-अपने बच्चे को नियम कानून की धज्जी उड़ाने वाले कंडम वाहन से भेजते हैं स्कूल

- वाहन व ड्राइवर की भी नहीं रखते कोई जानकारी

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VARANASI

सुबह घर से स्कूल के लिए निकलने वाले बच्चों का सफर बहुत कांटों भरा होता है. एक तरफ नियमों को ताक पर रख स्कूली वाहन बच्चों की जिंदगी से खिलवाड़ कर रहे हैं तो पेरेंट्स भी कम जिम्मेदार नहीं हैं. जो बिना सुरक्षा सुविधाओं के चलने वाले खटारा और ओवरलोडेड वाहन तक वो अपने बच्चे को हर सुबह छोड़कर आते हैं. ये भी नहीं सोचते की बच्चा स्कूल सही सलामत पहुंचेगा भी की नहीं. इन वाहनों की सुरक्षा की जिम्मेदारी न तो स्कूल प्रशासन तय करता है और न ही वाहन का संचालन करने वाले ड्राइवर ही इसको लेकर गंभीर हैं. एक्सिडेंट होने पर सभी अपना पल्ला झाड़ते नजर आते हैं. तब पेरेंट्स की भी नींद टूट जाती है.

कभी नहीं पूछते सवाल

स्कूल्स प्रशासन और आउटसाइडर किस तरह के वाहन से बच्चों को स्कूल पहुंचा रहा है. इस ओर शायद ही किसी गार्जियन का ध्यान हो. कभी किसी ने वाहन व ड्राइवर के बारे में पूछताछ नहीं करते. सब भगवान भरोसे चल रहा है. कम से कम पेरेंट्स को तो एक बार जरुर उस वाहन को देख लेना चाहिए जिससे उनके कलेजे का टुकड़ा स्कूल जाता है. वो तो ड्राइवर के बारे में भी पूछना गवांरा नहीं समझते. ऐसे में पेरेंट्स को भी अवेयर होने की बहुत जरूरत है.

पैरेंट्स से बातचीत

भला कौन नहीं चाहता कि अपने बच्चों को अच्छे वाहन से स्कूल भेजें. लेकिन मजबूरी है कि जिस स्कूल में मेरे बच्चे पढ़ते हैं उसमें कोई अच्छी बस है ही नहीं, ऐसे में ऑटो या वैन लगवाना पड़ता है.

चंद्रकला पांडेय, पेरेंट्स

तमाम गाइडलाइन के बाद भी स्कूल के नाम पर चल रहे वाहन इसका पालन नहीं करते हैं. बावजूद इसके कोई दूसरा रास्ता ही नहीं है. करें तो करें क्या. प्रशासन मौन है.

सारिका पांडेय, पेरेंट्स

किसी हादसे के बाद अचानक से डिस्ट्रिक्ट एडमिनिस्ट्रेशन, आरटीओ, पुलिस व ट्रैफिक डिपार्टमेंट की नींद टूट जाती है. लेकिन कागज पर कोरम पूरा होते ही कैंपेन ठंडे बस्ते में चला जाता है.

बबिता गुप्ता, पेरेंट्स

बच्चों को स्कूल भेजने के लिए किसी तरह से काम चलाना पड़ रहा है. जान हथेली पर ही रखकर स्कूल भेजा जा रहा है. मजबूरी में ही बच्चों के लिए व्हीकल लगाने पड़ते हैं.

विकास चौधरी, पेरेंट्स

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सीबीएसई की गाइडलाइन

-व्हीकल के आगे-पीछे स्कूल बस लिखा होना चाहिए.

-बस व वैन में फ‌र्स्ट एड बॉक्स लगा होना चाहिए.

-फायर फाइटिंग सिस्टम लगा होना चाहिए.

-अगर बस कांट्रेक्ट पर हो तो उस पर ऑन स्कूल ड्यूटी लिखा होना चाहिए.

- सीट लिमिट से अधिक बच्चे स्कूली वाहन में नहीं होने चाहिए.

- स्कूल वाहन में हॉरिजेंटल ग्रिल (जालियां) लगे होनी चाहिए.

-स्कूल वाहन पीले रंग का हो, जिसके बीच में भूरे रंग की पट्टी पर स्कूल का नाम और फोन नंबर लिखा होना चाहिए.

-बसों के दरवाजे को अंदर से बंद करने की व्यवस्था होनी चाहिए.

-बस में सीट के नीचे बैग रखने की व्यवस्था होनी चाहिए.

-बसों में टीचर जरुर होने चाहिए,

ड्राइवर के लिए गाइडलाइन

- प्रत्येक बस चालक को कम से कम पांच साल का भारी वाहन चलाने का अनुभव हो.

- किसी भी ड्राइवर को रखने से पहले उसका वेरिफिकेशन जरूरी है.

- ड्राइवर या कंडक्टर का रिकार्ड में कोई चालान नहीं होना चाहिए और न ही उसके खिलाफ कोई मामला दर्ज हो.

- ड्राइवर व कंडक्टर मेडिकल फिट होने चाहिए.

- ड्राइवर या कंडक्टर के लिए यूनिफॉर्म निर्धारित हैं. स्कूली बसों में जीपीएस, फोन की सुविधा भी होनी चाहिए.

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स्कूल सिर्फ अपने व्हीकल के लिए जिम्मेदार होते हैं. अधिकतर रजिस्टर्ड स्कूल्स के वाहन सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन के अनुसार ही तैयार कराया जाता है. प्राइवेट व्हीकल पेरेंट्स अपनी मर्जी से लगवाते हैं. बावजूद इसके स्कूल्स की भी यह जिम्मेदारी है कि वह अपने बच्चों के व्हीकल की जांच करते रहें. गड़बड़ी मिलने पर आरटीओ व पुलिस को सूचना दें.

दीपक मधोक, अध्यक्ष

पूर्वाचल स्कूल्स एसोसिएशन

Posted By: Vivek Srivastava