संयुक्त राष्ट्र ने मानव इतिहास के एक अत्यंत महत्वपूर्ण पड़ाव पर 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस घोषित किया है। आज योग विज्ञान पहले किसी भी समय के मुकाबले ज्यादा महत्वपूर्ण है। इतिहास में पहली बार हमारे पास धरती की पोषण स्वास्थ्य शिक्षा से जुड़ी हर समस्या का हल निकालने की क्षमता है।


हमारे पास विज्ञान और तकनीक के जबरदस्त साधन हैं, जिनमें पूरी दुनिया को कई बार बनाने या तबाह करने की क्षमता है, लेकिन अगर इतने शक्तिशाली साधनों का इस्तेमाल करने की काबिलियत के साथ संतुलन और परिपक्वता को शामिल करने की एक गहरी भावना न हो, तो हम विश्वस्तरीय तबाही के काफी करीब हो सकते हैं। हमारे बाहरी खुशहाली की बेरहमी से चल रही खोज की वजह से, धरती आज भी तबाह होने की कगार पर है। आज से पहले कभी भी लोगों की किसी पीढ़ी को इतनी सुख सुविधाएं नहीं मिली थीं, जितनी हमें आज मिल रही हैं। पर फिर भी हम इतिहास की सबसे आनंदित या प्रेममय पीढ़ी होने का दावा नहीं कर सकते। लोगों की एक बड़ी आबादी लगातार डिप्रेशन और तनाव में रहती है।


कुछ अपनी नाकामयाबी की वजह से दुखी हैं, लेकिन दुर्भाग्य से बहुत से लोग अपनी सफलता के परिणाम भुगत रहे हैं। कुछ लोग अपनी सीमाओं से दुखी हैं, लेकिन बहुत से लोग अपनी आजादी से दुखी हैं। आज के समय में जिस चीज की कमी है वह है मानवीय चेतना। बाकी सब कुछ सही स्थिति में है, लेकिन इंसान सही स्थिति में नहीं है। अगर इंसान अपनी खुशहाली की राह को खुद रोकना बंद कर दें, तो हर समाधान तक हमारी पहुंच है। यहीं योग एक महत्वपुर्ण भूमिका निभा सकता है। बहुत से लोग, योग शब्द सुनकर शरीर को मरोडऩे की कल्पना करने लगते हैं, लेकिन जब हम योग विज्ञान की बात करते हैं तो हमारा मतलब वह नहीं होता। योग कोई अभ्यास, कसरत या तकनीक नहीं है। योग शब्द का अर्थ है मिलन। इसका मतलब है, किसी के अनुभव में सब कुछ एक हो गया है। योग विज्ञान, मानव के भीतरी स्थान का एक गहरा विज्ञान है जो पूरे अस्तित्व के साथ पूरी सीध और तालमेल में होने की क्षमता देता है।

खुशहाली और आजादी की स्थिति में जीने और चेतना को ऊंचा उठाने की प्रणाली के रूप में योग जितनी विस्तृत प्रणाली कोई नहीं है। योग सभी धर्मों से पुराना है। ये हमें ये याद दिलाता है, कि अगर हम अपने अंदर देखें और मान्यताएं और निष्कर्ष एक ओर रख दें, तो सत्य हर हाल में हमारे अनुभव में आ जाएगा। सत्य कोई मंजिल नहीं है। ये हमारे रात के अनुभव की तरह है। सूरज कहीं नहीं जाता। बात बस इतनी है कि धरती दूसरी तरफ देख रही होती है। ज्यादातर समय लोग दूसरी तरफ देखने में बहुत मग्न होते हैं। उन्होंने इस चीज को जानने के लिए पर्याप्त ध्यान नहीं दिया है कि आत्मा असल में है क्या। योग कोई निष्कर्ष नहीं देता, बल्कि आपको भीतर मोड़ देता है। हजारों साल पहले, हिमालय के ऊपरी हिस्सों में एक महान योगी अवतरित हुए। उन्हें आदियोगी, या पहले योगी के नाम से जाना गया। उन्होंने अपने सात शिष्यों को योग विज्ञान प्रदान किया, जिन्होंने बाद में इसे पूरे विश्व में फैलाया। वही योग विज्ञान वर्तमान के परिप्रेक्ष्य में बहुत काम आ रहा है। ये विज्ञान एक क्रांतिकारी बुनियाद पर आधारित था कि हर इंसान चेतन होकर विकास कर सकता है। बस भीतर देखने की इच्छा होनी जरूरी है। उनके ज्ञान के सार को सिर्फ एक वाक्य में कहा जा सकता है कि समाधान सिर्फ भीतर है। एक बार ऐसा हुआ। कोई दक्षिण भारत में ईशा योग केंद्र खोजता हुआ आया।

वो पास के एक गांव में आया और वहीं रहने वाले एक बच्चे से पूछा कि 'ईशा योग केंद्र कितनी दूर है' बच्चे ने कुछ देर सोचा और कहा कि 24, 996 मीलज्ज् आदमी भौचक्का रह गया 'क्या, इतनी दूर?' बच्चा बोला कि जिस दिशा में आप जा रहे हैं। अगर आप उलटा मुड़ जाएं, तो वो बस चार मील दूर है। यही कहानी आपके शरीर पर भी लागू होती है कि अगर मानव आबादी का एक निश्चित प्रतिशत भीतर मुड़ जाए, तो विश्व में जीवन की क्वालिटी निश्चित रूप से बदल जाएगी। इस तरह के बदलाव की उम्मींद खासतौर पर विश्व के नेताओं में की जाती है। कुल मिलाकर खासकर अगर विश्व के नेताओं में इस तरह का बदलाव आ जाए, तो विश्व के काम करने में जबरदस्त तरह का बदलाव आ जाएगा। भीतर कोई दिशा नहीं है। ये एक आयाम है। अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मानवता के एक नए आयाम में प्रवेश करने की शुरुआत हो सकता है। ये सही राह हो सकता है, सही दृष्टिकोण हो सकता है। इस शुरुआत पर चलकर हम अपने आज और आने वाले कम को स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से पूरी तरह से बदल सकते हैं। सद्गुरु एक योगी, दिव्यदर्शी और युगद्रष्टा हैं, और उन्हें भारत के 50 सबसे प्रभावशाली व्यक्तियों की सूची में शामिल किया जा चुका है। 2017 में भारत सरकार ने सद्गुरु को पद्मविभूषण पुरस्कार के साथ सम्मानित किया था।
योग सभी धर्मों से पुराना है। ये भारतीय ज्ञान की पांच हजार वर्ष पुरानी शैली है। वास्तव में योग का अर्थ व्यायाम, शरीर को तोडने, मरोड़ने और खींचने से भी कहीं ज्यादा विशाल है। ये हमारे शरीर से कई तरीकों से जुड़ा है। प्रेम में मालकियत हिंसा ही तो है : ओशोइंसानों की तरह जानवर भी फील करते हैं स्प्रिचुएलिटी: साध्वी भगवती सरस्वतीएक योगी और दिव्यदर्शी सद्गुरु, एक आधुनिक गुरु हैं। 2017 में भारत सरकार ने सद्गुरु को उनके कार्यों के लिए पद्मविभूषण पुरस्कार से सम्मानित किया है।

Posted By: Vandana Sharma