-लोक कला को बचाने की जुगत पर जुटे हैं चंद्र मोहन

-स्टेट के परिधान, आभूषणों को मूर्तियों का दिया आकार

DEHRADUN : माटी की खुशबू हाथों पर साफ झलकती है। जब वह मूर्तियों को मूर्तरूप देने को जुट जाते हैं तो उनके तैयार सांचे मानो बोलने लग जाते हैं। इसे उनका मातृभूमि से प्यार ही कहेंगे कि अपनी लोक, कला, भाषा व संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए दिन रात जुटे रहते हैं और बढ़ावा दे रहे हैं। प्रयास अनवरत हैं। वह व‌र्ल्डफेम आईएमए, एफआरआई, उत्तराखंड की तिबारी और उत्तराखंड की टूरिज्म पहचान रीवर राफ्टिंग को अपनी कला के जरिए जीवंत करना चाहते हैं।

समाज सेवी बनना चाहते थे

बात हो रही है चंद्र मोहन बहुखंडी की। डीएवी से सोशियोलॉजी में पोस्ट ग्रेजुएट सीएम बहुखंडी कभी एनजीओ के जरिए जन सेवा करना चाहते थे। लेकिन, जिंदगी को कुछ और ही मंजूर था। उत्तराखंड कला परिषद से बहुखंडी क्या जुड़े, फिर कला के क्षेत्र में रम से गए। फाइबर से मूर्तियों को मूर्तरूप देने वाले चंद्र मोहन बहुखंडी ने शुरुआती दौर में कई झटके खाए। खुद कहते हैं कि एक बार तो वे जीवन से हार मान चुके थे, लेकिन कहते हैं असफलता के पीछे सफलता भी छुपी होती है। इसी विश्वास के साथ बहुखंडी ने धैर्य का परिचय दिया। नतीजा यह रहा है कि आज वह राज्य के जाने-माने कलाकारों में शुमार करते हैं। इस वक्त उनके पास दर्जनों इंस्टीट्यशंस व युनिवर्सिटी से ऑफर है। खुद कहते हैं कि उन्हें इतनी सक्सेस मिलने की उम्मीद नहीं थी, जो मिल रही है।

मुंबई व गुजरात की मिट्टी

चंद्र मोहन बहुखंडी के हाथ राज्य की उस लोक कला व संस्कृति को सांचे में ढ़ालते हैं, जिसके वे पहले से ही मुरीद रहे हैं। उन्होंने चारधामों के अलावा उत्तराखंड के आभूषण, परिधानों व परिवेश को हाथ की कला से जीवंत करने की पूरी कोशिश की है। प्रचार-प्रसार न होने के कारण वह हिडेन रह गए। लेकिन नेट, माउथ पब्लिशिटी व दोस्तों के जरिए ही फेम हासिल करने पर जुटे हुए हैं। चंद्र मोहन बहुखंडी का कहना है कि वे आईएमए, एफआरआई और उत्तराखंड टूरिज्म की पहचान बन चुकी रीवर राफ्टिंग पर हाथ आजमाना चाहते हैं। सांचे को तैयार करने के लिए बकायदा वह मुंबई से गुजरात की नदी की मिट्टी भी लाए हुए हैं।

Posted By: Inextlive