शरद पूर्णिमा अर्थात कोजागरी व्रत आश्विन शुक्ल मध्य रात्रि व्यापिनी पूर्णिमा में किया जाता है। ज्योतिषिय नियमों के अनुसार इस दिन चन्द्र अपनी सोलह कलाओं से परिपूर्ण होता है। कुछ क्षेत्रों में इस व्रत को कौमुदी व्रत भी कहा जाता है। मान्यता है कि जो इस रात में जगकर मां लक्ष्मी की उपासना करते हैं मां लक्ष्मी की उन पर कृपा होती है।

शरद पूर्णिमा इस वर्ष 24 अक्टूबर यानी बुधवार को है। माना जाता है कि इस रात चांदनी में मां लक्ष्मी पृथ्वी भ्रमण के लिए आती हैं। शास्त्रों के अनुसार शरद पूर्णिमा की मध्य रात्रि के बाद मां लक्ष्मी अपने वाहन उल्लू पर बैठकर धरती के मनोहर दृश्य का आनंद लेती हैं।

साथ ही माता यह भी देखती हैं कि कौन भक्त रात में जागकर उनकी भक्ति कर रहा है। इसलिए शरद पूर्णिमा की रात को कोजागरी भी कहा जाता है। कोजागरी का शाब्दिक अर्थ है कौन जाग रहा है।

मान्यता है कि जो इस रात में जगकर मां लक्ष्मी की उपासना करते हैं, मां लक्ष्मी की उन पर कृपा होती है। शरद पूर्णिमा के विषय में ज्योतिषीय मत है कि जो इस रात जगकर लक्ष्मी की उपासना करता है, उनकी कुण्डली में धन योग नहीं भी होने पर माता उन्हें धन-धान्य से संपन्न कर देती हैं।

चंद्रमा के किरणों से अमृत वर्षा


शरद पूर्णिमा अर्थात कोजागरी व्रत आश्विन शुक्ल मध्य रात्रि व्यापिनी पूर्णिमा में किया जाता है। ज्योतिषिय नियमों के अनुसार, इस दिन चन्द्र अपनी सोलह कलाओं से परिपूर्ण होता है। कुछ क्षेत्रों में इस व्रत को कौमुदी व्रत भी कहा जाता है। इस दिन चन्द्रमा के किरणों से अमृत वर्षा होने की मान्यता प्रसिद्ध है।

इसी कारण इस दिन खीर बनाकर रात्रि काल में चन्द्र देव के सामने चांदनी में व मां लक्ष्मी को अर्पितकर अगले दिन प्रात: काल में ब्रह्मण को प्रसाद वितरण व फिर स्वयं प्रसाद ग्रहण करने का विधि-विधान है।

पूजा विधि


इस दिन भक्त विधिपूर्वक स्नान करके उपवास रखें और जितेन्द्रिय भाव से रहे। मां लक्ष्मी की प्रतिमा को स्थापित कर भिन्न-भिन्न उपचारों से उनकी पूजा करें, तदनंतर सायंकाल में चन्द्रोदय होने पर घी के 100 दीपक जलाएं।

इस रात्रि की मध्यरात्रि में देवी महालक्ष्मी अपने कर-कमलों में वर और अभय लिए संसार में विचरती हैं और मन ही मन संकल्प करती हैं कि इस समय भूतल पर कौन जाग रहा है? जागकर मेरी पूजा में लगे हुए उस मनुष्य को मैं आज धन दूंगी।

इस प्रकार यह शरद पूर्णिमा, कोजागर व्रत लक्ष्मीजी को संतुष्ट करने वाला है। इससे प्रसन्न हुईं मां लक्ष्मी इस लोक में तो समृद्धि देती ही हैं और शरीर का अंत होने पर परलोक में भी सद्गति प्रदान करती हैं।

इस दिन एरावत पर आरूढ़ हुए इन्द्र व महालक्ष्मी का पूजन किया जाता है। इससे अवश्य ही लक्ष्मी और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है।

मंत्र-

‘ॐ इन्द्राय नमः’,

‘ॐ कुबेराय नमः’

“ॐ धनदाय नमस्तुभ्यं, निधि-पद्माधिपाय च। भवन्तु त्वत्-प्रसादान्ने, धन-धान्यादि-सम्पदः।।”

अपरान्ह में हाथियों का नीराजन करे तो उत्तम फल मिलता है, और अन्य प्रकार के अनुष्ठान करें तो उनकी सफल सिद्धि होती है। इसके अतिरिक्त आश्विन शुक्ल निशीथ व्यापिनी पूर्णिमा को प्रभात के समय आराध्य देव को सुश्वेत वस्त्राभूषणादि से सुशोभित करके षोडशोपचार पूजन करें और रात्रि के समय उत्तम गोदुग्ध की खीर में घी सफेद खाँड मिलाकर अर्द्धरात्रि के समय भगवान को अर्पण करें। साथ ही पूर्ण चन्द्रमा के मध्याकाश में स्थित होने पर उनका पूजन करें और पूर्वोक्त प्रकार की खीर का नैवेद्य अर्पण करके दूसरे दिन उसका भोजन करें।

— ज्योतिषाचार्य पं गणेश प्रसाद मिश्र, शोध छात्र, ज्योतिष विभाग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय

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Posted By: Kartikeya Tiwari