Lucknow: कई दशकों तक अपने रीडर्स के दिलों पर राज करने वाले जासूसी दुनिया के कैरेक्टर राजन और इकबाल से लोगों को एक बार फिर मिलने का मौका मिलेगा. राजन इकबाल के जनक एससी बेदी फिर से अपनी कल्पना को उड़ान देने की तैयारी कर रहे हैं.


 कार राजन ड्राइव कर रहा था। इकबाल उसकी बगल में बैठा हुआ था। एकाएक इकबाल बोलामाना कि तुम चुप रहते हुए बहुत अच्छे लगते हो लेकिन यह तो बता दो हम जा कहां रहे हैं? होटल गौतम क्या लंच वहीं लेने का इरादा है? लाश के साथ लंच नहीं लिया जाता लाश?कुछ याद आया यह लाइनें पढऩे के बाद। कभी बच्चों के यह फेवरेट कैरेक्टर राजन इकबाल आज की जेनरेशन को भले न याद आएं लेकिन वो बड़े, जो राजन और इकबाल की जासूसी कहानियों को कभी छुप कर, कभी कॉमिक्स की दुकान पर बैठ कर, तो कभी स्कूल कॉलेज कैम्पस में पढ़कर बड़े हुए हैं उन्हें जासूसी की दुनिया के यह होनहार जरूर याद आ गये होंगे।
आज पढऩे वालों को सिर्फ राजन इकबाल की याद दिलाने के लिए नहीं बल्कि करीब दो तीन दशकों तक बच्चों के साथ बड़ों के दिलों पर राज करने वाले राजन इकबाल के जनक एससी बेदी से की जिन्दगी से रूबरू होने का मौका भी मिलेगा। करीब 15 साल पहले अपनी कलम को कभी न उठाने के लिए छोड़ चुके एससी बेदी ने एक बार फिर से कलम और कागज उठा लिया है।


राज पाकेट बुक्स के लिए एक बार फिर वो राजन इकबाल को अपनी कल्पना में ढाल रहे हैं फर्क बस इतना है कि इस बार वो सीक्रेट सर्विस नहीं बल्कि सीक्रेट एजेंट बन कर किला फतह करेंगे।बदले दौर ने मन को किया उचाटदौर के साथ बहुत बदलाव आते हैं और दौर के इसी बदलाव के चलते एससी बेदी ने लिखना ही छोड़ दिया था। विडियो गेम, स्कूलों में बच्चों पर पढ़ाई का बोझ, टीवी, इंटरनेट सभी चीजों ने बच्चों की लाइफ स्टाइल को क्या बदला कॉमिक्स, कथाएं और कहानियां पढऩे का मानो किसी के पास वक्त ही न बचा हो। अस्सी के दशक में राजन इकबाल का जादू हर एक के सिर चढ़ के बोलता था। यंगस्टर्स स्कूल फीस से पैसे बचाकर, अपना जेब खर्च सिर्फ राजन इकबाल पर खर्च करता था। पढऩे वालों का यह जनून ही था कि राजन इकबाल को लिखने वाले एससी बेदी ने एक ही सिरीज पर 1200 किताबें लिखीं। लेकिन तेजी से बदले दौर ने एसी बेदी के कलम पर भी रोक लगा दी थी। एससी बेदी कहते हैं कि मैं भी लोगों के बदलने के साथ लिखने से उकता गया था।दोबारा बनेगी राइटिंग टेबल

लिखना छोड़ कर अपना वक्त गुजारने के लिए जरनल मर्चेंट की दुकान खोल कर एससी बेदी ने अपना काफी वक्त गुजारा। कभी दिन रात जिन बड़ी बड़ी राइटिंग टेबल पर लिखा करते थे उन्हें भी उन्होंने अपना कलम छोड़ते ही घर से बाहर कर दिया। उन मेजों को बेचते वक्त उन्होंने यही सोचा था कि अब लिखना तो कभी है नहीं, लेकिन आज उनके कमरे को फिर से इंतजार है एक राइटिंग टेबल का। मेरे प्रकाशक दिल्ली से खुद यहां आए थे और उन्होंने मुझे फिर दोबारा लिखने के लिए मजबूर किया है। पहले चार किताबें एक साथ निकालेंगे और फिर शायद वो दौर दोबारा लौट कर मेरे सामने आ जाए। एससी बेदी कहते हैं कि मैंने राइटिंग टेबल का ऑर्डर दे दिया है और जल्द ही वो मेरे कमरे में होंगी। एक दौर था जब घर के साथ शहर भी सोता था और मैं कोयले की अंगीठी लेकर सुबह 4 बजे बैठ जाता और अपनी कल्पना को लफ्जों में उतारता रहता। इन दिनों सुबह 6 बजे उठ कर लिख रहा हूं।हसीनों का शहर से राजन इकबाल तक
अपने बचपन से स्कूल, कॉलेज में कहानियां लिख लिख कर कई पुरस्कार जीतने वाले सुभाष चन्द्र बेदी जो अब एससी बेदी के नाम से जाने जाते हैं ने कई बार अपने हर वक्त लिखने के कारण डांट भी खाई। उनके लिखने के इस शौक को प्रकाशकों ने समझा। उन्होंने दिल्ली में 1965 में पहला उपन्यास लिखा हसीनों का शहर। अपने पहले ही उपन्यास ने उन्हें चर्चा में ला दिया। इसके बाद कई उपन्यास उनके नाम हुए। शोहरत की बुलंदी उन्हें बस लिखते रहने के लिए मजबूर कर रही थी। फिर अचानक एससी बेदी ने बच्चों के लिए कुछ लिखने का सोचा। एससी बेदी कहते हैं कि परियां तितलियां जादू बच्चों को यही पढऩे को मिलता है। मैंने सोचा कुछ ऐसा लिखंू जो आजतक न लिखा गया हो। बहादुरी, साहस और हिन्दु मुस्लिम एकता, मैं सबको मिलाकर कुछ लिखना चाहता था। महीनों हमारी मीटिंग्स प्रकाशकों के साथ हुई और मेरे ही आसपास से राजन इकबाल को मैंने आखिर खोज ही निकाला। 1971 में पहली किताब आई और मेरे प्रकाशक ने यही कहा कि मेरे पास इतने लेटर कभी नहीं आए जितने राजन इकबाल के लिए आए हैं। नहीं जुटा पाया किताबें
लगातार लिखने वाले एसएसी बेदी को खुद नहीं पता था कि वो क्या कर रहे हैं। दिल्ली में गिनीज वल्र्ड ऑफ रिकार्ड के एक रिप्रेजेंटेटिव से बातों बातों में जब उन्होंने बताया कि उन्होंने एक ही सीरीज पर 1200 किताबें लिखी हैं तो उन्होंने उनकी इंट्री मांगी और सभी किताबें लाने को कहा। एससी बेदी कहते हैं कि मैं यही मानता हूं कि मेरी किस्मत खराब थी कि मैंने कभी अपनी किताबों ही हर कॉपी को अपने पास रखा नहीं। फिर बहुत कोशिश की, कई विज्ञापन दिये किताबों को कलेक्ट करने के लिए, लेकिन सिर्फ 600 किताबें ही जमा हो पाई थीं। नक्कालों से सावधानइस लाइन को कई बार दोहराने वाले एससी बेदी को भी नकल के धोखे का सामना करना पड़ा। किसी दूसरे प्रकाशक ने उन्हीं के नाम से उन्हीं के फोटो के साथ करीब सात सौ किताबें छपवा लीं जिसके लिए एससी बेदी को कोर्ट का सहारा लेना पड़ा। एससी बेदी कहते हैं कि किताब के पीछे मेरी शॉल वाली फोटो मेरी पहचान बन गई। मेरी वाइफ ने इस शाल को तीस साल पहले बुना था। अपनी नई शुरुआत में भी यह शॉल मेरे साथ है और राज पॉकेट बुक्स के लिए इस बार भी मेरी पहचान मेरी यही शॉल वाली फोटो ही होगी।

Report By: Zeba Hasan

Posted By: Inextlive