'सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है' ये ग़ज़ल जब कानों में पड़ती है तो ज़ेहन में राम प्रसाद बिस्मिल का चेहरा आता है।


ये ग़ज़ल राम प्रसाद बिस्मिल का प्रतीक सी बन गई है। लेकिन बहुत कम ही लोगों को पता होगा कि इसके रचयिता रामप्रसाद बिस्मिल नहीं, बल्कि शायर बिस्मिल अज़ीमाबादी थे।राम प्रसाद बिस्मिल और अशफ़ाक़ुल्ला ख़ान पर शोध कर चुके सुधीर विद्यार्थी कहते हैं, "सरफ़रोशी की तमन्ना को राम प्रसाद बिस्मिल ने गाया ज़रूर था, पर ये रचना बिस्मिल अज़ीमाबादी की है।"इतिहासकार प्रोफ़ेसर इम्तियाज़ भी तस्दीक करते हैं कि यह ग़ज़ल बिस्मिल अज़ीमाबादी की ही है।प्रोफ़ेसर इम्तिाज़ के मुताबिक़, उनके एक दोस्त स्व. रिज़वान अहमद इस ग़ज़ल पर शोध कर चुके हैं, जिसे कई क़िस्तों में उन्होंने अपने अख़बार ‘अज़ीमाबाद एक्सप्रेस’ में प्रकाशित किया था।बिस्मिल अज़ीमाबादी के पोते मुनव्वर हसन बताते हैं कि ये ग़ज़ल आज़ादी की लड़ाई के वक़्त काज़ी अब्दुल गफ़्फ़ार की पत्रिका ‘सबाह’ में 1922 में छपी, तो अंग्रेज़ी हुकूमत तिलमिला गई।प्रतिबंध

Posted By: Satyendra Kumar Singh