RANCHI : रंगों की कलाकारी से कैनवास में कई लोग रंग तो भर देते हैं लेकिन ऐसे कम ही कलाकार हैं जो बिना कलर का यूज किए सिर्फ पेंसिल के सहारे शानदार चित्रकारी करते हैं. ऐसी कि उनकी बनाई चीजों में एकदम जान आ जाती है. साथ ही देखनेवाले भी उनकी चित्रकारी में खो जाते हैं. अपनी सिटी में भी एक ऐसी आर्टिस्ट हैं जिन्होंने पेंसिल की बदौलत ऐसी-ऐसी तस्वीरें बनाई हैं जिन्हें न सिर्फ देशभर के कला समीक्षकों न सराहा है बल्कि इन्हें खरीद कर लोगों ने अपने-अपने घरों में सजाना पसंद भी किया है. ये आर्टिस्ट हैं कडरू के समराज अपार्टमेंट में रहनीवाली डॉ. रीना सिंह. डॉ रीना सिंह सेंट्रल स्कूल दीपाटोली में ड्राइंग टीचर हैं. बचपन से ही ड्राइंग और तस्वीरें बनाने में इंट्रेस्ट रखनेवाली डॉ. रीना सिंह को महारत तो वाटर और ऑयल पेंटिंग में भी है लेकिन पेंसिल आर्ट जैसी बारीक कलाकारी में तो उनकी पूरी कंट्री में अपनी एक अलग पहचान है. दुर्भाग्य से सिटी के बहुत कम लोगों को इस बात की जानकारी है कि अपनी सिटी में एक ऐसी कलाकार हैं जो देश के जाने-माने पेंटर में शुमार की जाती हैं.


कला में बनाना था अलग मुकाम
डॉ। रीना सिंह कहती हैं-कला की ओर रुझान कैसे हुआ, यह मुझे खुद याद नहीं है। यूं समझ लीजिए कि जबसे होश संभाला, तभी से अपने को इससे कनेक्ट पाया। जब मैं तीसरी क्लास में पढ़ रही थी, उसी समय मेरी दीदी ने एक चित्र बनाया, जो एक स्त्री का था। मैंने जब इसको देखा तो मुझे लगा कि इसमें कुछ कमी है। उसके बाद मैंने पेंसिल उठायी और उसको ठीक किया। मेरी दीदी ने जब मेरे इस हुनर को देखा तो काफी प्रभावित हुईं और मुझे ड्राइंग बनाने के लिए मोटिवेट करने लगीं। इसके बाद मैं स्कूल में ड्राइंग और पेंटिंग कॉम्पटीशन में हिस्सा लेकर अवॉर्ड लेती रही। वहीं से मेरा हौसला बढ़ा और मैंने फिर इसी फील्ड में कॅरियर बनाने की सोची। इसके बाद मैंने कानुपर यूनिवर्सिटी से एम इन ड्राइंग आर्ट और बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी से हिस्ट्री ऑफ आर्ट में पीएचडी की। पढ़ाई के दौरान ही मेरी पेटिंग्स की एग्जीबिशन भी लगती रही, जहां पर देश के जाने-माने कला समीक्षक मेरी पेटिंग की तारीफ करते थे।

नहीं सहा अब जाता देव
महादेवी वर्मा की एक कविता 'नहीं सहा अब जाता देव, थकी अंगुली है ढीले तार, विश्ववीणा में अपनी आजÓ कविता की थीम पर डॉ रीना सिंह ने एक पेटिंग बनाई थी, जो लखनऊ की एक कला प्रदर्शनी में लगी हुई थी। इसमें परमात्मा में विलीन होने को उन्होंने अपनी पेटिंग के जरिए दिखाया था। इस पेंटिंग को लेकर काफी चर्चा हुई थी, जिसेे अवार्ड दिया गया। उस समय यह पेंटिंग काफी अच्छे पैसे में बिकी भी थी। उसके बाद रीना वर्मा ने सैकड़ों ऐसी पेंटिंग्स बनाईं, जो देश के अलग-अलग हिस्सों में आयोजित हुई कला प्रदर्शनियों में शामिल हुई।

फेमिनिस्ट थीम के लिए हैं फेमस
डॉ रीना कहती हैं-वैसे तो मैं हर तरह की पेटिंग बनाती हूं। लेकिन महिलाओं और उसमें भी खासकर देश के अलग-अलग हिस्सों की ग्रामीण महिलाओं को थीम बनाकर मैं पेटिंग बनाती हूं। जिसमें मुझे काफी संतुष्टि भी मिलती है। रीना सिंह ने साल 1980 में एक ग्रामीण वृद्धा की पेंसिल से पेंटिंग बनाई थी। जिसकी कला जगत में चर्चा हुई थी।

फैमिली का मिला सहयोग
डॉ रीना सिंह का मानना है कि कला के इस सफर में आज अगर उनका एक अलग मुकाम बना है, तो इसमें उनके हसबैंड और फैमिली का काफी अहम रोल है। हालांकि शादी के पहले भी वह पेंटिंग करती थीं और उनकी पेटिंग्स एग्जीबिशन में शामिल भी होती थीं, लेकिन शादी के बाद उनके हसबैंड संजय सिंह, जो अभी राज्य निर्वाचन आयोग में स्टैक्टिकल ऑफिसर हैं, ने उनकी हर कदम पर हौसला अफजाई की। उनके बच्चों का भी उन्हें सहयोग मिलता रहा।

खलता है आर्ट गैलरी नहीं होना  
झारखंड में आर्ट गैलरी नहीं होने से यहां के कलाकारों को अपनी कला की प्रदर्शनी लगाने का मौका नहीं मिलता है। ऐसे में उनकी बनाई हुई पेटिंग को जो प्लेटफॉर्म मिलना चाहिए, वह नहीं मिलता है। जिससे उनकी कला का प्रचार-प्रसार नहीं हो पाता है। यह कहना है डॉ। रीना सिंह का। डॉ रीना कहती हैं कि झारखंड गवर्नमेंट को इस पर ध्यान देना चाहिए। क्योंकि झारखंड में एक से बढ़कर एक कलाकार हैं। लेकिन उनके बारे में लोगों को पता नहीं चल पाता है।

Posted By: Inextlive