देश में इन दिनों सेक्‍स ट्वॉयज को लेकर काफी बहस छिड़ी हुई है. ई-कामर्स वेबसाइट्स पर सेक्‍स ट्वॉयज की बिक्री को लेकर कोर्ट अब सख्‍त हो चुका है. दरअसल एक शिकायतकर्ता ने दिल्‍ली की कोर्ट में साइटों पर खुलेआम बिक रहे सेक्‍स ट्वॉयज को कानूनी अपराध के अंतर्गत मानने के लिये कहा है. फिलहाल अब इसका फैसला कोर्ट को करना है लेकिन यह एक बहस का मुद्दा बन चुका है. आइये जानें आखिर कैसे सामने आया यह मामला...

बेचने वाली कंपनियों के खिलाफ होगी जांच
सुप्रीम कोर्ट के वकील सुहास आर जोशी की शिकायत पर एक्शन लेते हुये कोर्ट ने सख्ती दिखाई है. कोर्ट ने सेक्स ट्वॉयज बेचने वाली साइटों के खिलाफ जांच के आदेश दे दिए हैं. इस सुनवाई के दौरान दलील दी गई कि, इन ट्वॉयज के जरिये सेक्स का आंनद लेना धारा 377 का उल्लंघन है. इसको समलैंगिकता या अप्राकृतिक सेक्स का अपराध माना गया है. इस मामले में मेट्रोपोलियन मजिस्ट्रेट रिचा गुसेन सोलंकी ने सब्जी मंडी पुलिस स्टेशन को प्राथमिक जांच करने और एक्शन टेकेन रिपोर्ट फाइल करने को कहा है. जोशी ने आरोप लगाया था कि, ल्यूब, डिसेंसिटिसर, स्प्रे जैसे सेक्स ट्वॉयज अवैध रूप से बेचे जा रहे हैं. फिलहाल मजिस्ट्रेट ने SHO को 21 मार्च तक रिपोर्ट फाइल करने को कहा है.

क्या है धारा 377

इंडियन पीनल कोड में धारा 377 को लेकर कोई स्पष्ट मत नहीं है. दरअसल इस धारा के तहत समलैंगिकता को अपराध माना जाता है. इसके अलावा किसी पुरुष और महिला के साथ अप्राकृतिक सेक्स संबंध बनाना कानूनन जुर्म है. वहीं जानवरों के साथ सेक्स संबंध बनाना भी अपराध की कैटेगरी में आता है. इसके लिये 10 साल से लेकर उम्रकैद तक की सजा का प्रावधान है. वहीं दूसरी ओर धारा 377 को लेकर सभी लोग अलग-अलग राय रखते हैं. हालांकि अब सेक्स ट्वॉयज इस धारा के अंतर्गत आता है कि नहीं, यह अभी भी एक बहस का मुद्दा बना हुआ है.

काफी विवादित रहा है मामला

मेट्रोपोलियन कोर्ट द्वारा धारा सेक्स ट्वॉयज पर सख्ती का मामला तो नया है, लेकिन इससे पहले भी धारा 377 की स्पष्टता को लेकर हमेशा बहस होती रही है. फिलहाल सुप्रीम कोर्ट की तरफ से अभी यह फैसला आना बाकी है कि, धारा 377 के तहत समलैंगिकता या अप्राकृतिक सेक्स अपराध है या नहीं. आपको बताते चलें कि, इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 2009 में दिल्ली हाई कोर्ट के उस आदेश को भी खारिज कर दिया, जिसमें समलैंगिक को जुर्म नहीं माना गया था. उस दौरान देश की सर्वोच्च अदालत का कहना था, कि इस संबंध में अंतिम फैसला संसद को लेना चाहिये.
कहीं विरोध, कहीं समर्थन
शिकायतकर्ता जोशी ने यह भी बताया कि, वह इस धारा 377 पर एक बड़ी बहस चाहते हैं. उन्होंने कहा, 'मेरी शिकायत एलजीबीटी समुदाय या किसी विशेष ई-रिटेलर के खिलाफ नहीं है. मेरा उद्देश्य सिर्फ धारा 377 की अप्रासंगिकता को सामने लाना है, जिसके कारण लोगों की निजी अधिकारों का कंट्रोल किया जा रहा है. फिलहाल इस मुद्दे पर सरकार की ओर से भी कभी गंभीरता नहीं ली गई. इसके अलावा इस मसले पर दो गुट बट गए हैं, जिसमें कि कुछ समुदाय इसका समर्थन करते रहते है, तो कहीं-कहीं विरोध के सुर भी उठने लगते हैं.

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Posted By: Abhishek Kumar Tiwari