RANCHI: झारखंड की मिट्टी से सिंचित विश्व में पहचान बनाने वाला संत अन्ना धर्म समाज का इतिहास क्फ्0 साल से भी अधिक पुराना है। इस धर्म समाज की स्थापना झारखंड की धरती पुत्री माता मेरी बेर्नादेत्त किस्पोट्टा द्वारा कराई गई है। डीएसए सिस्टर ललिता रौशनी लकड़ा का कहना है कि माता बेर्नादेत्त इस देशज धर्मसमाज की संस्थापिका हैं। उनकी सहयोगी धर्मबहनें माता सेसिलिया, माता बेरोनिका एवं माता मेरी हैं। वे छोटानागपुर के प्रेरित एवं ईश-सेवक फादर कॉन्सटेन्ट लीवन्स(एसजे)के प्रेरिताई के पहले फल हैं। उनकी प्रेरिताई के मात्र क्ख् वषरें के अन्दर एक देशज धर्मसंघ की स्थापना होना यहां की कैथोलिक कलीसिया की प्रौढ़ता को दर्शाता है। वर्तमान में लिंडा मेरी वॉन इस धर्म समाज की सर्वोच्च मदर जनरल हैं। धर्मसंघ का मूल मठ पुरुलिया रोड में स्थित है।

आदिवासियों ने हक के लिए लड़ना सीखा

सिस्टर ललिता रौशनी लकड़ा बताती हैं कि मार्चक्88भ् में फादर कॉन्सटेन्ट लीवन्स(एसजे) छोटानागपुर आए। उस समय छोटानागपुर का आदिवासी समाज शोषण, अत्याचार की मार झेल रहा था। कई दशकों से आदिवासी अपनी ज़मीन से लगातार बेदखल हो रहे थे। जबकि जमीन ही उनकी एकमात्र सम्पत्ति थी। उस समय फादर कॉन्सटेंन्ट लीवन्स ने हक और अधिकारों के लिए उन्हें लड़ना सिखाया। उन्हीं दिनों पूरनप्रसाद किस्पोट्टा(मांडर पल्ली के सरगांव नामक गांव के सुशिक्षित एवं आदिवासी समाज के प्रतिष्ठित व्यक्ति) की भेंट फादर कॉन्सटेन्ट लीवन्स से हुई। इसके बाद इन दोनों ने मिलकर न्याय की इस लड़ाई को तेज किया। कोर्ट की सहायता से लोगों की ज़मीन वापस दिलाने लगे। मालूम हो कि पूरनप्रसाद किस्पोट्टा कचहरी में मोख्तार का काम करते थे।

क्887 में खुला संत जॉन्स स्कूल

फादर लीवन्स की सोच थी कि शिक्षा से ही शिखर पर पहुंचा जा सकता है। इसी उद्देश्य से विद्यालय खोला गया। रांची में सन्त जॉन्स स्कूल की स्थापना सन क्887 में हुई। उस समय तक लड़कियों की शिक्षा पर अधिक ध्यान नहीं दिया गया था। कलकत्ता(अब कोलकाता) के आर्चबिशप पॉल गोथल्स (एसजे) ने महसूस किया कि मिशन कार्य को सुदृढ़ करने के लिए धर्मबहनों की नितान्त जरूरत है। इस योजना को पूरा करने के लिए ख्क् मार्च सन क्890 को चार लोरेटो मदर रांची पहुंचीं। ये पुरूलिया रोड स्थित लाल कोठी नामक भवन में रहने लगीं। उन्होंने ही सबसे पहले लड़कियों के लिए बोर्डिंग स्कूल खोला। उन्हीं दिनों सरगांव निवासी पूरनप्रसाद अपने सम्पूर्ण परिवार के साथ कैथोलिक मंडली के सदस्य बन गए। उसकी दो बेटियां मेरी बेर्नादेत्त और सिसिलिया, पूरनप्रसाद के छोटे भाई प्रभुप्रसाद किस्पोट्टा की बेटी बेरोनिका और मांडर के बेजांग गांव की मुक्ता की बेटी मेरी, लोरेटो स्कूल में पढ़ती थीं। यहीं से उन्हें गरीबों एवं दुखियों की सेवा करने की प्रेरणा मिली। इस तरह प्रेरित होकर वो ºीस्त के प्रेम से सदा कुंवारी बनी रहने का निर्णय लीं। इस तरह ख्म् जुलाई सन क्897 को कलकत्ता के आर्चबिशप पॉल गोथल्स(एसजे)ने एक नए धर्मसमाज संत अन्ना की पुत्रियों के धर्मसंघ की स्थापना की मंजूरी दे दी। माता मेरी बेर्नादेत्त किस्पोट्टा इस धर्मसंघ की संस्थापिका बनीं। संत अन्ना की पुत्रियों का धर्मसंघ-झारखंड, बिहार, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश, ओडि़शा, पश्चिम बंगाल, असम, अंडमान -निकोबार, इटली और जर्मनी में कार्यरत है। फ्0 नवम्बर क्9क्7 को संत अन्ना की पुत्रियों का धर्मसंघ एक स्वतंत्र धर्मसमाज बना। इस धर्मसंघ को 08 अप्रैल ख्00ख् में परम धर्माध्यक्षीय अधिकार प्राप्त हुआ।

उपेक्षित बच्चों को सशक्त बनाने का प्रयास

सिस्टर शशिलता लकड़ा का कहना है कि संस्थापिका माता बेर्नादेत्त द्वारा जलाई गई ज्योति सदा प्र”वलित रखने के लिए संत अन्ना की पुत्रियां अभी भी प्रयत्नशील हैं। यह धर्मसंघ गरीब एवं उपेक्षित खासकर बच्चों, बालाओं एवं महिलाओं को सशक्त, आत्मनिर्भर, आत्मविश्वासी एवं निर्भीक बनाने के लिए हमेशा क्रियाशील है।

फैक्ट फाइल

धर्म बहनें क्000 से भी अधिक

प्रोविंस ब्

मध्यप्रदेश स्थापना 8 दिसम्बर क्997

गुमला स्थापना ख् फरवरी ख्00फ्

रांची स्थापना क्क् फरवरी ख्00फ्

जलपाईगुड़ी स्थापना ख्8 दिसम्बर ख्009

मिशन ख्

अंडामन निकोबार मिशन

यूरोप मिशन (इटली, जर्मनी)

Posted By: Inextlive