संजय गांधी पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट एसजीपीजीआई में शनिवार को 16वें दीक्षान्त समारोह का आयोजन किया गया.

संजय गांधी पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट (एसजीपीजीआई) में शनिवार को 16वें दीक्षान्त समारोह का आयोजन किया गया। इस अवसर पर राज्यपाल बीएल जोशी ने ने कहा कि संस्थान बेहतर इलाज के साथ-साथ मेनिनजाइटिस, डेंगू, पोलियो, चिकुनगुनिया, कैंसर, एड्स, टीबी जैसी बीमारियों के सफल उपचार के लिए सराहनीय शोध कर रहा है। इससे यूपी एवं पड़ोसी देशों के नागरिकों को वल्र्ड लेवल की हेल्थ फैसिलिटीज उपलब्ध हो सकेंगी।
इससे यूपी में चिकित्सा पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा। उन्होंने कहा कि कन्वोकेशन में जिन डॉक्टर्स को उपाधि मिली है वे आर्यभट्ट, कणाद एवं सुश्रुत जैसे महान भारतीयों से प्रेरणा लेते हुए कीर्तिमान स्थापित करें। इस अवसर पर एसजीपीजीआई के प्रेसीडेंट अनूप मिश्रा ने कहा कि एसजीपीजीआई में निर्धन लोगों के लिए चलाई जा रही कामधेनु योजना एक सराहनीय कार्य है। इसे और अधिक बढ़ाए जाने की जरुरत है ताकि गरीब लोगों को भी इलाज मिल सके। इस अवसर पर डायरेक्टर प्रो। आरके शर्मा, डीन प्रो। यूके मिश्रा सहित अन्य लोग मौजूद रहे।

कंवोकेशन में चीफ गेस्ट एम्स में कार्डियोलॉजी के पूर्व एचओडी व पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन आफ इंडिया के प्रेसीडेंट, प्रो। के श्रीनाथ रेड्डी ने कहा कि आने वाले समय में डायबिटीज, हार्ट प्रॉब्लम्स जैसी समस्याएं एपीडेमिक के रूप में आएंगी। यह सब इंडस्ट्रियलाइजेशन, ग्लोबलाइजेशन, स्ट्रेस और ओवरवेट के कारण हो रही हैं। उन्होंने कहा कि सुपरस्पेशियलिटी में ऐसे मरीजों को आना चाहिए जिन्हें इसकी जरूरत है।
अभी जो मरीज पीजीआई जैसे संस्थानों में इलाज कराने आते हैं उनमें से 90 परसेंट को जिला अस्पतालों में इलाज मिल जाए तो वे ठीक हो जाएंगे। उन्होंने बताया कि देश में महिलाओं की स्थिति बहुत खराब है। हर तीसरी महिला एनीमिया से पीडि़त है। हेल्थ की सिचुएशन बहुत खराब है। गवर्नमेंट को हेल्थ सेक्टर में बजट बढ़ाना चाहिए। उन्होंने कहा कि अगले कुछ सालों में सबसे ज्यादा जनसंख्या 15 से 50 साल के बीच के लोगों की होगी।

बच्चों में भी ईएचपीवीओ (एक्स्ट्रा हिपैटिक पोर्टल वेन ऑब्स्ट्रक्शन) बीमारी होती है। लगभग 32 परसेंट बच्चों को ये प्रॉब्लम होती है। पीजीआई में पीएचडी स्कॉलर डॉ। संतोष कुमार यादव ने रिसर्च में यह प्रूव किया है। अभी तक डॉक्टर्स को सिर्फ बड़ों में ही इस बीमारी की जानकारी थी। इसके लिए उन्हें पीजीआई के 16वें कन्वोकेशन में बेस्ट रिसर्च का एवार्ड दिया गया। अभी तक यह बात डॉक्टर्स को पता नहीं थी जिसके कारण बच्चों की बीमारी का ठीक से इलाज नहीं हो पाता था। इसके कारण बच्चे की क्वालिटी ऑफ लाइफ खराब होती थी। वह सही से कंसन्ट्रेट नहीं कर पाता, उसकी मेमोरी और डेली रूटीन भी ठीक नहीं होती।
ऐसे लोगों को ड्राइविंग करने से मना कर दिया जाता है। डॉ। संतोष ने 6 से 12 साल के बच्चों में किए गए शोध में पाया कि इस बीमारी में ब्लड लीवर में न जाकर लीवर को बाइपास करके निकल जाता है। जिसके कारण टॉक्सिक पदार्थ जैसे अमोनिया, ग्लूटामाइन, साइटोकाइनिन ब्लड से छन कर बाहर नहीं जा पाते। बाद में यही अमोनिया ब्रेन में बैरियर को पार करके ग्लूटामाइन में कन्वर्ट हो जाता है। सेल्स में ऑस्मोटिक इंबैलेंस होता है और बाहर का पानी भर जाता है।
जिसके कारण ये बीमारी हो जाती है। यह बात उन्होंने इन्सिफैलोपैथी असिसमेंट में प्रूव की। डॉ। संतोष ने बताया कि इन बच्चों में अमोनिया, ग्लूटामीन, साइटोकाइनिन बढ़ जाते हैं। यदि हम दवाएं देकर इन्हें बैलेंस कर दें तो बच्चों को इन बीमारियों से छुटकारा दिलाया जा सकता है। उन्होंने बताया कि बच्चों में यह बीमारी या तो जेनेटिक होती है या फिर कुछ फैक्टर्स के कारण वेन में थक्का जम जाता है और लीवर में ब्लड की सप्लाई ठीक से नहीं हो पाती। डॉ। संतोष बाराबंकी के रहने वाले हैं और उनके फादर कैसरबाग बस स्टेशन में सीनियर क्लर्क हैं। पीजीआई से पीएचडी के बाद वह हवाई यूनिवर्सिटी यूएसए में फेलो के रूप में ज्वाइन कर रहे हैं।

Posted By: Inextlive