भगवान सूर्य के प्रति आस्था के पर्व मकर संक्रांति के अवसर पर उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में बाबा गोरखनाथ के मंदिर में खिचड़ी चढ़ाई जाती है और वहां पर मेला लगता है।

भगवान सूर्य के प्रति आस्था के पर्व मकर संक्रांति के अवसर पर उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में बाबा गोरखनाथ के मंदिर में खिचड़ी चढ़ाई जाती है और वहां पर मेला लगता है। इस दिन खिचड़ी चढ़ाने का इतिहास त्रेतायुग से है, जिसका आज भी पालन किया जाता है।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, बाबा गुरु गोरखनाथ भगवान शिव के अवतार थे। त्रेता युग में वे भिक्षा मांगते हुए हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले के प्रसिद्ध ज्वाला देवी मंदिर पहुंचे। तब ज्वाला देवी साक्षात् प्रकट हुई और गुरु गोरक्षनाथ को भोजन के लिए आग्रह किया। उनके निमंत्रण को स्वीकार करते हुए जब बाबा गोरखनाथ भोजन के लिए पहुंचे तो वहां अनके प्रकार के व्यंजन देखे। उन्होंने ज्वाला देवी से भिक्षा में मिले चावल और दाल से बना भोजन ही करने को कहा।

इस पर माता ने भोजन बनाने के लिए पात्र में पानी डालकर आग पर रख दिया। तब बाबा गोरखनाथ भिक्षा मांगते हुए गोरखपुर पहुंच गए और राप्ती तथा रोहिणी के संगम पर एक स्थान पर अपना अक्षय पात्र रख दिया और साधना में लीन हो गए।       

जब खिचड़ी यानी मकर संक्रांति का पर्व आया तो लोगों ने एक योगी का भिक्षा पात्र देखा तो उसमें चावल-दाल डालने लगे। जब काफी मात्र में अन्न डालने के बाद भी पात्र नहीं भरा तो लोगों ने इसे योगी का चमत्कार माना और उनके सामने श्रद्धा से सिर झुकाने लगे। तभी से गुरु के इस तपस्थली पर मकर संक्रांति के दिन चावल-दाल चढ़ाने की परंपरा शुरू हो गई।

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Posted By: Kartikeya Tiwari