छत्तीसगढ़: रमन सिंह के नेतृत्व में टूटे कई मिथक
छत्तीसगढ़ में भी कई मिथक टूटे और बने. चुनावी गणित के खेल में कुछ आंकड़े अब भी ऐसे उलझे हैं, जिनका ठीक-ठीक जवाब न तो जीतने वालों के पास है और न ही हारने वालों के पास.लेकिन इस बात से इनकार किसी को भी नहीं है कि राज्य में रमन सिंह का लोकप्रिय चेहरा और सरकार की छोटी-बड़ी योजनाएं कांग्रेस पर भारी पड़ गईं. चुनाव प्रचार के दौरान कई अवसर ऐसे थे, जब रमन सिंह ने सार्वजनिक सभाओं में कहा कि उम्मीदवार को नहीं, उनके चेहरे को वोट दें. मतदाताओं ने रमन सिंह की बात मान ली.इस बार छत्तीसगढ़ में भाजपा को 53.4 लाख वोट मिले, जो कुल वैध मतों का 41.4 प्रतिशत था. कांग्रेस को 40.29 प्रतिशत यानि 52.44 लाख वोट मिले. यानी दोनों पार्टियों के बीच का अंतर एक प्रतिशत से भी कम रहा.
साल 2008 के चुनावी आंकड़ों को देखें तो भाजपा उस समय 43.33 लाख वोट पाकर 40.33 प्रतिशत पर थी और कांग्रेस को जनता ने 41.50 लाख वोट यानी 38.63 प्रतिशत के आंकड़े पर रोक दिया था.
ताज़ा चुनाव में भाजपा को 0.7 प्रतिशत की बढ़त मिली और कांग्रेस को 1.6 प्रतिशत की. भाजपा 2008 के 50 सीटों के बजाए इस बार एक सीट हार कर 49 सीट पर उतर गई और कांग्रेस ने एक सीट पर बढ़त बनाते हुए 38 से 39 सीट पर जा पहुंची. लेकिन कांग्रेस की कोई भी बढ़त काम नहीं आई.बस्तर का मिथक
कांकेर में कांग्रेस के शंकर ध्रुवा की जीत का अंतर 4625 था, जबकि नोटा का इस्तेमाल करने वालों की संख्या 5208 थी. दंतेवाड़ा में कांग्रेस की देवती कर्मा कुल 5987 वोटों से जीतीं लेकिन वहां 9677 लोगों ने नोटा में वोट डाले.इसी तरह कोंडागांव में कांग्रेस के ही मोहन मरकाम 5135 वोटों से जीते, वहां 6773 लोगों ने नोटा में वोट डालना पसंद किया. बस्तर की हरेक सीट पर चार हज़ार से अधिक नोटा वोट पड़े. चित्रकोट में कांग्रेस के दीपक बैज को कुल 50303 वोट मिले और जनता ने 10848 वोट नोटा में डाले.