हमारा हृदय हमारे मस्तिष्क को काम करने से नहीं रोकता। अपने हृदय का अनुसरण करने पर हम सामान्य ज्ञान से अलग नहीं हो जाते। हम में से बहुत लोग कहते हैं 'मैं अपने दिल की बात सुनना चाहता हूं लेकिन मेरे मस्तिष्क का क्या?’

सवाल - इस समय पूरे विश्व में हिंसा और युद्ध के साथ-साथ अत्यंत उन्मादी मानव आचरण देखा जा रहा है. अत:अपने हृदय का अनुसरण करने के कुछ बेहतरीन तरीके क्या हैं और कुछ करने के लिए उपयुक्त समय के बारे में हम कैसे जान सकते हैं?

हमारा हृदय हमारे मस्तिष्क को काम करने से नहीं रोकता। अपने हृदय का अनुसरण करने पर हम सामान्य ज्ञान से अलग नहीं हो जाते। हम में से बहुत लोग कहते हैं, 'मैं अपने दिल की बात सुनना चाहता हूं, लेकिन मेरे मस्तिष्क का क्या?’  जब हमारी बुद्धि पंक्तिबद्ध होती है, तो सबकुछ एक ही दिशा में चलता है। मन और मस्तिष्क के बीच समस्या केवल तब उत्पन्न होती है, जब वे सत्य के साथ पंक्तिबद्ध नहीं होते और जब हृदय कुछ आवेगपूर्ण करना चाहता है या फिर जब हृदय अंतज्र्ञानी न होकर आवेगशील, भावनात्मक, अहंकारी या लालसाओं से भरा हुआ होता है। वहीं जब हृदय वास्तव में अंतज्र्ञानी व प्रगाढ़ होता है, मन में भय नहीं होता और उसे अनुकूलन की आवश्यकता नहीं होती, तब वास्तविक ज्ञान, समझ और विचारों का बोध हमें होता है। उस समय दोनों चीजें पंक्तिबद्ध होती हैं।

हमारी दुनिया में आज जो भी घटनाएं हो रही हैं, उनके बारे में हमें मन और मस्तिष्क दोनों के साथ सोचने की जरूरत है। सिर्फ खुले मन से उस घटना को देखना पर्याप्त नहीं है। न ही उसके बारे में अत्यधिक चिंतन करके परेशान होना पर्याप्त है। फेसबुक पर उसे पोस्ट करके उसकी व्याख्या करना भी पर्याप्त नहीं है। उसके खिलाफ याचिकाओं पर हस्ताक्षर करना भी पर्याप्त नहीं है। यहां तक कि उस संस्था को सिर्फ चेक पर हस्ताक्षर करके भेजना भी पर्याप्त नहीं है, जो वहां शांति कार्य कर रहा है।

यह सब अच्छी चीजें हैं और सभी महत्वपूर्ण हैं, लेकिन हममें से प्रत्येक व्यक्ति को उसमें भागीदारी करनी होगी न सिर्फ मन से, बल्कि कुछ ठोस कदम उठाकर भी और कोई उठाते समय सचेत रहना होगा। मन-मस्तिष्क दोनों को साथ लेकर कुछ करना होगा। बिना सोचे-समझे कोई कदम नहीं उठाना चाहिए।

-साध्वी भगवती सरस्वती जी            

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Posted By: Kartikeya Tiwari