- आई नेक्स्ट ने जाना कैसे रहती हैं एक कमरे में 60 बच्चियां

- क्या अफसरों या नेताओं की बच्चियां ऐसे ही रहती हैं?

- क्या एनजीओ चलाने वालों की बेटियां ऐसे ही जमीन पर सोती हैं?

PATNA : ये बच्चियां हैं। इन्हें सही से जीने का हक है। पटना के आकाशवाणी मोड़ के पास रेनबो होम आइए तो आप कई सवालों से टकाएंगे। सवाल ये कि क्या इन बच्चियों को ऐसे ही रहना चाहिए? क्या महिला सशक्तीकरण का सच ऐसा ही होना चाहिए? क्या इतनी गर्मी में इतने बड़े हॉल में तीन पंखे काफी हैं? क्या सोने के लिए ऐसे ही इंतजाम होने चाहिए? सवाल कई हैं लेकिन जवाब सिर्फ एक- मेरी मर्जी। आई नेक्स्ट ने कामकाजी महिलाओं के लिए बने आकांक्षा हॉस्टल का सच सामने लाने के बाद रेनबो होम की ओर रुख किया। यहां देखा कि एक आदमी छड़ी लिए छत पर से कुछ बच्चियों को सीढ़ी से नीचे उतार रहा था। बाकी बच्चियां अब तक रात का खाना खा चुकी थीं। एक हॉल में कितनी बच्चियों को रखना है? यह सवाल आपके मन में भी उठेगा। हमें बताया गया कि यहां म्0 बच्चियां रह रही हैं लेकिन अभी ब्0 बच्चियां हैं।

ऐसे सोती हैं ये नन्हीं-मुन्नी

कोई अनाथ तो किसी के घर में पापा नहीं सबकी अलग-अलग कहानी। सब कहानियां रुलाने वाली। दिल को हिलाने वाली। अब उन्हें छत मिली पर कैसी छत। यहां तो गर्मी दूर करने को महज तीन पंखे ही हैं। एसी के लिए जो जगह है वह बिना पल्ले वाली खिड़की बन गई है। महिला जागरण केन्द्र की ओर से यह रेनबो होम चलता है। राष्ट्रीय रेन्बो होम भी इसे मदद करता है। रेन्बो देश की बड़ी एनजीओ है, जिसे गवर्नमेंट का भी सहयोग मिलता है।

दुर्गा के पापा नहीं और मां फुटपाथ पर

इस बच्ची का नाम है दुर्गा। क्लास टू में पढ़ती है। पापा का प्यार किसे कहते हैं वह नहीं जानती। सिर्फ मां है और घर में छोटी बहन। बहन का हाथ टूटा है। घर जानते हैं आप कहां है? घर है गांधी मैदान के किनारे फुटपाथ।

निक्की आई है दीघा से

निक्की क्लास सेवन में पढ़ती है। दीघा से पढ़ने आई है। मां-पापा हैं और चार भाई भी, फिर भी यहां रहती है और पढ़ती है।

दनियावां वाली पुतुल

पुतुल टू क्लास में पढ़ती है। तीन भाई, तीन बहन है, लेकिन सिर्फ यही है जो यहां रहती है। उससे पूछा गया कि क्या-क्या खाने को मिलता है? वह बताने लगी ब्रेडबटर फिर कुछ याद करने लगती है। फिर सवाल अच्छा बताओ आज क्या खाने को मिला? हलुआ, खिचड़ी चोखा। मूढ़ी, मिक्चर, रोटी सब्जी। फिर सवाल तो क्यों बता रही थी कि ब्रेड, बटर। क्या यही किसी को बताने को कहा गया है? इस सवाल पर उसने हां कहा।

आग लग गई तो?

इस बिल्डिंग में पहले आग लग चुकी है, लेकिन अब भी यहां आग बुझाने का कोई इंतजाम नहीं दिखा। सोने का इंतजाम यह कि बच्चियां चटाई बिछाकर ही सोती हैं। कोई मच्छरदानी नहीं न ही और कुछ। जब बच्चियां सोती हैं तो बीच में काफी कम जगह बचती है। सोचिए कितनी जगह है जहां म्0 बच्चियां रहती हैं। क्या यही है जीने का स्टाइल।

जमीन टूटी, दीवार गंदी

जमीन कई जगह पर टूटी हुई है, जिससे खेलने पर बच्चियों को अक्सर चोट लगती है। दीवारों पर तो जैसे कई बरस से रंगरोगन हुआ ही नहीं है।

ये अपना घर है

यह गवर्नमेंट की ओर से संचालित अपना घर है। यहां भी कई तरह के बच्चे रहते हैं। यहां स्ट्रेंथ है क्00 बच्चों को रखने का, लेकिन 8ब् बच्चे रह रहे हैं। बच्चे कैसे रहते हैं? हम देखना जानना चाहते थे, लेकिन हमें ये कहकर टरकाया गया कि ऊपर से परमिशन लिए बिना अंदर नहीं जा सकते। बताया गया कि ख्00म् में यह गायघाट में चलता था। तीन महीने से ज्यादा समय तक रहने वाले बच्चे नजदीक के गवर्नमेंट स्कूल में पढ़ते हैं। मानसिक शारीरिक रूप से विक्षिप्त बच्चे ब्क् हैं, जिन्हें यहीं पढ़ाया जाता है।

आपने फोटो कैसे खींच लिया

आई नेक्स्ट ने देखा कि औरंगाबाद का एक परिवार अपने बच्चे को लेने आया। पता चला कि चितरंजन नाम का यह बच्चा मौसी के घर से भाग कर हैदराबाद चला गया। ख्0 अप्रैल को ही वह भागा था। किसी तरह उसे अपना घर लाया गया और फिर यहां से उसके घर वालों को खबर की गई और वे लोग चितरंजन को यहां से ले गए। चितरंजन से कई सवाल किए, पर सुस्त दिमाग का चितरंजन ठीक से जवाब नहीं दे पाया। अपना घर से बाहर निकलते समय चितरंजन और उसके परिवार वालों का जैसे ही फोटो क्लिक किया कि एक अफसर की गाड़ी लगी और सवाल दागा परमिशन ले लिया है?

Posted By: Inextlive