BAREILLY: यूथ में इन दिनों फ्रेंड सर्किल के बीच अपना कद बढ़ाने की होड़ सी है। ब्वॉयज गर्लफ्रेंड्स की लंबी लिस्ट सुनाकर कूल इमेज बनाते हैं तो लड़कियां अपने इशारे पर ज्यादा लड़के घुमाने की बात कहती हैं। ग‌र्ल्स और ब्वॉयज में अपोजिट सेक्स के लिए यह अट्रैक्शन नॉर्मल है, लेकिन कई बार यह हद से ज्यादा बढ़ जाता है। जो ब्वॉयज को सैटेराइसिस और ग‌र्ल्स को निम्फोमेनिया डिजीज का शिकार बना रही है। सायकोलॉजिस्ट के मुताबिक मेट्रो सिटीज की यह डिजीज तेजी से बरेली के यूथ को अपने चपेट में ले रही है। उन्होंने बरेली में करीब 30 परसेंट यूथ को इस बीमारी का शिकार होने की संभावना जताई है। नीचे दिए गए दो केस इसकी बानगी हैं।

केस वन-

सुशील 'नेम चेंज्ड' को पिछले कुछ माह से अपनी सिस्टर का बिहेवियर ठीक नहीं लग रहा था। वह लड़कियों की बजाय लड़कों से दोस्ती बढ़ाने लगी। पड़ोसियों में यह गॉसिप बन गया। जब पता चला कि वह लड़कों के साथ घूम रही है। समझाने की कोशिश की वह नहीं मानीं। दोस्त से प्रॉब्लम डिस्कस की तो उसने डॉक्टर से परामर्श लेने की सलाह दी। साइकेट्रिस्ट ने सिस्टर को निम्फोमेनिया की प्रॉब्लम बताई है।

केस टू-

संजय 'नेम चेंज्ड' एकेडमिक लाइफ से ही लड़कियों के साथ रहना ज्यादा पसंद करता था। पर धीरे-धीरे वह कई लड़कियों के संपर्क में रहने लगा। उसका लड़कियों के साथ घूमना फिरना इस कदर बढ़ा कि पड़ोसियों में उसके बिहेवियर को लेकर बातें शुरू हो गई। तब पेरेंट्स ने गंभीरता से सोचना शुरू किया। वह एक परिचित साइकेट्रिस्ट से डिस्कस किया। साइकेट्रिस्ट ने बताया कि बेटा 'सैटेराइसिस' से पीडि़त है।

निम्फोमेनिया ज्यादा खतरनाक

निम्फोमेनिया की पेशेंट सिर्फ फीमेल्स होती हैं। जो हार्मोन्स डिसबैलेंस होने से हाइपर सेक्सुअल हो जाती हैं। डिजीज के सिम्पटम्स ग‌र्ल्स में 14 साल से दिखने शुरू हो जाते हैं। अट्रैक्टक्शन की चाह बढ़ने पर नाकाम होने पर वह डिप्रेस्ड हो जाती हैं। ऐसे में निम्फोमेनिया का लेवल बढ़ने लगता है। ऐसे में सेक्सुअल सैटिस्फाई होने के लिए किसी भी हद तक जा सकती हैं। जबकि सैटेराइसिस पेशेंट सिर्फ फीमेल्स का साथ अच्छा लगता है। पकड़े जाने पर वह अपनी गलती को एक्सेप्ट भी कर लेते हैं। पर इस बीमारी से खुद को निकाल नहीं पाते।

पेशेंट बनने की वजहें

बिहेवियर का हाइपर सेक्सुअल में बदलना इस डिजीज की फ‌र्स्ट स्टेज है। इसके पीछे कई साइकोलॉजिकल और पैथोलॉजिकल रीजन होते हैं। साइकोलॉजिकल में एडिक्शन सेक्सुअल, कंपल्सिव सेक्स और इंपल्सिव सेक्सुअल बिहेवियर शामिल होते हैं। पैथोलॉजिकल में बाई पोलर डिसऑर्डर के मेल्स होते हैं। बिहेवियर को ब्रेन के कुछ हिस्से कंट्रोल करते हैं। इन्हें टेंपोरल कहते हैं। बचपन में सिर के इस हिस्से में चोट लगने पर पेशेंट का बिहेवियर चेंज हो जाता है। लड़कों के केस में पेशेंट सैटेराइसिस का शिकार हो जाता है। वहीं, कई बार ज्यादा अल्कोहल यूज करने से भी दिमाग के इस हिस्से से कंट्रोल खत्म हो जाता है।

निम्फोमेनिया में ग‌र्ल्स की सेक्सुअल डिजायर बढ़ जाती है। एक साथ कई अफेयर करने की चाहत होती है। इस मेंटल प्रॉब्लम से बचाने के लिए काउंसलिंग की जाती है।

डॉ। हेमा खन्ना, साइकोलॉजिस्ट

ब्वॉयज में सैटेराइसिस की प्रॉब्लम बढ़ रही है। कई के सेज को काउंसिलिंग से ठीक करने की कोशिश की जाती है। सुधार न होने पर मेडिसिन की जरूरत पड़ती है।

डॉ। सुविधा शर्मा, साइकोलॉजिस्ट

Posted By: Inextlive