पद्मपुराण के उत्तरखण्ड में माघमास के माहात्म्य का वर्णन करते हुए कहा गया है कि व्रत दान और तपस्या से भी भगवान श्रीहरि को उतनी प्रसन्नता नहीं होती जितनी कि माघ महीने में स्नानमात्र से होती है।

भारतीय संवत्सर का ग्यारहवां चन्द्रमास और दसवां सौरमास 'माघ' कहलाता है। इस महीने में मघा नक्षत्र युक्त पूर्णिमा होने से इसका नाम माघ पड़ा। जो इस वर्ष मंगलवार 22 जनवरी 2019 से प्रारम्भ होकर 19 फरवरी 2019 तक रहेगा।

धार्मिक दृष्टि से इस मास का बहुत अधिक महत्व है। इस मास में शीतल जल के भीतर डुबकी लगाने वाले मनुष्य पापमुक्त हो स्वर्गलोक में जाते हैं-

' माघे निमग्नाः सलिले सुशीते विमुक्तपापास्त्रिदिवं प्रयान्ति।'

इस माह स्नान से होती है भगवान विष्णु की कृपा


पद्मपुराण के उत्तरखण्ड में माघमास के माहात्म्य का वर्णन करते हुए कहा गया है कि व्रत, दान और तपस्या से भी भगवान श्रीहरि को उतनी प्रसन्नता नहीं होती, जितनी कि माघ महीने में स्नानमात्र से होती है। इसलिए स्वर्गलाभ, सभी पापों से मुक्ति और भगवान विष्णु की प्रीति प्राप्त करने के लिए प्रत्येक मनुष्य को माघ स्नान करना चाहिए।

इस माघ मास में पूर्णिमा को जो व्यक्ति ब्रह्मवैवर्तपुराण का दान करता है, उसे ब्रह्मलोक की प्राप्ति होती है-

पुराणं ब्रह्मवैवर्तं यो दद्यान्माघमासि च।

पौर्णमास्यां शुभदिने ब्रह्मलोके महीयते।।(मत्स्यपुराण ५३/३५)

प्रयागराज में स्नान का महत्व

माघमास की अमावस्या को प्रयागराज में तीन करोड़ दस हजार अन्य तीर्थों का समागम होता है। जो नियम पूर्वक उत्तम व्रत का पालन करते हुए माघ मास में प्रयाग में स्नान करता है, वह सब पापों से मुक्त होकर स्वर्ग में जाता है।

माघ मास की ऐसी विशेषता है कि इसमें जहां-कहीं भी जल हो, वह गंगाजल के समान होता है, फिर भी प्रयाग, काशी, नैमिषारण्य, कुरुक्षेत्र, हरिद्वार तथा अन्य पवित्र तीर्थों और नदियों में स्नान का बड़ा महत्व है। साथ ही मन की निर्मलता एवं श्रद्धा भी आवश्यक है।

माघ मास में दान


माघ मास में कम्बल, लाल कपड़ा, ऊन, रजाई, वस्त्र, स्वर्ण, जूता-चप्पल एवं सभी प्रकार की चादरों का दान करना चाहिए। दान देते समय 'माधवः प्रियताम्' अवश्य कहना चाहिए।

इसका अर्थ है- 'माधव' (भगवान कृष्ण) अनुग्रह करें। स्नान पूर्व तथा स्नान के पश्चात आग नहीं तापना चाहिए। माघ मास में भूमि शयन, प्रतिदिवसीय हवन, हविष्य भोजन, ब्रह्मचर्य का पालन माघव्रतियों के लिए आवश्यक विधान है। इससे व्रत करने वाले मनुष्य को महान अदृष्ट फल की प्राप्ति होती है।

इस माह में मूली न खाएं

माघ मास में मूली नहीं खाना चाहिए। माघ मास में मूली सेवन मदिरा सेवन की तरह मदवर्धक होता है। अतः मूली को स्वयं न तो खाना चाहिए न तो देव या पितृकार्य में उपयोग में ही लाना चाहिए। माघ मास में तिल अवश्य खाना चाहिए। तिल सृष्टि का प्रथम अन्न है।

इस प्रकार माघ-स्नान की अपूर्व महिमा है। इस मास की प्रत्येक तिथि पर्व है। कदाचित् अशक्तावस्था में पूरे मास का नियम न ले सकें तो शास्त्रों ने यह भी व्यवस्था दी है कि तीन दिन अथवा एक दिन अवश्य माघ-स्नान व्रत का पालन करें -

'मासपर्यन्तं स्नानासम्भवे तु त्र्यहमेकाहं वा स्न्नायात्।' (निर्णय सिन्धु)

— ज्योतिषाचार्य पं गणेश प्रसाद मिश्र, शोध छात्र, ज्योतिष विभाग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय

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Posted By: Kartikeya Tiwari