विश्व साक्षरता दिवस स्पेशल

- अधिक पढ़े-लिखे नहीं थे लेकिन हासिल की कामयाबी

- समाज के लिए बने हैं मिसाल, बच्चों को पढ़ाने में नहीं हैं पीछे

vineet.tiwari@inext.co.in

ALLAHABAD: ये कहानी उन लोगों की है जिन्होंने जिंदगी में बड़ी-बड़ी डिग्रियां हासिल नहीं की। डिग्री कॉलेज-यूनिवर्सिटी का मुंह तक नहीं देखा, लेकिन आज वह समाज के लिए किसी मिसाल से कम नहीं हैं। अपनी मेहनत, लगन और अनुभव के दम पर उन्होंने अपनी अलग जगह बनाने में सफलता पाई है। बावजूद इसके वह पढ़ाई-लिखाई को तवज्जो देते हैं। उन्होंने अपने बच्चों को उच्च शिक्षा देने में कोई कसर नहीं छोड़ी। उनका मानना है कि केवल योजनाएं बनाने और निर्देश देने से समाज को पूर्ण साक्षर नहीं बनाया जा सकता। बच्चों को किताबी ज्ञान देने के साथ तकनीकी शिक्षा देनी भी जरूरी है।

बॉक्स नंबर एक

सातवीं तक पढ़ाई लेकिन करोड़पति बिजनेसमैन

शहर में पीवीसी (पॉली वाइनिल क्लोराइड) पाइप के धंधे में राजेश जायसवाल का नाम अनजाना नहीं है। शहर में उनकी चार फर्मे हैं, जहां से यूपी के दूसरे शहरों में माल सप्लाई किया जाता है। बचपन में पिता का छोटा-मोटा काम और माताजी का असमय गुजर जाना, परिवार के लिए मुसीबतों का पहाड़ लेकर आया। सातवीं कक्षा तक पढ़े राजेश के कंधों पर जिम्मेदारियों का बोझ था। सो आर्थिक तंगी के चलते स्कूल छूट गया। शुरुआत में घंटाघर चौराहे पर पॉलिथिन का ठेला लगाया।

बैंक से लोन लेकर डाली मशीन

राजेश बताते हैं कि सफलता पाने के लिए अथक मेहनत और लगन जरूरी होती है। शुरुआत में वह शहर की एक पीवीसी पाइप फर्म के लिए कानपुर से माल लाते थे। फिर एक सज्जन की सलाह पर उन्होंने बैंक से लोन लेकर मशीन लगाई और खुद पाइप तैयार करने लगे। धीरे-धीरे उनका बिजनेस फलने-फूलने लगा। वह यह भी मानते हैं कि आज के परिवेश में पढ़ना-लिखना बेहद जरूरी है। सामाजिक ताने-बाने में बेहतर शिक्षा बिना खुद को फिट कर पाना बेहद मुश्किल है।

बॉक्स नंबर दो

इंटर पास किसान ने कायम की मिसाल

जसरा ब्लॉक के टिकरी गांव के चंद्रप्रकाश कुशवाहा की गिनती जिले के समृद्ध किसानों में होती है। जैविक खाद के जरिए उन्नत खेती कर उन्होंने समाज को नई राह दिखाई है। आसपास के कई गांव के किसान उनसे जैविक खाद तैयार करने की विधि सीखने आते हैं। बकौल चंद्रप्रकाश, पैसे की कमी के चलते जैसे-तैसे इंटर तक शिक्षा प्राप्त की। इसके बाद पढ़ाई बंद हो गई। महज दो एकड़ खेत थे, इसलिए किसानी में भी बहुत ज्यादा स्कोप नजर नहीं आया। भविष्य में क्या करना है, यह उनके सामने बड़ा सवाल था।

इन्होंने दिखाया रास्ता

चंद्रप्रकाश कहते हैं कि इसी बीच वह कृषि वैज्ञानिकों के संपर्क में आए। उनसे जैविक खाद के बारे में जानकारी ली। कम पढ़े-लिखे होने के चलते कई बार उन्हें नीचा भी देखना पड़ा लेकिन हार नहीं मानी। नैनी स्थित एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी शियाट्स के मार्गदर्शन में उन्होंने जैविक खाद बनाने का काम शुरू किया। आज उनके पास दो दर्जन से अधिक पुरस्कार हैं। वह कहते हैं कि यूरिया और हानिकारक केमिकल की जगह जैविक खाद की खेती से स्वास्थ्य और पर्यावरण दोनों शुद्ध रहता है। आठ साल के लंबे गैप के बाद उन्होंने हाल ही में एमए की डिग्री हासिल की है।

बॉक्स नंबर तीन

ये सिखाते हैं खेती के गुर

महज आठवीं क्लास तक पढ़े चाका ब्लॉक के पगबना मौजा उल्लासपुरा गांव के किसान रामजतन पटेल आज दूसरे किसानों को सब्जी की खेती करना सिखाते हैं। एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी शियाट्स की ओर से कृषि मेले में उनकी खेती के तकनीकों का प्रदर्शन किया जाता है। रामजतन अपनी तकनीक से कम जमीन में अधिक फसलें उगाने में माहिर हैं। इससे वह दूसरों से अधिक पैसे भी कमा लेते हैं। सीखने की कला और मेहनत ने उन्हें इस मुकाम तक पहुंचाया है। यूनिवर्सिटी के कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक डॉ। डीएस चौहान के मुताबिक रामजतन कम पढ़े-लिखे होने के बावजूद खेती की तकनीकों के बेहतर समझ रखते हैं। खुद रामजतन भी मानते हैं कि कम पढ़ा-लिखा होने के चलते उन्हें अधिक मेहनत करनी पड़ी, अगर ग्रामीण एरिया में शिक्षा की बेहतर व्यवस्था हो तो किसान आसानी से सफलता प्राप्त कर सकते हैं।

बॉक्स नंबर चार

पढ़ाई से बहुत कुछ सीखता है इंसान

शहर के स्टैनली रोड की रहने वाली कल्पना सिंह महज ख्भ् साल की थी जब उनके पति कैप्टन विजय प्रताप सिंह क्97क् के युद्ध में शहीद हो गए। सरकार ने इस कुर्बानी के बदले उन्हें गैस एजेंसी जरूर दी लेकिन इसे चलाना किसी चुनौती से कम नहीं था। महज इंटर पास कल्पना सिंह को तब कम पढ़ा-लिखा होना अखरा जरूर लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। परिवार के सपोर्ट से उन्होंने दिन-रात मेहनत कर अपने बिजनेस को बढ़ाया। आज उनका खुद का डिग्री कॉलेज और टाइल्स का बिजनेस है। बावजूद वह मानती हैं कि अच्छी और उच्च शिक्षा इंसान की सफलता के लिए बहुत जरूरी है। इसके जरिए वह जिंदगी की चुनौतियों का आसानी से सामना कर सकता है।

ड्रॉप आउट है बड़ी समस्या

हर बच्चे को स्कूल तक पहुंचाने के लिए सरकार द्वारा ख्00क् से चलाए जा रहे सर्व शिक्षा अभियान की सफलता और असफलता की कहानी किसी से छिपी नहीं है। शैक्षिक सत्र की शुरुआत में जैसे-तैसे सरकारी तंत्र बच्चों को स्कूल तक तो पहुंचा देता है लेकिन यही बच्चे रोजी-रोटी की तलाश में पढ़ाई पूरी नहीं करते। सर्वशिक्षा अभियान के डिस्ट्रिक्ट कोआर्डिनेटर एपी मिश्रा भी मानते हैं कि पूर्ण साक्षरता के लिए ड्रॉप आउट की समस्या से उबरना होगा। खुद अभिभावक बच्चों को स्कूल भेजने के बजाय काम-धंधे पर भेजने की बात करते हैं। यही कारण है कि शैक्षिक सत्र के अंत तक स्कूलों में बच्चों की संख्या काफी कम हो जाती है।

एक्सपर्ट कमेंट

- केवल सर्व शिक्षा अभियान या दूसरी योजनाओं के लागू करने से पूर्ण साक्षरता नहीं आएगी। इसके लिए कम्युनिटी अवेयरनेस बेहद जरूरी है, जिसे पैदा करने की जिम्मेदारी शिक्षकों और प्रशासन की है। फिलहाल सिस्टम में पूर्ण साक्षरता को लेकर लगाव या प्रतिबद्धता का अभाव नजर आता है। बच्चों में लर्निग एटमास्फियर पैदा नहीं हो पा रहा है। मेरा मानना है कि साक्षरता पढ़ाई-लिखाई तक सीमित है जबकि शिक्षित होने के लिए मानवीय मूल्यों की जानकारी होना जरूरी है। साक्षरता का मतलब महज शब्दों का ज्ञान नहीं, इससे देश के विकास की इबारत भी लिखी जानी चाहिए।

डॉ। धनंजय यादव, एजूकेशन डिपार्टमेंट, इलाहाबाद यूनिवर्सिटी

- समाज में शिक्षा के दो वर्ग हैं। एक कांवेंट शिक्षा तो दूसरी सरकारी शिक्षा, जो सर्वशिक्षा अभियान से जुड़ी है। सरकारी शिक्षा के दोयम दर्जे का होने के चलते बच्चे और अभिभावक साक्षरता के प्रति जागरुक नहीं हो रहे हैं। जिससे ड्रॉप आउट का रेशियो बढ़ता है। कुछ बच्चे केवल मिडडे मील के समय ही स्कूल पहुंचते हैं। सरकार को सरकारी शिक्षा की गुणवत्ता पर ध्यान देना होगा। समाज और प्रशासन के बीच आपसी समन्वय बैठाना होगा। शिक्षकों की मनमानी पर लगाम लगानी होगी।

प्रो। केएस मिश्रा, एजूकेशन डिपार्टमेंट, इलाहाबाद यूनिवर्सिटी

Posted By: Inextlive