स्कूलों में बाइक से आना अलाउड नहीं, फिर भी अभिभावक बच्चों को थमा रहे बाइक

स्टूडेंट्स ट्रिपलिंग कर शहरभर की सड़कों पर दौड़ा रहे हैं वाहन

Meerut. शहर की सड़कों पर स्कूली स्टूडेंट्स बाइकों से फर्राटा भर रहे हैं. इतना ही नहीं हवा में लहराते उनके वाहन सड़कों पर मौत का तांडव भी कर रहे हैं. हैरानी की बात यह है कि सब कुछ जानते-बूझते भी जिम्मेदारों ने आंखें मूंद रखी हैं. गुरुवार को दैनिक जागरण आई नेक्सट के रियलिटी चेक के दौरान न केवल स्टूडेंट्स हवा में बाइक लहराते हुए मिले, बल्कि एक व्हीकल पर तीन व चार स्टूडेंट्स तक बैठे मिले. इसके अलावा व्हीकल की स्पीड भी काफी तेज थी. इस दौरान किसी भी स्टूडेंट ने हेल्मेट नहीं पहना था. इतना ही नहीं दूर-दूर तक कोई ट्रैफिक पुलिसकर्मी भी नजर नहीं आया.

नियमों की उड़ा रहे धज्जियां

शहरभर में स्कूल और स्कूली स्टूडेंट्स मिलकर यातायात नियमों की धज्जियां उड़ा रहे हैं. तमाम बंदिशों के बावजूद स्कूली स्टूडेंट्स गियर वाले वाहन लेकर न केवल स्कूल पहुंच रहे हैं बल्कि स्कूल प्रशासन भी उन्हें एंट्री दे रहा है. जबकि हादसा होने की स्थिति में न तो स्कूल संचालक जिम्मेदारी लेते हैं न ही प्रशासन.

यह है नियम

16 साल की उम्र में बिना गियर वाले व्हीकल का लाइसेंस बनता है.

बिना गियर वाले व्हीकल के लिए हेल्मेट और लाइसेंस रखना जरूरी होता है.

स्कूल 16 साल के स्टूडेंट्स को सिर्फ बिना गियर के व्हीकल की ही परमिशन दे सकते हैं.

इनका है कहना

बोर्ड क्लासेज व समय की बचत का हवाला देकर पैरेंट्स अपने बच्चों को बाइक पर स्कूल भेजते हैं. हम बार-बार समझाते हैं. कई बार स्टेटस सिंबल के तौर पर भी वह बच्चों को व्हीकल देते हैं. हमारी ओर से पूरा प्रयास किया जाता है कि बच्चे या तो साइकिल से आएं या स्कूल ट्रांसपोर्ट से ही आएं.

संगीता रेखी, प्रिंसिपल, राधा गोविंद पब्लिक स्कूल

कोचिंग व ट्यूशन की वजह से बोर्ड क्लासेज के स्टूडेंट्स बाइक या स्कूटी से आते हैं. हालांकि लाइसेंस और हेल्मेट चेक करके ही परमिशन दी जाती है. कई बार पैरेंट्स भी नहीं मानते हैं और बच्चों को बाइक थमा देते हैं.

डॉ. गोपाल दीक्षित, प्रिंसिपल, बीडीएस इंटरनेशनल स्कूल

मामला संज्ञान में नहीं हैं. अगर कानून का उल्लंघन किया जा रहा है तो निश्चित ही जिम्मेदारों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी. चेकिंग अभियान भी चलाया जाएगा.

महेश चंद शर्मा, एडीएम सिटी, मेरठ

ऑन रोड दुपहिया वाहनों की चेकिंग ट्रैफिक पुलिस की जिम्मेदारी है. हमारी ओर से समय-समय पर जागरूकता अभियान चलाया जाता है.

डॉ. विजय, आरटीओ, मेरठ

बोर्ड क्लासेज होती है. बच्चों के पास समय कम होता है. स्कूल ट्रांसपोर्ट या साइकिल से आने-जाने में दो-तीन घंटे बर्बाद हो जाते हैं. बच्चे को परफार्मेस देनी होती है. ऐसे में मजबूरी में ही व्हीकल दिया जाता है.

पंकज जैन, अभिभावक

घर से स्कूल काफी दूर है. बड़ी क्लासेज में पढ़ाई का काफी प्रेशर होता है. कोचिंग-ट्यूशन का भी समय तय होता है. टाइम मैनेजमेंट करना जरूरी होता है इसलिए बाइक देनी पड़ती है. हालांकि हम हेल्मेट और लाइसेंस देकर बच्चों को भेजते हैं.

राकेश, अभिभावक

Posted By: Lekhchand Singh