- हिट एंड रन मामलों में नहीं होती है रोडवेज ड्राइवर्स पर कार्रवाई

- पिछले 10 सालों में किसी ड्राइवर का नहीं हुआ लाइसेंस रद

- वर्ष 2010 से 2015 तक रोडवेज की बसों से 135 एक्सीडेंट

- इन पांच महीनों में सिर्फ 35 कर्मियों पर हुई डिपार्टमेंटल कार्रवाई

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sharma.saurabh@inext.co.in

Meerut : ट्रैफिक नियमों को फॉलो न करने वालों पर कार्रवाई हो जाती है। यहां तक की उनके लाइसेंस तक कैंसल हो जाते हैं। उसके बाद उनका ताउम्र लाइसेंस तक नहीं बनता, लेकिन ड्राइवर्स में एक ऐसा तबका भी है जिन्हें सात खून माफ है। जी हां, हम बात कर रहे हैं रोडवेज के ड्राइवर्स की, जो एक्सीडेंट से बस में बैठे दर्जनों लोगों की जान को तो जोखिम में डालते ही हैं। दूसरी ओर जिस वाहन से बस का टकराव होता है उसमें बैठे लोगों की जान तक चली जाती है। बावजूद इसके ऐसे ड्राइवर्स के खिलाफ आज तक कोई कड़ी कार्रवाई नहीं की जाती है। यहां तक की उनका चालान तक नहीं काटा जाता है। रोडवेज के अधिकारी खुद अपने ड्राइवर्स को बचाने का प्रयास करते हैं।

पांच महीनों की स्थिति

इस साल पांच महीनों की बात करें तो रोडवेज की बसों द्वारा क्फ्भ् एक्सीडेंट सामने आ चुके हैं। इसका मतलब साफ है कि हर महीने में ख्7 एक्सीडेंट रोडवेज की बसों से हो रहे हैं। जिनमें कई घटनाएं ऐसी हैं जो सामने नहीं आ पाती हैं। अधिकारियों की मानें तो कुछ घटनाएं ऐसी होती हैं जिसमें कोई हताहत नहीं होता है, लेकिन ऐसी घटनाओं से दर्जनों लोगों की जान का खतरा जरूर रहता है।

पांच सालों में नहीं हुआ सुधार

अगर बात पिछले पांच सालों की करें तो हर साल फ्00 से अधिक एक्सीडेंट रोडवेज की बसों से ही हुए हैं। अगर बात ख्0क्0 की करें तो रोडवेज की बसों से ख्9भ् एक्सीडेंट हुए थे। वहीं बात ख्0क्क् की करें तो फ्फ्7, ख्0क्ख् में बढ़कर आंकड़ा फ्ब्म् पहुंच गया। ख्0क्फ् में फ्9म् एक्सीडेंट और वर्ष ख्0क्ब् में ख्97 एक्सीडेंट हो चुके हैं, लेकिन इन एक्सीडेंट के मामलों पर न तो डिपार्टमेंट ही गौर करता है.और न ही पुलिस।

सिर्फ फ्भ् पर ही कार्रवाई

रोडवेज के आधिकारिक सूत्रों की मानें तो इन पांच महीनों में सिर्फ फ्भ् ही चालकों पर कार्रवाई हुई है। वो भी ये सभी चालक संविदा के थे। इन पर कार्रवाई डिपार्टमेंटल की गई है। सूत्रों की मानें तो जब भी किसी बस का एक्सीडेंट होता है तो उस बस के चालक और परिचालक के बारे में पूरी डिटेल पास ही होती है। मामला शांत होने के बाद उसे ऑफिस मे बुलाकर कार्रवाई की जाती है। परिचालक को उसमे कोई सजा नहीं दी जाती है।

आखिर किस तरह की मिलती है सजा?

अधिकारियों की मानें तो ऐसे में मामलों में रोडवेज के आलाधिकारी या तो चालक को कुछ दिनों के लिए सस्पेंड कर देते हैं या फिर वेतनमान काट लेते हैं। इससे ज्यादा कोई सख्त सजा नहीं दी जाती है। न तो उसका लाइसेंस रद करने की कार्रवाई की जाती है। पूर्व में आरएम रहे अधिकारी ने नाम न प्रकाशित करने की शर्त पर बताया कि एक्सीडेंट करने वाले ड्राइवर्स से रिकवरी भी की जाती है।

लाइसेंस सिर्फ उन लोगों के ही रद कराए जाते हैं जो विकलांग हो जाते हैं। बाकी एक्सीडेंट में डिपार्टमेंटल इंक्वायरी होती है, जिसमें दोषी पाए जाने पर ड्राइवर्स पर कार्रवाई की जाती है।

- बीपी अग्रवाल, एआरएम, सोहराब गेट

पिछले दो सालों से रोडवेज की ओर से ऐसा कोई लेटर नहीं आया जहां उन्होंने अपने चालकों का लाइसेंस रद कराने को कहा हो। उनके अपने लॉज हैं। जिसके थ्रू वो कार्रवाई करते हैं।

- एसएस सिंह, एआरटीओ, परिवहन संभागीय विभाग

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नाइट ड्यूटी करने वाले अधिकतर ड्राइवर्स नींद के चलते नशे के आदी हो जाते हैं। जब ड्राइवर लगातार एक या दो रातों के जगे होते हैं और इसके बाद भी सफर करना पड़ता है तो ऐसे में नींद से बचने के लिए नशे का सहारा लेना पड़ता है। कई ड्राइवर्स मसाला व सिगरेट लेकर चलते हैं। कई बार तो चरस आदि का नशा भी लोग करने लगते हैं। जिससे एक्सीडेंट की संभावना भी काफी बढ़ जाती है।

फैक्ट एंड फिगर

- मेरठ रीजन में कुल रोडवेज डिपो भ्। (भैंसाली, मेरठ, सोहराब, गढ़मुक्तेश्वर, बड़ौत)।

- रीजन में चलने वाली कुल बसें 7म्9.

- कुल बसों में निगम बसों की संख्या ब्भ्0.

- कुल बसों में अनुबंधित बसों की संख्या फ्क्9.

- इन पांचों डिपो में चालकों की संख्या करीब क्भ्00.

- पिछले पांच महीनों में रोडवेज से होने वाले एक्सीडेंट क्फ्भ्।

- एक्सीडेंट पर सिर्फ फ्भ् चालकों पर हुई डिपार्टमेंटल कार्रवाई।

इंक्वायरी के बाद होती है कार्रवाई

रोडवेज के अधिकारियों की मानें तो रोडवेज की बसों से एक्सीडेंट होने पर यूं ही कार्रवाई नहीं की जाती है। उसके लिए जांच कमेटी बैठती है। जांच कई बिंदुओं पर की जाती है। जिनमें देखा जाता है कि कहीं बस बैठे भ्0-म्0 पैसेंजर्स को तो कोई जोखिम नहीं था। अगर था तो कितना था? अगर नहीं था तो तो ही चालक ने कोई नशा तो नहीं किया हुआ था? नींद में तो नहीं था? बस की स्पीड कितनी थी? दूसरा वाहन किस ओर से और कितनी स्पीड में आ रहा था? इन सब परिस्थितियों का अध्ययन करने के बाद ही की जाती है।

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जल्दबाजी भी है बड़ी वजह

एक डिपो से दूसरे डिपो गाड़ी ले जाने के बाद दोबारा वहां से चलने में थोड़ा वक्त लगता है। गाड़ी के आने, रुकने व चलने का समय फिक्स होता है, अगर गाड़ी किसी वजह से लेट हो जाती है तो ड्राइवर्स दूसरे डिपो तक पहुंचने में अंधाधुंध गाड़ी चलाते हैं। जिसका असर पैसेंजर पर भी काफी पड़ता है। खासकर ये जल्दबाजी रात में ही दिखाई जाती है।

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नशा करके चलाते हैं बस

Posted By: Inextlive