं। लेकिन वहां पर राजनीति इस कदर हावी हो गई कि आर्मी बेबस नजर आती है। इस पर तो संसद में विधेयक लाना चाहिए। ताकि आर्मी के खिलाफ बोलने वालों को कड़ी सजा दी जा सके। तभी लोगों में भय होगा और आर्मी के खिलाफ बोलने से पहले दस बार सोचेंगे।

संजय उपाध्याय

मैं तो कहता हूं कि क्वॉलिटी एजुकेशन की बात क्यों की जाती है। अगर शिक्षकों और शिक्षिकाओं को सिर्फ अध्यापन कार्य कराया जाए तो एजुकेशन क्वॉलिटी अपने आप ही सुधर जाएगी। लेकिन उनसे तो देशभर में अलग-अलग तरीके का कार्य लेने का सिलसिला लगातार चलता आ रहा है।

संतोष उपाध्याय

Posted By: Inextlive