रोडवेज के बेडे़ में 10 साल से पुरानी रोडवेज बसों की भरमार

एनजीटी के मानकों को ताक पर रखकर दौड़ रही हैं खटारा बसें

Meerut। आगरा में हुए जनरथ बस के हादसे के बाद भले ही प्रदेश में रोडवेज सेवा को सुरक्षित और बेहतर करने पर मंथन शुरु हो गया हो लेकिन हकीकत में खुद रोडवेज बसों की खस्ता हालत यात्रियों समेत चालक-परिचालकों की जान की दुश्मन बनी हुई हैं। बसों में लाइट से लेकर ब्रेकिंग सिस्टम, टायर व अन्य सेफ्टी उपकरण राम भरोसे हैं।

एनसीआर में 10 साल पुरानी बसें

एनसीआर में पॉल्यूशन कम करने के लिए एनजीटी द्वारा 10 साल पुराने डीजल वाहनों का संचालन बैन है। ऐसे में मेरठ रीजन की 10 साल से अधिक पुरानी बसों का संचालन एनसीआर से बाहर बिजनौर, बागपत, मुजफ्फरनगर, शामली, गढ़, बड़ौत आदि रूटों पर किया जा रहा है। मगर इन बसों का संचालन मेरठ के भैंसाली और सोहराबगेट डिपो से ही होता है। यानि सवारी छोडने और लेने के लिए ये बसें मेरठ तक संचालित हो रही हैं।

छत से लेकर टायर तक खस्ताहाल

इन बसों की हालत इस कदर खस्ता है कि बस के इंजन से लेकर टायर में आए दिन पंक्चर होते रहते हैं। खासतौर पर देहात रुट पर चलने वाली बसों का हाल बेहाल है। ये बसें बीच सफर में ही दम तोड़ देती हैं। बसों के ब्रेकिंग सिस्टम से लेकर हार्न, लाइट तक जुगाड़ सिस्टम पर ही रन कर रहे हैं। सबसे अधिक परेशानी आए दिन गाडि़यों के टायर फटने से होती है। खस्ताहाल बसों की हालत यह है कि बसो की छतें तक बरसात में टपकने लगती हैं। इतना ही नहीं सीटें फटेहाल हैं तो खिड़कियों के शीशे टूटे हुए हैं।

फायर सिस्टम व फ‌र्स्ट एड गायब

बसों में यात्रियो की सुरक्षा के लिए इमरजेंसी डोर, फायर सिस्टम, फ‌र्स्ट एड बॉक्स आदि की व्यवस्था की जाती है लेकिन पुरानी बसों में ये सभी सुरक्षा संसाधन गायब हैं। बसों के फायर सेफ्टी उपकरण खराब हो चुके या गायब हैं। इमरजेंसी डोर जाम हैं, ऐसे में हादसे के बाद यात्रियों की जान बचाने के प्रयास में बस से निकलने की व्यवस्था भी नाकाम साबित हो सकती है।

बसों की नियमित जांच व रिपेयरिंग की जाती है। जो 10 साल पुरानी बसें हैं उनका नॉन एनसीआर क्षेत्र में संचालन हो रहा है। एनसीआर में संचालन बैन है इसलिए डयूटी केवल देहात व नॉन एनसीआर में लगाई गई है।

एसएल शर्मा, मेरठ डिपो प्रभारी

Posted By: Inextlive