क्या आपने कभी यह गिना है कि एक मिनट में आप कितनी बार श्वास लेते हैं? श्वास जीवन का सबसे पहला कृत्य होता है और वही जीवन का अंतिम कृत्य भी होता है।

हमारी श्वास में जीवन का रहस्य छिपा होता है। हमारे मन की भावना के अनुरूप हमारी श्वास की लय भी बदल जाती है। हरेक लय शारीरिक स्तर पर शरीर के कुछ अंगों पर अपना प्रभाव डालती है। आपको बस उसे महसूस करने के लिए थोड़ा ध्यान देना होता है। उदाहरण के लिए जब हम खुश होते हैं तो हम कुछ फैलाव महसूस करते हैं और जब दुखी होते हैं तो हमारे अंदर कुछ सिकुड़ता आती है। हालांकि हम खुशी को, दुख को और संवेदनाओं को महसूस तो करते हैं परंतु उनके परस्पर संबंध को नहीं पहचान पाते। वह जो फैलता है, उसे समझना ही वास्तव में ज्ञान है। यह ज्ञान, यह खोज ही चेतना का अध्ययन है, जीवन का अध्ययन है, प्राण का अध्ययन है और आयुर्वेद का अध्ययन है।

क्या आपने कभी यह गिना है कि एक मिनट में आप कितनी बार श्वास लेते हैं? श्वास जीवन का सबसे पहला कृत्य होता है और वही जीवन का अंतिम कृत्य भी होता है। इसके बीच में सारा जीवन हम श्वास ले रहे हैं और छोड़ रहे हैं, परंतु हम अपनी श्वास के प्रति ध्यान नहीं देते हैं। शरीर की 90 प्रतिशत अशुद्धि श्वास के द्वारा निकलती है। हालांकि हम अपने फेफड़ों की सिर्फ 30 प्रतिशत क्षमता का ही उपयोग करते हैं। एक मिनट में हम 16 से 17 बार श्वास लेते हैं। यदि आप परेशान हैं, तो श्वास एक मिनट में 20 बार हो सकती है, यदि आप अत्यंत चिंतित और क्रोधित हैं तो यह एक मिनट में 25 बार भी हो सकती है। यदि आप शांत और प्रसन्न हैं तो दस बार और यदि आप ध्यान में हैं तो दो से तीन बार।

गहरे ध्यान के दौरान आपकी श्वास की संख्या कम हो सकती है। मन को उच्च स्थिति में रखने के लिए श्वास का लंबा होना आवश्यक है। यदि आप किसी शिशु को गौर से देखें तो आपको आश्चर्य होगा कि वे कितनी संतुलित श्वास लेते हैं। अपने शरीर के तीनों भाग से श्वास लेते हैं। जब वे श्वास लेते हैं तो उनका पेट बाहर आता है और जब वे श्वास को छोड़ते हैं तो पेट अंदर चला जाता है। परंतु आप यदि बैचेन और तनावग्रस्त हो, तो इसका विपरीत होगा। जब आप श्वास को छोड़ेंगे तो आप का पेट बाहर आएगा और जब आप श्वास लेंगे तो पेट अंदर चला जाएगा।

दरअसल हमारा मन पहले से ही बहुत सी बातों मे फंसा हुआ है, जैसे- आंकना, राय बनाना और पूर्व स्मृतियों के छाप में उलझे रहना। इसके कारण हम प्रकृति पर बारीकी से ध्यान नहीं दे पाते और उसका अनुभव करने में असमर्थ रहते हैं। आयुर्वेद समग्र दृष्टिकोण पर ध्यान देता है। शरीर में कई बिंदु हैं जिनसे विभिन्न संवेदनाओं की अनुभूति होती है- यह सब उसको प्रतिबिंबित करता है जो इन सबके परे है। वह है जीवन का स्रोत। यह बातें शरीर, श्वास और मन में समन्वय स्थापित करती हैं। स्वास्थ्य यानि एक रोगमुक्त शरीर, कंपनमुक्त श्वास, तनावमुक्त मन, अंतर्बाधामुक्त बुद्धि, मनोग्रस्तिमुक्त स्मृति, सभी को समा लेने वाला अहंकार, और दु:खरहित आत्मा।

— श्री श्री रविशंकर

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Posted By: Kartikeya Tiwari