घुप्प अंधेरी सुरंगों के बीच से निकलना और उसके बाद प्राकृतिक सौंदर्य से लबरेज पहाडिय़ों की ऊंचाइयों पर चढऩा...जरा सोचिए यह सफर कितना रोमांचकारी होगा! बस थोड़ा और इंतजार... रांची से वाया बरकाकाना होकर हजारीबाग-कोडरमा के बीच रेल के सफर में आप ऐसे ही थ्रील सस्पेंस और नैचुरल ब्यूटी से रू ब-रू होंगे. रांची से कोडरमा की दूरी 43 किमी कम करने वाला यह रेलवे प्रोजेक्‍ट अगले दो साल के भीतर पूरा होने की उम्‍मीद है।


200 किलोमीटर लंबी है रेलवे लाइन

कोडरमा-रांची रेललाइन का शिलान्यास 1999 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी ने किया था. 200 किलोमीटर लंबी इस रेललाइन को चालू करने के लिए डेडलाइन दो बार फेल कर चुकी है. 16 साल गुजर जाने के बाद भी रेल लाइन बिछाने का काम पूरा नहीं हो सका है. पठारी व जंगली इलाका होने की वजह से रेललाइन बिछाने में काफी दिक्कतें आई हैं. कोडरमा-रांची रेललाइन में तीन सुरंगों के अलावा, एक दर्जन पुल, 113 छोटी पुलिया के साथ ही 28 रोड ओवरब्रिज होंगे. पांच सालों में सुरंग लगभग बनकर तैयार है. ड्रेनेज और कंक्रीट का काम चल रहा है. इसके बाद ट्रैक बिछाने का काम शुरू होगा.  खपिया में बनाई जा रही सुरंग भी 600 मीटर लंबी होगी. तीसरी सुरंग दुंर्गी गांव से होकर गुजरेगी, जिसकी लंबाई 300 मीटर होगी. तीनों सुरंगों को कुल लंबाई करीब डेढ़ किलोमीटर होगी. प्रोजेक्ट लेट होने से इसक लागत 3 हजार करोड़ रुपए तक पहुंच गई है।


ये रेलवे ट्रैक चालू होने का फायदा

हजारीबाग से बरकाकाना होते हुए रेल लाइन बीआइटी मेसरा स्टेशन के बाद टाटीसिल्वे पहुंचेगी। शानदार तरीके से बनाया जा रहा है यह स्टेशन। इससे पहले हजारीबाग के बाद चरही, मांडू, कुज्जू, अरगड्डा और बरकाकाना स्टेशन होगा। इन स्टेशनों से कोयला ढुलाई से रेलवे को काफी राजस्व मिलेगा। वहीं, बरकाकाना के बाद शिवधर, हेहल, दरिदाग, सानिली, झंझीटोली, हुंनरू, बीआइटी मेसरा और टाटीसिल्वे स्टेशन तक ट्रेन चलने से किसानों को भी मार्केट तक पहुंचने में दिक्कतों का सामना नहीं करना पड़ेगा। साथ ही स्टूडेंट्स के लिए बीआइटी मेसरा स्टेशन एक बेहतर विकल्प साबित होगा। उन्हें बीआइटी आने के लिए अब रांची स्टेशन उतरने की जरूरत नहीं पड़ेगी।

 

वीडियो में देखें, कैसे हैं इस रेलवे ट्रैक के नजारे

Posted By: Chandramohan Mishra