सिटी को खास पहचान और इसकी जमीन को जान देने वाला रामगढ़ताल धीरे-धीरे अपने खात्मे की ओर बह रहा है. खुद नगर निगम पूरे शहर की गंदगी ताल में डाल रहा है जिससे इसका पानी इंसान क्या जानवरों के यूज के लायक भी नहीं रह गया है. कुछ कोशिशों के बाद कागजों में इसे नेशनल लेक कंजर्वेशन स्कीम में शामिल तो कर लिया गया लेकिन अधिकारियों और भू-माफिया की मिलीभगत से इस पर लगातार कब्जा होता जा रहा है.


सरकारी और गैर सरकारी आंकड़े बताते हैं कि यदि सब कुछ ऐसे ही चलता रहा तो अगले 25 सालों में यह नेचुरल गिफ्ट इतिहास के पन्नों में दफन होकर रह जाएगा।  जहरीला हो रहा है ताल का पानी


जी हां, वर्ल्ड एन्वॉयरनमेंट डे पर गोरखपुर केसबसे बड़े नेचुरल ट्रेजर के खतरे की बात बरबस ही है। सिटी और आसपास के ग्राउंड वाटर को रिचार्ज करने वाला और यहां के एन्वॉयरनमेंटल कंडिशंस को कंट्रोल करने वाले इस नाले के साथ बेहद खतरनाक खेल जारी है। नगर निगम की ओर से दाउदपुर, मोहद्दीपुर, बिछिया और गोड़धोइया नाले से रोजाना लाखों लीटर सीवर का गंदा पानी इस नाले में डाला जा रहा है। अधिकारियों के निकम्मेपन का आलम यह है कि तमाम बार डिसीजन होने के बावजूद नगर निगम इन नालों के मुहानों पर फिल्टर तक नहीं लगा पा रहा है जिससे कि ताल में सॉलिड वेस्ट न मिलने पाएं। इसके अलावा नगर निगम की दर्जनों गाड़ियां और तमाम प्राइवेट गाड़ियों से आधा दर्जन प्वाइंट्स पर सैकड़ों कुंतल कचरा सीधे रामगढ़ताल में डाला जाता है। इसका सीधा असर ताल के पानी की क्वॉलिटी और इसमें रहने वाली मछलियों, जानवरों और प्लांट्स पर पड़ रहा है। पानी में ऑक्सीजन की मात्रा इतनी कम हो जाती है कि इसमें मछलियां और दूसरे जानवर मरने लगे हैं। एक सर्वे के अनुसार पिछले तीस सालों में मछलियों की 40 में से केवल 18 प्रजातियां ही बची हैं। हर तरफ से कब्जा अभियान पॉल्यूशन के अलावा इस ताल को अवैध कब्जा खाए जा रहा है। पहले तो खुद जीडीए ने इस ताल की जमीन से 12 सौ एकड़ से अधिक हिस्से पर सर्किट हाउस, तारामंडल, बौद्ध संग्रहालय बना लिए बाकी सैकड़ों एकड़ जमीन पर भू-माफियाओं को कब्जा कर कॉलोनियां बनानेे दिया। ताल पर कब्जे के आंकड़े चौंकाने वाले हैं। इयर 1916 में जहां इस ताल का एरिया 1980 एकड़ था तो पांच साल पहले तक केवल 1700 एकड़ रह गया था। बीते पांच सालों में यह कब्जा 20 एकड़ हर साल की रफ्तार से होता रहा और जीडीए समेत पूरा प्रशासन देखता रहा। कब्जा इस समय भी जारी है और रेवेन्यू कर्मचारियों की मिलीभगत से कई किनारों पर मिट्टी डालकर कब्जा किया जा रहा है। ऐसे तो पूरा हो चुका प्रोजेक्ट

रामगढ़ ताल संरक्षण नागरिक मंच, गोरखपुर एन्वॉयरनमेंटल एक्शन ग्रुप समेत तमाम एनजीओ और दूसरे संगठनों की कोशिशों के बाद रामगढ़ ताल को नेशनल लेक कंजर्वेशन स्कीम के तहत शामिल कर लिया गया। इसके तहत इस ताल के कंजर्वेशन और डेवलपमेंट के लिए 124 करोड़ से अधिक का बजट एलॉट हुआ लेकिन लालफीताशाही और कार्यदायी संस्थाओं की लापरवाही से प्रोजेक्ट का आधा काम भी पूरा नहीं हुआ और तय समय में एक साल ही रह गए हैं। 2010 में शुरू हुए इस प्रोजेक्ट को 2013 तक पूरा हो जाना है। अभी तक पूरे प्रोजेक्ट में एक भी सेगमेंट पूरा नहीं हो सका है। होने हैं ये काम - ताल के एक तिहाई हिस्से में कब्जा किए जलकुंभी और झाड़ियों को निकालना - ताल से सिल्ट की सफाई का काम - ताल में वॉटर इंटरप्रिटेशन सेंटर और न्यूट्रिएंट एक्टिवेशन -  अलग-अलग कैपेसिटी के दो सीवेज पंपिंग स्टेशन और दो सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट- 2.7 किमी। लंबा सीवर लाइन - ताल के किनारे पर 3.5 किमी लंबा बांध और उस पर रोड- एक ओपन एयर थियेटर- ताल में दो ओमेगा आईलैंड - 6 कम्युनिटी लैट्रिन नदियां भी जहर की शिकार

सिटी के आउटर में बहने वाली नदियों पर भी पॉल्यूशन का अटैक जारी है। करीब 120 किलोमीटर लंबी आमी नदी की हालत सबसे खराब है। सहजनवां के गीडा से लेकर छताई गांव के पास से गुजरते-गुजरते इस नदी का पानी काला हो चुका है और इसको पीकर तमाम जानवर मर रहे हैं। यही आमी राप्ती से मिलकर इसके पानी को भी खराब कर रही है। तमाम संगठनों की कोशिशों के बावजूद अधिकारियों की निष्क्रियता से अभी तक कोई बड़ी पहल नहीं हो सकी है।

Posted By: Inextlive