-श्री रामायण मंदिर में माधवबाड़ी में चल रही कथा का मंडे को हुआ विश्राम

-पितृ रूप में भगवान जनार्दन वासुदेव ही पूजित होकर प्रदान करते हैं सुख शांति

BAREILLY :

माता पार्वती एवं भगवान शिवजी अनादि काल से संसार के पितृ हैं। श्री रामायण मंदिर माधवबाड़ी में चल रही श्री राम कथा के दौरान जगमोहन ठाकुर ने कथा में यह बात कही। मंडे को कथा के विश्राम दिवस में पितृ पक्ष एवं श्रीराम विवाह का भावपूर्ण वर्णन किया। जिसे सुनकर श्रोता मंत्र मुग्ध हो गए। वहीं राम कथा में सुनाया कि अयोध्या पितृ भूमि है और श्री जनकपुर मातृभूमि है। अयोध्या में सत्यप्रेमी और मिथिला में गूढ़ प्रेमी रहते हैं। इन दोनों में किसी कारणवश दूरी हो गई थी। जिसे दूर करने का श्री राम ने अवतार लिया था।

ब्राह्माण भोज और तर्पण का विधान

उन्होंने कहा कि पितृ रूप में भगवान जनार्दन वासुदेव ही पूजित होकर घर में सुख शांति, शक्ति तथा भक्ति प्रदान करते हैं। भगवान शिव पितृ पूजन करने वाले पर प्रसन्न होकर मनोवांछित फल प्रदान करते हैं। इसीलिए पितृ पक्ष में अपने-अपने पितरों का पिंडदान, तर्पण दान और ब्राह्माण भोज का पहले ही विधान है.अनादि विधान है।

पुराणों की सुनाई कथा

पुराण में कहा गया है कि भगवान श्री राम जी पितृ पूजन करके ब्राह्माण भोजन करवा रहे थे। उसी समय श्री शंकर भगवान आकर बोले कि मुझे भी भोजन करवाओ। भगवान शंकर जब भोजन करने लगे तो इतना खाया कि भंडार को खाली सा कर दिया। श्री सीता माता ने गौरी मां, जो कि अन्नपूर्णा भी हैं, का स्मरण किया। श्री अन्नपूर्णा मां ने भोजन सामग्री में श्री राम नाम का बिल्व पत्र मिला दिया। जिसके माध्यम से भगवान शंकर त्रप्त हो गए। शिव जी ने प्रसन्न होकर श्रीराम से वरदान मांगने को कहा। श्रीराम ने वरदान रूप में उनसे कथा सुननी चाही। जिसे श्री शंकर जी ने प्रसन्न होकर स्वीकार कर लिया। तब से श्री शंकर जी श्री राम दरबार के नित्य कथावाचक बन गए।

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अयोध्या है श्रीराम की पितृ भूमि

अयोध्या पितृ भूमि है और जनकपुर मातृभूमि है। अयोध्या में सत्यप्रेमी और मिथिला में गूढ़ प्रेमी रहते हैं। इन दोनों में किसी कारणवश दूरी हो गई थी। अत: इस दूरी को मिटाने के लिए एक नगर में श्रीराम ने अवतार लिया तो दूसरे नगर में सीता माता ने। सीता की प्रेरणा से भगवान शिव ने विश्वामित्र को स्वप्न में आदेश दिया और वे श्रीराम लक्ष्मण के साथ मार्ग में अहिल्या का उद्धार करते हुए श्री जनकपुर पधारे। धरा नंदिनी सीता की प्रेरणा और शिव जी की आज्ञा से जनक ने शिव धनुष तोड़ने वाले से ही सीता जी के विवाह की प्रतिज्ञा की। तीनों लोको के वीरों की कमर तोड़ने वाला शिव पिनाक राम जी के हाथ में आकर स्वत: ही टूट गया और इस प्रकार स्वयंवर सभा में सीता जी ने राम जी के गले में विजय माला अर्पित किया। फिर मंगल मुहूर्त में श्री अयोध्या से चक्रवर्ती दशरथ जी के सहित बारात आई और दोनों अनादि दंपत्ति को नव दंपत्ति बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। इस मौके पर जगमोहन ने सुनाया 'आज मिथिला नगरिया निहाल सखियां, चारो दूल्हा में बड़का कमाल सखियां' पर उपस्थित श्रद्धालु सीता राम विवाह उत्सव का आनंद लेते हुए नृत्य करते रहे। कथा के बाद भंडारा हुआ। इस मौके पर जगदीश भाटिया, अनिल अरोड़ा, नवीन अरोड़ा, पवन, दीपक और दिनेश अरोड़ा आदि मौजूद रहे।

Posted By: Inextlive